काली खांसी जिसमें बच्चों की पसलियां तक टूट जाती हैं!
2020 में काली खांसी के 12 हजार से ज्यादा मामले सामने आए थे
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(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
दुनिया में ऐसी बहुत सी बीमारियां हैं जिनको रोकने के लिए आज तक कोई भी वैक्सीन नहीं बनी हैं. जैसे कैंसर. ऐसी बीमारियों से हर साल हजारों-लाखों लोगों की जान जाती है. हम सब उम्मीद ही कर सकते हैं कि आगे जाकर साइंस इतनी तरक्की कर ले कि ऐसी बीमारियों को रोकने वाली वैक्सीन बन जाएं. और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की जान बच सके. पर पता है और भी ज़्यादा दुःख की बात क्या है. वो बीमारियां जिनको वैक्सीन लगवाकर आसानी से रोका जा सकता है, वो बीमारियां अभी भी मौजूद हैं. लोग उनसे मर रहे हैं. क्यों? जानकारी की कमी के चलते. वैक्सीन न लगवाने की ज़िद के चलते.
एक शख्स हैं विकास. पटना के रहने वाले हैं. सरकार के बनाए गए इम्यूनाईजेशन प्रोग्राम के लिए काम करते हैं. यानी बच्चों को दिए जाने वाले ज़रूरी टीकाकरण से जुड़े हुए काम. विकास का हमें मेल आया एक बहुत ही ख़तरनाक बीमारी की जानकारी के साथ. इसका नाम है 'व्हूपिंग कॉफ़' जिसे आप काली खांसी के नाम से भी जानते हैं. ये ज़्यादातर बच्चों में पाई जाती है. ये काली खांसी कितनी ख़तरनाक है, इसके बारे में हम आपको आगे बताएंगे. सरकार बहुत सालों से इस बीमारी को देश से मिटाने की कोशिश कर रही हैं, पर नाकाम रही है. इस बीमारी की वैक्सीन उपलब्ध है, फिर भी लोग अपने बच्चों को नहीं लगवाते.
पिछले कुछ सालों के दौरान देश में काली खांसी के केस बढ़े हैं. साल 2001 से 2020 के बीच काली खांसी के मामलों में उछाल आया है. केवल 2020 में काली खांसी के 12,566 मामले सामने आए थे.
विकास चाहते हैं कि हम काली खांसी पर एक एपिसोड बनाएं. ये क्या होती है, कितनी ख़तरनाक है, इससे कैसे बच सकते हैं, ये सारी जानकारी लोगों को दें. ताकि आप अपने बच्चों को इससे बचा सकें. तो सबसे पहले समझ लीजिए काली खांसी होती क्या है? 'व्हूपिंग कॉफ़' क्या होता है? ये हमें बताया डॉक्टर नीतू तलवार ने.
डॉक्टर नीतू तलवार, एडिशनल डायरेक्टर, पीडियाट्रिक पल्मोनोलॉजी, फ़ोर्टिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम
-व्हूपिंग कॉफ़ को हम काली खांसी के नाम से भी जानते हैं
-काली खांसी एक बहुत ही गंभीर संक्रमण है
-ख़ासकर दो साल से छोटे बच्चों में
-गर्भवती महिलाओं में
-और बुज़ुर्गों में ये इन्फेक्शन सीरियस हो सकता है कारण -व्हूपिंग कॉफ़ या काली खांसी एक बैक्टीरिया के कारण होती है
-जिसका नाम है बोर्डेटेला पर्टुसिस लक्षण -इन्फेक्शन होने के बाद पहले हफ़्ते में एक आम वायरल फ्लू जैसे लक्षण होते हैं
-जिसमें बुखार आता है
-नाक बहती है
-खांसी आती है
-सुस्ती होती है
