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पत्नी बोली- पति सेक्स स्लेव की तरह रखता है, रेप करता है; सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पर रोक लगा दी

कर्नाटक हाई कोर्ट ने आरोपी पति के खिलाफ केस चलाने का फैसला दिया था.

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इस केस में महिला ने आरोप लगाए थे कि उनका पति उन्हें सेक्स स्लेव की तरह ट्रीट करता था. (फोटो - File)
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सोम शेखर
20 जुलाई 2022 (Updated: 20 जुलाई 2022, 04:29 PM IST) कॉमेंट्स
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कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने इस साल मार्च में एक फ़ैसला सुनाया था. पत्नी के बलात्कार के आरोपी शख्स पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 18 जुलाई को इसी फ़ैसले पर रोक लगा दी है. बेंगलुरु ट्रायल कोर्ट में व्यक्ति पर आपराधिक कार्यवाही चल रही थी. CJI एनवी रमण की अगुवाई वाली एक बेंच ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है. बेंच ने कहा,

"अगले आदेश तक कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश और इस मामले के संबंध में आगे की कार्यवाही पर अंतरिम रोक रहेगी."

बेंच इस मामले पर एक हफ़्ते बाद फिर सुनवाई करेगी.

Marital Rape का केस क्या है?

इस केस का नाम है हृषिकेश साहू बनाम कर्नाटक राज्य. शादी के कुछ सालों बाद ही हृषिकेश और उनकी पत्नी के संबंध ख़राब हो गए. हृषिकेश पर अपनी पत्नी का शारीरिक और यौन शोषण करने का आरोप है. पत्नी ने हृषिकेश के ख़िलाफ़ धारा 506 (आपराधिक धमकी), 498-ए (पत्नी के प्रति क्रूरता) 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) और 377 की संबंधित धाराओं के तहत शिकायत दर्ज कराई थी. महिला का कहना था कि शादी के बाद से ही उनका पति उन्हें सेक्स स्लेव की तरह ट्रीट करता था. ये आरोप भी लगाए थे कि उनके पति का व्यवहार अमानवीय था और वो बेटी के सामने भी ज़बरदस्ती अननैचुरल संबंध बनाता था.

बेंगलुरु ट्रायल कोर्ट ने आरोपी पति के ख़िलाफ़ IPC की संबंधित धाराओं के तहत आरोप तय किए. पति ने केस को रद्द करने के लिए कर्नाटक हाई कोर्ट का रुख किया.

23 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोप को हटाने से इनकार कर दिया. कहा,

"एक संस्था के तौर पर शादी किसी भी तरह की मेल प्रिविलेज न तो देती है, न दे सकती है. अदालत के नज़रिए में इसका ऐसा कोई अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए और न ही इसे महिला के ऊपर एक खतरनाक जानवर को छोड़ देने का लाइसेंस माना जाना चाहिए. अगर रेप के लिए किसी पुरुष को सज़ा दी जाती है, तो रेप के लिए हर पुरुष को सज़ा मिलनी चाहिए. चाहे वो पति ही क्यों न हो."

जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल बेंच ने ये भी कहा था कि अगर कोई पुरुष सिर्फ इसलिए रेप के आरोपों से छूट जाता है कि वो विक्टिम का पति है, तो इसका मतलब कि क़ानून में ग़ैर-बराबरी है.  ये भी कहा कि अब वक़्त आ गया है कि सदियों से चले आ रहे उस विचार और परंपरा को बदला जाए, जो पति को पत्नी के शरीर, मन और आत्मा का स्वामी मानता है.

इस फ़ैसले और फ़ैसले के दौरान की गई टिपण्णियों की ख़ूब तारीफ़ हुई थी. क्यों? वजह है..

भारत में मैरिटल रेप को लेकर क़ानून

IPC की धारा 375 के मुताबिक़, किसी महिला के साथ उसकी सहमति के बिना संबंध बनाना, उसे धमकाकर, धोखे में रखकर, नशे की हालत में सेक्स के लिए राज़ी करना या किसी नाबालिग से संबंध बनाना रेप के दायरे में आएगा. लेकिन इसमें एक एक्सेप्शन है, जो कहता है कि पति द्वारा पत्नी के साथ संबंध बनाना रेप के दायरे में नहीं आएगा.

दिल्ली हाईकोर्ट में कुछ वक़्त पहले इसी एक्सेप्शन को हटाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई. 11 मई को दिल्ली हाई में मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में डालने की मांग करने वाली याचिकाओं पर फैसला आया. फैसला भी क्या आया! दो जजों की बेंच थी. दोनों ने अलग-अलग बातें कह दीं. एक ने कहा अपराध है, दूसरे ने कहा नहीं है. इसको क़ानून की भाषा में 'स्प्लिट वर्डिक्ट' कहा जाता है.

अब ये याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में जानी हैं. तब ही इस मसले पर कुछ फ़ुल-ऐंड-फ़ाइनल आने की उम्मीद है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस हालिया स्टे ऑर्डर से ये साफ़ नहीं हो रहा कि देश का सर्वोच्च न्यायालय किस पाले खड़ा है. 

कर्नाटक हाई कोर्ट ने मैरिटल रेप पर ज़रूरी फ़ैसला दिया है

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