जो लोग देख नहीं सकते, क्या उन्हें कोरोना की वैक्सीन सबसे पहले मिलनी चाहिए?
जानिए, कोरोना काल में क्या है दृष्टिहीन लोगों की सबसे बड़ी दिक्कत.
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जितनी भी कोविड की वैक्सीन बन रही हैं उनमें डिमांड और सप्लाई में काफ़ी अंतर है
कोरोना. इससे बचने के लिए दो सलाह दी जाती हैं. मास्क पहनना. और चीज़ों या लोगों को कम से कम छूना. आपको याद है जब कोरोना नया-नया शुरू हुआ था. तब हाथ मिलाने के बजाय सबको नमस्ते करने की सलाह दी जा रही थी. देश-विदेश के बड़े-बड़े नेता भी एक दूसरे से ऐसे ही मिल रहे थे. मकसद था कि आप चीज़ों को, लोगों को कम से कम छुएं. यही एक तरीका था वायरस से बचने का.
अब मिलिए 11 साल की अंजली से. ये देख नहीं सकती.

सांकेतिक तस्वीर
और
मिलिए 35 साल की कनिका से.
ये भी देख नहीं पातीं. अंजली और कनिका जैसे हज़ारों, लाखों लोग हैं जो देख नहीं सकते. उनका सर्वाइवल निर्भर करता है सेंस ऑफ़ टच पर. यानी चीज़ों को छूकर, उन्हें जानना. लोगों को छूकर उन्हें पहचानना. अब ऐसे लोगों के लिए कोरोना में जीना बहुत मुश्किल है. बिना छुए कैसे जिए. और छू रहे हैं तो कोरोना से जान को ख़तरा.
उम्मीद है भारत में भी ये वैक्सीन जल्द आ जाएगी. पर पूरे देश में हर इंसान को जल्द से जल्द लग जाए, ये प्रक्टिकैली मुमकिन नहीं है. तो वो लोग कौन हैं जिन्हें ये वैक्सीन पहले लगनी चाहिए. नेत्रहीन लोगों को ये वैक्सीन कब लगेगी, इसको लेकर कोई बातचीत नहीं हो रही. इस बारे में हमने बात की सकीना बेदी से. वो देख नहीं सकतीं. उन्हें भी कोरोना हुआ था. अच्छी बात ये है कि वो ठीक हो गईं. उनके पति. वो भी नहीं देख पाते थे. उन्हें भी कोरोना हुआ. वो बच नहीं पाए. इसलिए आज सकीना लोगों के सामने विजुअली चैलेंज्ड ग्रुप की दिक्कतें लाना चाहती हैं. उन लोगों की जो देख नहीं सकते. सुनिए वो क्या कहना चाहती हैं.