-कम भूख लगना जैसे लक्षण दिखते हैं
-5-6 दिन बाद ये इन्फेक्शन एक गंभीर रूप ले लेता है
-लगातार खांसी आती है
-खांसी के बीच सांस लेने पर आवाज़ आती है
-इसी आवाज़ की वजह से इस बीमारी का नाम 'व्हूपिंग कॉफ़' पड़ा है
-खांसी इतनी ज़्यादा होती है कि मुंह लाल हो जाता है
व्हूपिंग कॉफ़ या काली खांसी एक बैक्टीरिया के कारण होती है
-चेहरे और आंखों में नसें फटने लगती हैं, जिसकी वजह से चेहरा और आंखें लाल हो जाती हैं
-खांसी इतनी ज़्यादा आती है कि कभी-कभी पसलियों में फ्रैक्चर हो जाता है
-पेट पर प्रेशर पड़ने के कारण हर्निया हो जाता है
-सांस लेने में दिक्कत आती है
-ऑक्सीजन लेवल कम हो जाता है
-शरीर नीला पड़ने लगता है
-कभी-कभी दौरे भी पड़ सकते हैं
-क्योंकि खून में ऑक्सीजन की मात्रा काफ़ी कम हो जाती है
-ये खांसी 3-4 हफ़्तों तक लगातार चलती है बचाव -इस बीमारी से बचने के लिए वैक्सीन एक आसान, सेफ़ और सबसे सस्ता तरीका है
-पैदा होने के 6, 10 और 14 हफ़्ते पर बच्चे को इस बीमारी के टीके लगवाएं
-डीपीटी के साथ काली खांसी का टीका भी लगाया जाता है
चेहरे और आंखों में नसें फटने लगती हैं जिसकी वजह से चेहरा और आंखें लाल हो जाती हैं
-ये टीके सरकारी अस्पतालों में बिलकुल मुफ़्त लगते हैं
-इसलिए अपने बच्चों को ये टीके ज़रूर लगवाएं
-पहले 3 टीकों के बाद, डेढ़ साल और 5 साल पर बूस्टर डोज़ लगाया जाता है
-जिसके बाद बच्चे काफ़ी सुरक्षित हो जाते हैं इलाज -अगर बच्चा बहुत सीरियस नहीं है
-खाना-पीना 50 प्रतिशत तक कर सकता है
-थोड़ा-बहुत एक्टिव है
-तब घर पर इलाज कर सकते हैं
-बच्चे को ज़्यादा मात्रा में पानी दें
-फ्लूइड दें
-खान-पान पर ध्यान दें
-डॉक्टर से सलाह लेकर एंटीबायोटिक दें
-अगर बच्चे की हालत ठीक नहीं है तो उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती करें
इन्फेक्शन होने के बाद पहले हफ़्ते में एक आम वायरल फ्लू जैसे लक्षण होते हैं
-ऐसे में ग्लूकोज़ चढ़ता है
-एंटीबायोटिक दिए जाते हैं
-ऑक्सीजन की ज़रुरत पड़ सकती है
-निमोनिया का इलाज हो सकता है
-बच्चे की जान बच सकती है, इसलिए बिलकुल लापरवाही न करें
-टीकाकरण का कागज़ चेक करें
-अपने बच्चों को इस बीमारी का टीका ज़रूर लगवाएं
-अगर बच्चा बड़ा हो गया है, 1-2 साल का हो गया और उसको 1 भी टीका नहीं लगा है, फिर भी इसकी शुरुआत हो सकती है और बचाव जो सकता है कौन सी वैक्सीन लगवानी है -ये टीका डीपीटी के नाम से जाना जाता है
-डीपीटी यानी डिप्थीरिया, पर्टुसिस और टेटनस
-पर्टुसिस यानी काली खांसी पैदा करने वाला कीटाणु
-डीपीटी का टीका सारे सरकारी अस्पतालों और हेल्थ सेंटर में लगता है
-अपने बच्चों को ये टीका ज़रूर लगवाएं
काली खांसी कितनी ख़तरनाक है, ये तो आपको समझ में आ ही गया होगा. इसका बचाव बहुत ही आसान है. एक वैक्सीन. इसलिए अपने बच्चों को ये वैक्सीन ज़रूर लगवाएं. अपने बच्चों को इस बीमारी से बचाएं.