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कमल हासन का ये चुनावी वादा मोदी के वैक्सीन लगाने वाले वादे को भी फ़ेल कर रहा है

तमिलनाडु चुनाव के मद्देनजर कमल हासन ने महिलाओं से किया है वादा.

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कमल हसन का मानना है कि महिलाओं की मेहनत को आजतक ना तो पहचाना गया और ना ही उसका मेहनताना दिया गया.
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मुरारी
22 दिसंबर 2020 (Updated: 22 दिसंबर 2020, 01:01 PM IST) कॉमेंट्स
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'जिस दिन महिला श्रम का हिसाब होगा उस दिन मानव इतिहास की सबसे बड़ी चोरी पकड़ी जाएगी' यह कहा था जर्मनी की एक बहुत बड़ी क्रांतिकारी नेता रोजा लक्जमबर्ग ने. उनका यह कथन आज भी अपने अंदर एक कड़वी सच्चाई समेटे हुए है. वो ये कि समाज में, सिस्टम में, औरतों द्वारा किए जाने वाले काम को पहचान नहीं मिलती. वे सुबह से लेकर शाम तक जी तोड़ मेहनत करती हैं, लेकिन कहा यही जाता है कि असली काम तो पुरुष करते हैं. "तुम करती ही क्या हो, चूल्हा-चौका. कभी बाहर निकलकर देखो तो पता चेलगा कितना काम पड़ता है." औरतों के काम को काम नहीं माना जाता. उसका मेहनताना नहीं दिया जाता. इसे अकादमिक भाषा में 'अनपेड लेबर' (Unpaid Labour) कहते हैं. आप सोच रहे होंगे कि मैं ये सब रेडिकल बातें आपको क्यों बता रहा हूं? दरअसल, आगामी तमिलनाडु चुनाव के मद्देनजर अभिनेता से नेता बने कमल हासन ने एक वादा किया है. उन्होंने कहा है कि अगर उनकी पार्टी मक्कल नीदि मय्यम (एमएनएम) राज्य की सत्ता पर काबिज होती है, तो वे घरेलू कामकाज करने वाली महिलाओं को मेहनताना देंगे. हासन का कहना है कि घरेलू कामकाज में लगी स्त्रियों की मेहनत को आजतक ना तो पहचाना गया है और ना ही उन्हें इसका मेहनताना दिया गया. वे मेहनताना देकर ऐसी महिलाओं को सम्मानित करेंगे.

क्या है अनपेड लेबर?

हमारी-आपकी माएं, बहनें, प्रेमिकाएं, पत्नियां, बुआ, चाची, दादी, नानी, मौसी इत्यादि जैसी कई महिलाएं आज भी घर के काम करती हैं. खाना पकाना, कपड़े धोना, सब्जी लाना, सिलाई करना, साफ-सफाई, देखभाल, ये सब उनके घरेलू काम होते हैं. गांव देहात में तो औरतें लंबी-लंबी दूरियों से पानी और ईंधन भी लाती हैं. खेतों में भी हाथ बंटाती हैं. देखा जाए तो ये सब हैं मेहनत के काम, लेकिन इनका मेहनताना नहीं है. क्योंकि समाज में मान लिया गया है कि ये सब काम तो औरतों की ही जिम्मेदारी हैं, इसलिए अर्थव्यवस्था में इनकी भूमिका नहीं है. वैसे कई पुरुष भी अनपेड लेबर करते हैं. हालांकि, महिलाओं के मुकाबले उनकी संख्या और हिस्सा बहुत कम है. आगे आने वाले डेटा से यह बात साफ हो जाएगी.

डेटा क्या कहता है?

ताज़ा आंकड़े देश के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की तरफ से आए हैं. इन आंकड़ों को 'टाइम यूज सर्वे' के शीर्षक के तहत इस साल सितंबर में जारी किया गया है. सर्वे कहता है-
"भारत में महिलाओं को अपने कुल काम के 84 फीसदी घंटे अनपेड लेबर में खर्च करने पड़ते हैं. वहीं इसके उलट पुरुष 80 फीसदी घंटे पेड लेबर में देते हैं. जहां, केवल 21 फीसदी महिलाएं ही अपने काम का मेहनताना पाती हैं. वहीं इसके मुकाबले मेहनाता पाने वाले पुरुषों का हिस्सा 80 फीसदी है. पेड और अनपेड लेबर में पुरुषों के 73 फीसदी के मुकाबले महिलाओं का हिस्सा 84 प्रतिशत है."
इसी तरह वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में महिलाओं का 66 फीसदी काम अनपेड लेबर होता है. महिलाएं दिन के 352 मिनट घरेलू कामकाज में खर्च करती हैं, जबकि पुरुष सिर्फ 52 मिनट. भारत में महिलाओं के कामकाज को किस तरह से नजरंदाज किया जाता है, उसका अंदाजा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक रिपोर्ट से लगाया जा सकता है. यह रिपोर्ट कहती है कि अगर महिलाओं के अनपेड लेबर को देश की जीडीपी में जोड़ दिया जाए तो इसमें 27 फीसदी की बढ़ोतरी हो जाए. महिलाओं के ऊपर घरेलू काम का इतना बोझ होता है कि वे अपने लिए बाहर कामकाज ही नहीं खोज पातीं. इस वजह से भी अनपेड लेबर करने वाली महिलाओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट की मानें तो-
"पिछले 20 साल में भारत में बाहरी कामकाज में लगीं महिलाओं की संख्या में 30 फीसदी की गिरावट आई है. यानी तीन में से एक महिला ने पेड लेबर को छोड़ दिया. इस मामले में केवल यमन, ईराक, जॉर्डन, सीरिया, अल्जीरिया, ईरान जैसे देशों की हालत ही हमसे खराब है."
देश ही नहीं, दुनियाभर में महिलाओं की हालत कमोबेश ऐसी ही है. इस साल जनवरी में आई ऑक्सफैम की रिपोर्ट बताती है कि पूरी दुनिया में महिलाएं और लड़कियां हर दिन 12.5 अरब घंटे अनपेड लेबर में खर्च करती हैं. विश्व भर में पुरुषों के पास महिलाओं के मुकाबले 50 प्रतिशत अधिक संपत्ति है. महिलाएं हर साल लगभग 800 हजार करोड़ रुपयों की कीमत का अनपेड लेबर करती हैं. यह दुनिया की टेक इंडस्ड्री की वैल्यू का तीन गुना है. इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि अनपेड लेबर की वजह से ही दुनिया भर की महिलाओं के मानवाधिकारों का हनन होता है. घरेलू कामकाज का भारी भरकम दबाव उन्हें दूसरे काम करने से रोकता है. वह उनके पेड लेबर में बाधा बनता है. उनकी शिक्षा और आगे बढ़ने के अवसर में रुकावट डालता है. इसकी वजह से लड़कियां कैद हो जाती हैं. महिलाएं सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले पातीं और इस वजह से पुरुषों द्वारा नियंत्रित की जाती हैं. अनपेड लेबर पर चर्चा कई साल से हो रही है. लेकिन इंडिया जैसे देश में इस तरह का कोई वादा किया जाना एक नई बात है. अगर कमल हासन की पार्टी MNM सचमुच इस दिशा में कुछ करती है. तो देखने लायक होगा कि ये किस रूप में किया जाता है. कुछ किया भी जाता है या खोखला वादा निकलता है.

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