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बढ़ते प्रदूषण, खराब AQI के चलते बढ़ रहा ब्रेन स्ट्रोक का खतरा, कुछ बातें समझना हम सबके लिए जरूरी

प्रदूषण केवल सांस की बीमारी का नहीं, बल्कि स्ट्रोक का ख़तरा भी बढ़ाते हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ज़्यादा समय तक प्रदूषण में रहना ठीक वैसा ही है, जैसे सिगरेट पीना. कैसे, आज के एपिसोड में इस पर बात करेंगे.

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Brain Stroke
स्ट्रोक पड़ने पर मरीज को हमेशा अस्पताल में ही भर्ती कराएं. (सांकेतिक फोटो)
10 नवंबर 2023 (Updated: 10 नवंबर 2023, 05:53 PM IST) कॉमेंट्स
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अक्टूबर से लेकर दिसंबर. ये तीन महीने अपने साथ जितना अच्छा मौसम लाते हैं, उतनी ही ख़राब हवा (Air Pollution) भी. आप चाहे दिल्ली रहें, मुंबई, पुणे, या लखनऊ. एक बार अपने फ़ोन पर अपने शहर का AQI चेक करिए. AQI यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स. ये आपके शहर में प्रदूषण का स्तर बताता है. हर जगह ये बहुत खराब स्तर पर है. लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है. खांसी, एलर्जी, जुकाम की समस्या है. जिन लोगों को अस्थमा या सांस की बीमारी है, उनका तो और भी बुरा हाल है. 

लेकिन स्मॉग, प्रदूषण केवल सांस की बीमारी का नहीं, बल्कि स्ट्रोक का ख़तरा भी बढ़ाते हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ज़्यादा समय तक प्रदूषण में रहना ठीक वैसा ही है, जैसे सिगरेट पीना. कैसे, आज की स्टोरी में इस पर बात करेंगे. डॉक्टर से जानते हैं कि प्रदूषण की वजह से स्ट्रोक का खतरा कैसे बढ़ जाता है और अगर किसी को स्ट्रोक पड़ रहा हो तो इसकी पहचान कैसे करें? 

स्ट्रोक किन कारणों से पड़ता है?

ये हमें बताया डॉ. भूपेश कुमार ने.

(डॉ. भूपेश कुमार, वैस्कुलर न्यूरोलॉजी, आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम)

- कई बार शरीर का कोई कचरा दिमाग की किसी नस में जाकर फंस जाता है.

- इस वजह से दिमाग को ब्लड और ऑक्सीजन की कमी होने लगती है.

- इससे दिमाग की नस डैमेज हो जाती है, जिसे स्ट्रोक कहा जाता है.

- स्ट्रोक दो तरह का होता है- इस्केमिक स्ट्रोक और हेमोरेजिक स्ट्रोक.

- इस्केमिक स्ट्रोक में शरीर के कचरे की वजह से दिमाग की नस ब्लॉक हो जाती है. इस ब्लॉकेज की वजह से डैमेज होता है.

- वहीं हेमोरेजिक स्ट्रोक में दिमाग की नस किसी वजह से फट जाती है.

- स्ट्रोक कई वजहों से हो सकता है.

- सबसे पहला कारण है धूम्रपान. इसकी वजह से दिमाग की नसें कमजोर पड़ जाती हैं.

- इस वजह से वो पर्याप्त मात्रा में खून और ऑक्सीजन सप्लाई नहीं कर पातीं. ये स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा देता है.

- दूसरा कारण है शराब. ज्यादा शराब पीने से फैटी लिवर की समस्या हो जाती है.

- इस कारण से शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है. इससे स्ट्रोक आने का खतरा बढ़ जाता है.

- तीसरी वजह है दिल की बीमारियां.

- अगर आपको पहले से दिल की कोई बीमारी है या बाईपास सर्जरी या एंजियोप्लास्टी हुई है तो स्ट्रोक का खतरा और बढ़ जाता है.

- चौथा कारण है डायबिटीज. इसकी वजह से नसें कमजोर हो जाती हैं.

- पांचवीं वजह है हाई ब्लड प्रेशर, जिसके कारण दिमाग में ब्लीडिंग होने का खतरा होता है.

- बीपी की दवाई समय से नहीं खा रहे हैं या दवाइयां बीच में छोड़ने से भी स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.

प्रदूषण कैसे स्ट्रोक के ख़तरे को बढ़ा रहा है?

- वायु प्रदूषण में PM2.5 से लेकर PM10 के आकार वाले प्रदूषण के कणों से ज्यादा खतरा है.

- यानी वातावरण में मौजूद प्रदूषण के वो कण जिनका आकार 2.5 माइक्रोन से 10 माइक्रोन के बीच है.

- ये कण सांस के साथ शरीर के अंदर पहुंच जाते हैं, जिस वजह से सांस से जुड़ी समस्याएं होने लगती हैं.

- लंबे समय तक वायु प्रदूषण में रहने की वजह से नसें सिकुड़ने लगती हैं.

- जितना नुकसान एक धूम्रपान करने वाले व्यक्ति को होता है, उतना ही नुकसान बिना धूम्रपान किए लंबे समय तक प्रदूषण में रहने से होता है.

- इस वजह से स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.

- कई बार प्रदूषण की वजह से शरीर में सूजन आ जाती है. इस वजह से भी स्ट्रोक आ सकता है.

- प्रदूषण की वजह से दिल, फेफड़ों और सांस से जुड़ी बीमारी हो सकती है.

- ये भी स्ट्रोक आने की एक बड़ी वजह है.

अगर किसी को अचानक दौरा पड़े तो क्या करें?

- इसके लिए ब्रेन स्ट्रोक के लक्षणों को जानना जरूरी है.

- 'BEFAST' शॉर्ट फॉर्म की मदद से लक्षणों को आसानी से याद रखा जा सकता है.

- B का मतलब है बैलेंस यानी व्यक्ति लड़खड़ा रहा है.

- E यानी आंखों की पुतलियां इधर-उधर जा रही हैं.

- F यानी चेहरा तिरछा या लटक रहा है.

- A का मतलब है हाथ-पैरों में कमजोरी महसूस होना या बॉडी के एक हिस्से में लकवा पड़ना.

- S का मतलब है 'स्लरी स्पीच' यानी मरीज ठीक से बोल नहीं पा रहा.

- T का मतलब है सही टाइम पर मरीज को अस्पताल पहुंचाना.

- यानी मरीज को ऐसी जगह ले जाएं जहां स्ट्रोक का इलाज किया जाता हो.  

- कभी भी स्ट्रोक के मरीज का इलाज खुद करने की कोशिश न करें, इससे मरीज की समस्या बढ़ सकती है.

- स्ट्रोक पड़ने पर मरीज को हमेशा अस्पताल में ही भर्ती कराएं. 

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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