इस औरत को कुछ भी न भूल पाने की बीमारी है, जन्म के ठीक बाद का भी सब याद है
ये सुनने में जितना क्यूट लगता है, असल में उतना की खतरनाक है.
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रेबेका को कई जगहों पर अपने अनुभव शेयर करने के लिए भी बुलाया जाता है. ऊपर दिख रही तस्वीर में दाईं तरफ रेबेका के बचपन की तस्वीर है. (तस्वीर: फेसबुक)
आपकी पहली याद क्या है? सबसे पहली, बचपन की. स्कूल का पहला दिन?या उससे भी पहले? अपना बोला हुआ पहला शब्द याद है आपको? पहला कदम? या फिर पहली बार गिरकर रोना?
सोचिए अगर आपको ये सब याद हो तो?
30 साल की रेबेका शैरॉक के साथ कुछ ऐसा ही होता है. रेबेका ऑस्ट्रेलिया की हैं. उन्हें अपने पहले जन्मदिन से लेकर अभी तक की सारी बातें याद हैं. वो भी पूरी डीटेल के साथ. यकीन नहीं होता तो BBC को दिए उनके इंटरव्यू की ये लाइन पढ़िए:
जब मैं एक हफ्ते की थी, मुझे याद है कि मैं एक गुलाबी कम्बल में थी. मुझे हमेशा पता चल जाता था जब भी मेरी मां मुझे गोद में लिए होती थीं. मुझे बस पता चल जाता था और वो मेरी फेवरेट व्यक्ति थीं’.रेबेका अपने चलने की पहली याद के बारे में बताते हुए कहती हैं,
‘मैं अपने पालने में होती थी, और सिर घुमा कर आस-पास की चीज़ें देखती थीं. जैसे पालने के पास रखा स्टैंड अप पंखा. मुझे उसे देखकर बहुत अच्छा लगता था जब मैं डेढ़ साल कि हुई तो मेरे दिमाग में ख्याल आया, क्यों न उठ के जाऊं और उसको देखूं ये चीज़ क्या है’.ये सुनकर आपको अजीब लग रहा होगा. लेकिन रेबेका को ये सारी बातें इसलिए याद रहती हैं क्योंकि उन्हें एक कंडीशन है. जिसे कहा जाता है 'हाइली सुपीरियर ऑटोबायोग्राफिकल मेमोरी'. यानी HSAM. इसको हाइपरथाइमीसिया भी कहते हैं. पूरी दुनिया में अभी तक ऐसे 60 लोगों को ही ये कंडीशन डिटेक्ट हुई है. रेबेका को पहले लगता था कि ये नॉर्मल है. कि सभी लोग उन्हीं की तरह सब कुछ याद रख पाते हैं. लेकिन उन्होंने 2011 में एक TV शो देखा जिसमें उनके जैसे ही लोगों के बारे में बात हो रही थी. तब उन्होंने अपने पेरेंट्स से पूछा कि सब लोग इसे इतना अमेजिंग क्यों बता रहे हैं? तब उनके पेर्र्नट्स ने उन्हें बताया कि ये नॉर्मल नहीं है और शायद रेबेका को भी ये कंडीशन हो सकती है.रेबेका के बचपन की एक तस्वीर. (तस्वीर: फेसबुक)
क्या होता है HSAM में?
इस कंडीशन पर रीसर्च अभी बेहद कम है. लेकिन जितनी उपलब्ध है उससे ये सामने आया है कि जिन लोगों को ये कंडीशन होती है उनके दिमाग के कुछ हिस्से आम लोगों के दिमाग के मुकाबले थोड़े से बड़े होते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में न्यूरोबायोलॉजी के प्रोफ़ेसर डॉक्टर जेम्स मैकगॉ ने सुपर ऑटोबायोग्राफिकल मेमोरी के बारे में पहली बार बात की. उनके साथ काम करने वाले न्यूरोसाइंटिस्ट डॉक्टर लैरी काहिल ने HSAM कंडीशन वाले लोगों के दिमाग का MRI किया. उसे स्टडी करके बताया कि ऐसे लोगों के दिमाग का टेम्पोरल लोब (Temporal Lobe) थोड़ा बड़ा है. ये दिमाग का वो हिस्सा है जिसके बारे में साइंटिस्ट्स का मानना है कि ये नई मेमोरीज को स्टोर करता है.

