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वो राजकुमारी जिनकी वजह से AIIMS में हम और आप अपना इलाज करवा पाते हैं

राजकुमारी अमृत कौर को Time मैगज़ीन ने 1947 के लिए वुमन ऑफ द ईयर चुना है.

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बाईं तरफ राजकुमारी अमृत कौर की प्रोफाइल फोटो, दाईं तरफ महात्मा गांधी के साथ 1945 के दौरान शिमला में राजकुमारी अमृत कौर. (तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स)
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7 मार्च 2020 (Updated: 7 मार्च 2020, 12:59 PM IST) कॉमेंट्स
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टाइम मैगज़ीन. काफी नामदार मैगजीन है अंग्रेजी की. इनका ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ टाइटल बहुत मशहूर है. वही, जिसके लिए हर साल मोदी जी को वोट देने की बात होती है. अब तो पहचान ही गए होंगे. खैर. इस मैगज़ीन की एक लिस्ट आई है. पिछले सौ सालों में दुनिया की सबसे प्रभावशाली और ताकतवर 100 महिलाओं के नाम इसमें शामिल किए गए हैं. हर साल के लिए एक नाम. इस टाइटल को वुमन ऑफ द ईयर कहा  गया है. इसके पीछे की वजह टाइम मैगज़ीन ने ये दी है कि लगातार 72 सालों तक उनकी मैगज़ीन ने ‘मैन ऑफ द ईयर’ का टाइटल दिया. इसमें महिलाओं की अनदेखी होती रही. अब इस वुमन ऑफ द ईयर की लिस्ट के ज़रिये उन सभी महिलाओं को उनकी जगह दी जा रही है. उनके सहयोग को पहचान दी जा रही है. जिसे अभी तक अनदेखा रखा गया था. 1999 से टाइम मैगज़ीन ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ टाइटल दे रही है. ताकि इसे जेंडर न्यूट्रल रखा जा सके.
अब बात इस लिस्ट की. भारत से इस लिस्ट में दो नाम हैं. एक तो है इंदिरा गांधी का. जो देश की प्रधानमंत्री रहीं. इन्हें साल 1976 के लिए इस लिस्ट में रखा गया. दूसरा नाम है राजकुमारी अमृत कौर का. जिन्हें साल 1947 के लिए इस लिस्ट में शामिल किया गया.
Rak 1 राजकुमारी अमृत कौर के बारे में मशहूर है कि वो महिलाओं की भागीदारी के लिए नेहरू तक से लड़ गई थीं जब 1936 की कांग्रेस वर्किंग कमिटी में किसी महिला का नाम नहीं रखा गया था. (तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स)

कौन थीं राजकुमारी अमृत कौर?
इनका जन्म 2 फरवरी 1889 को लखनऊ में हुआ था. पिता राजा हरनाम सिंह पंजाब के कपूरथला राज्य के राजसी परिवार से थे. राजकुमारी अमृत कौर ने इंग्लैंड के डोरसेट  में स्थिति शेरबोर्न स्कूल फॉर गर्ल्स से स्कूली पढ़ाई पूरी की थी. अपने स्कूल में जाबड़ खिलाड़ी रहीं. हॉकी से लेकर क्रिकेट तक खेला.स्पोर्ट्स टीमों की कैप्टन भी रहीं. उसके बाद ऑक्सफ़ोर्ड चली गईं अपनी उच्च शिक्षा के लिए. 1918 में वापस आईं तो देश का माहौल देखा. 1919 में जलियांवाला बाग़ हत्याकांड हुआ. उसके बाद राजकुमारी अमृत कौर ने ठान लिया कि पॉलिटिक्स में आकर रहेंगी.
पिता हरनाम सिंह से मिलने उस समय के बड़े लीडर आते रहते थे. जैसे गोपालकृष्ण गोखले इनके पिता के करीबी थे. उनके ज़रिए ही राजकुमारी अमृत कौर को महात्मा गांधी के बारे में जानकारी मिली. उन्होंने माहात्मा गांधी को ख़त लिखने शुरू किए. लेकिन इनके माता-पिता नहीं चाहते थे कि वो आज़ादी की लड़ाई में भाग लें. लेकिन इस वजह ने राजकुमारी अमृत कौर को रोका नहीं. 1927 में मार्गरेट कजिन्स के साथ मिलकर उन्होंने ऑल इंडिया विमेंस कांफ्रेंस की शुरुआत की. बाद में इसकी प्रेसिडेंट भी बनीं.
Rak 4 Kotla Delhi Photo Div Goi विभाजन के दौरान दिल्ली के कोटला में राजकुमारी अमृत कौर. (तस्वीर: फोटो डिविजन ऑफ गवर्नमेंट ऑफ इंडिया)

इनकी लगन देखकर गांधी जी ने राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ने के लिए इन्हें खत लिखा. उस खत में महात्मा गांधी ने लिखा,
मैं एक ऐसी महिला की तलाश में हूं जिसे अपने ध्येय का भान हो. क्या तुम वो महिला हो, क्या तुम वो बन सकती हो?
राजकुमारी अमृत कौर राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ गईं. दांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने की वजह से जेल भी गईं. महात्मा गांधी की सेक्रेटरी के तौर पर इन्होंने करीब 17 सालों तक काम किया. गांधी आश्रम में ही रहा करती थीं.
आज़ादी के बाद इनका योगदान क्या था?
जब देश आज़ाद हुआ, तब उन्होंने यूनाइटेड प्रोविंस के मंडी से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. और जीतीं. ये सीट आज हिमाचल प्रदेश में पड़ती है. सिर्फ चुनाव ही नहीं जीतीं, बल्कि आज़ाद भारत की पहली कैबिनेट में हेल्थ मिनिस्टर भी बनीं. लगातार दस सालों तक इस पद पर बनी रहीं. वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली की प्रेसिडेंट भी बनीं. इनसे पहले कोई भी महिला इस पद तक नहीं पहुंची थी. यही नहीं. इस पद पर पहुंचने वाली वो एशिया से पहली व्यक्ति थीं. स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद उन्होंने कई संस्थान शुरू किए, जैसे

#इंडियन काउंसिल ऑफ चाइल्ड वेलफेयर,

#ट्यूबरक्लोसिस एसोसियेशन ऑफ इंडिया,

#राजकुमारी अमृत कौर कॉलेज ऑफ नर्सिंग, और

#सेन्ट्रल लेप्रोसी एंड रीसर्च इंस्टिट्यूट.

इन सभी के अलावा उन्होंने एक ऐसा संस्थान भी स्थापित करवाया, जो आज देश के सबसे महत्वपूर्ण अस्पतालों में से एक है. ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज. यानी AIIMS. इसके लिए उन्होंने न्यूजीलैंड, जर्मनी, अमेरिका जैसे देशों से फंडिंग का इंतजाम भी किया. शिमला में में अपना पैतृक मकान, मैनरविल, भी उन्होंने AIIMS को दान कर दिया. ताकि वहां की नर्सें यहां आकर छुट्टियां बिता सकें.
Rak 5 Gov House 1949 Burmese Off Wiki Comm 1949 में बर्मा के ऑफ़िशियल्स के साथ गवर्नमेंट हाउस में राजकुमारी अमृत कौर (बीच में साड़ी पहने हुए). (तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स)

75 साल की उम्र में 6 फरवरी, 1964 को राजकुमारी अमृत कौर गुज़र गईं. लेकिन आज़ाद भारत के बनने, और उसके स्वस्थ बने रहने में उनका योगदान एक ऐसी कहानी है, जो सबको पता होनी चाहिए.


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