सकीना बेदी, प्रोजेक्ट डायरेक्टर, राष्ट्रीय दृष्टिहीन महासंघ, महाराष्ट्र
कोरोना की वैक्सीन नेत्रहीन लोगों को जल्दी मिलना क्यों ज़रूरी है?
इस महामारी में सबसे मुश्किल चीज़ रही है चीज़ों को छूने से बचना. इस वजह से एक ऐसा वर्ग है जो काफ़ी प्रभावित हुआ है. अंध-अपंग व्यक्ति. हम वैक्सीन देने की बात कर रहे हैं उसमें सोचा गया है कि बड़े-बुज़ुर्ग, हेल्थकेयर वर्कर्स, डॉक्टर्स को ये वैक्सीन पहले मिलनी चाहिए. लेकिन इनके साथ ही अंध-अपंग प्रवर्ग को भी प्रायोरिटी मिलनी चाहिए सरकार की तरफ़ से. क्योंकि हमारी पूरी ज़िंदगी छूने पर निर्भर है. हमें छोटे-छोटे काम करते समय समाज की मदद की आवश्यकता होती है. रास्ता क्रॉस कर रहे हैं तो किसी की मदद चाहिए. सब्जियां या फल ख़रीदने हैं तो उन्हें छूकर देखना पड़ता है. कपड़े ख़रीदने हैं तो उसे छूना पड़ता है.
इस बीमारी से बचने के लिए चीज़ों को छूने से बचना है. ऐसे में हम लोग कैसे जिएं. मेरे पास जो फ़िगर हैं, उनसे पता चलता है कि महाराष्ट्र में आठ हज़ार अंध-अपंग व्यक्ति जो हमारी संस्था के मेंबर्स हैं उनमें से 150 लोगों को कोविड हो गया था, जिनमें से 50 लोगों की मौत हो गई. ये नंबर काफ़ी हाई है. ये साबित करता है कि ये ग्रुप हाई रिस्क में आता है. इस ग्रुप को वैक्सीन मिलना ज़रूरी है. सरकार से विनती है कि वैक्सीन के लिए इस ग्रुप को भी ध्यान में रखा जाए.
आपने सकीना की बातें सुनीं. उनके तर्क सुने. यही सवाल हमने पूछे डॉक्टर मोनिका लांबा से. वो साइंटिस्ट हैं. और वैक्सीन की टेस्टिंग से जुड़ी ज़रूरी जानकारी से वाकिफ़ हैं. जानिए उन्होंने क्या बताया.

डॉक्टर मोनिका लंबा, साइंटिस्ट, बेल्जियम
-जितनी भी कोविड की वैक्सीन बन रही हैं उनमें डिमांड और सप्लाई में काफ़ी अंतर है. जब तक ये अंतर कम नहीं होता, तब तक हर देश का वो वर्ग जो संवेदनशील है उन्हें प्राथमिकता मिलनी चाहिए. अति संवेदनशील वर्ग किसी भी कारण से हो सकता है. जैसे काम के कारण फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर, बुज़ुर्ग, या डाइबीटीज़, अस्थमा, कैंसर के मरीज़ या फिर अंध-अपंग वर्ग. इन सभी वर्गों को कोविड वैक्सीन की प्राथमिकता देनी चाहिए.
कोरोना की वैक्सीन भारत में आने के बाद किसको पहले देने की बातें हो रही हैं?
-हर समाज में जो संवेदनशील वर्ग हैं उन्हें प्राथमिकता दी जा रही है
-इसी तरह भारत ने भी एक सूची तैयार की है जिसमें जो संवेदनशील वर्ग हैं उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी
-इनमें फ्रंट लाइन हेल्थ वर्कर्स, पुलिसकर्मी, जवान, वृद्ध लोग जिनकी उम्र 50 या 60 साल से ऊपर है, शामिल हैं

-कोविड की वैक्सीन की डिलिवरी के लिए सरकार ने एक डिजिटल प्लैटफॉर्म भी तैयार किया है
-इसके अलावा भारत में जो यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम) चलता है उसके तहत जितनी मिडवाइफ या नर्सेज हैं उन्हें भी वैक्सीन डिलीवरी के लिए ट्रेन किया जाएगा
ट्रायल में किसको शामिल किया गया है?
-दुनियाभर में जो भी मॉडर्ना या फाइज़र के ट्रायल हुए हैं उनमें जवान लोग और जिनकी उम्र ज़्यादा है, उन्हें शामिल किया गया था
-ज़रूरी बात ये है कि इन सभी ट्रायल में बच्चों को, गर्भवती महिलाओं को और जिन लोगों को कैंसर है, उन्हें नहीं शामिल किया गया था
-मॉडर्ना ने कहा है कि जनवरी से वो ये ट्रायल बच्चों पर भी कर सकते हैं
-डेटा इसका आगे आएगा
-भारत में वैक्सीन के जो ट्रायल हुए हैं उसका डेटा भारत की रेग्युलेटरी एजेंसी के पास है
आपने सकीना बेदी और डॉक्टर मोनिका लंबा की बातें सुन लीं. अब आपकी क्या राय है इस मुद्दे पर. हम ज़रूर बताइए.
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