रेबेका पहली ऐसी व्यक्ति नहीं हैं जिनको ये कंडीशन हो. इस फील्ड में सबसे पहला नाम आता है जिल प्राइस नाम की महिला का. जो HSAM से डायग्नोस हुई थीं. जिल अमेरिका के कैलिफोर्निया नाम के राज्य की हैं. इस वक़्त उनकी उम्र 55 साल के आस पास है. वो चौदह साल की उम्र के बाद से अपने जीवन की हर एक डीटेल याद रखती हैं. इस पूरे मुद्दे पर उन्होंने एक किताब भी लिखी है.
जो लोग भी इस कंडीशन के होने का दावा करते हैं, उनको लेकर एक रिगरस टेस्टिंग की जाती है. इस बारे में रेबेका ने Vice को एक इंटरव्यू दिया था. इसमें उन्होंने प्रोसेस के बारे में बताते हुए कहा,
ये एक बहुत लम्बी प्रक्रिया है, मेरे पेरेंट्स ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के मैकगॉ/ स्टार्क लैब से संपर्क किया. इसी लैब में साल 2006 में HSAM की खोज हुई थी. और आप सिर्फ और सिर्फ यहीं डायग्नोस किए जा सकते हैं. पूरी प्रक्रिया में कई साल लगे. मुझे कई टेस्ट्स से गुजरना पड़ा. ब्रेन स्कैन्स कराने पड़े. वो लोग टेस्टिंग प्रोसेस की शुरुआत में कुछ सवाल पूछते थे, रिकॉर्ड करते थे. दो साल बाद पूछते थे कि मैंने जवाब में उनसे क्या कहा था. बिलकुल वैसे का वैसा. पहले तो मैं टेस्ट को लेकर बहुत घबराई हुई थी क्योंकि उन्होंने मुझसे कहा था कि अधिकतर लोग फेल हो जाते हैं. जब उनसे पूछा जाता है कि हफ्ते के किस दिन कौन-सी घटनाएं हुई थीं. लेकिन मैं पास हो गई.क्या दिक्कतें आती हैं?
CBS न्यूज में छपी रिपोर्ट के अनुसार HSAM से डायग्नोस होने वाले पहली महिला जिल प्राइस अपनी ढेर सारी यादों से हमेशा परेशान रहती हैं. रेबेका ने भी अपने इंटरव्यू में बताया कि उनकी मेंटल हेल्थ डिप्रेशन और एंग्जायटी से प्रभावित है. उनकी मेमोरी की वजह से उन्हें ऐसा लगता है कि वो एक इमोशनल टाइम मशीन में हैं. अगर उन्हें कुछ ऐसा याद आता है जब वो तीन साल की थीं, तब उस चीज़ को लेकर उनका रिएक्शन तीन साल के बच्चे वाला ही होता है. लेकिन वो लगातार कोशिश करती हैं कि वो पॉजिटिव मेमोरीज को इस्तेमाल करके अपनी निगेटिव मेमोरीज का असर कम कर सकें.

रेबेका बताती हैं कि उन्हें लगातर बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है. उन्हें करेंट अफेयर्स के बारे में पढ़ते रहना पड़ता है ताकि वो आगे मेमोरी टेस्ट्स दे सकें. अगर कोई बुरी खबर या वो टीवी न्यूज पर देख लेती हैं तो वो उन्हें बहुत परेशान कर देता है और उनके मन में छप जाता है. रेबेका अपनी घबराहट को कंट्रोल करने के लिए दवाइयां लेती हैं. उनके थेरेपिस्ट भी उन्हें इन सिचुएशंस से डील करने में मदद करते हैं.
HSAM पर अभी भी रीसर्च चल रही है. आगे चलकर शायद साइंस बता पाए कि क्या बुरी मेमोरीज को कंट्रोल करने का कोई उपाय इन लोगों को नसीब हो पायेगा.