CPI की पूर्व MLA ने बताया, खुद को फेमिनिस्ट बताने वाले पार्टी नेता कैसा बर्ताव करते हैं
महिला नेता ने लिखा- प्रोग्रेसिव होने का चोला ओढ़ने वाले नेता औरतों को मौका देने की बात आते ही बिदक जाते हैं.
ईएस बिजिमोल (E S Bijimol) CPI की सीनियर लीडर हैं, तीन बार विधायक रही हैं. उन्होंने लैंगिक भेदभाव को लेकर पार्टी के नेतृत्व की आलोचना की है. इसके साथ ही उन्होंने महिलाओं के लिए 15 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की मांग भी की है. एक फेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि प्रोग्रेसिव राजनीति के नाम पर पार्टी के कई नेता जेंडर न्यूट्रल होने का चोला तो ओढ़कर रखते हैं लेकिन अंदर से वो और उनकी राजनीति दोनों ही रूढ़िवादी हैं.
'बता नहीं सकती कितना स्त्री-विरोधी माहौल है'पिछले हफ़्ते CPI के इडुक्की सचिव पद के लिए चुनाव हुआ. इस चुनाव में पीरमेड़ू की पूर्व विधायक ई एस बिजिमोल अपने पार्टी कलीग के सलीम कुमार से हार गईं. अगर जीत जातीं, तो वो केरल में कम्युनिस्ट पार्टी से पहली महिला ज़िला प्रमुख बन जातीं. महिलाओं को बराबर प्रतिनिधित्व नहीं मिलने को लेकर उन्होंने पार्टी की आलोचना की है. उन्होंने पार्टी नेतृत्व पर लैंगिक भेदभाव और पुरुष नेताओं को महत्व देने के आरोप लगाए. लिखा कि जिस तरह के अपमानजनक नैतिक हमलों का सामना उन्होंने किया है, वो बताने लायक़ नहीं है. लिखा,
"उस पुरुष-केंद्रित जगह पर मुझे जिस तरह नीचा दिखाया गया और जैसे मुझ पर नैतिक हमला किया गया वो बताने लायक नहीं है. जनता के एक प्रतिनिधि के रूप में, मैंने बाक़ी राजनीतिक दलों और मीडिया से इस तरह का महिला-विरोधी व्यवहार झेला है. लेकिन जब मेरा नाम सचिव पद के लिए आया, तब 'आदर्शवादी नेताओं' ने मुझसे कहा कि मुझे जेंडर कंसिडरेशन के बारे में नहीं सोचना नहीं चाहिए. मुझे अपमानित करने के लिए वो मेरे जेंडर का ही हवाला देते हैं."
बिजिमोल इडुक्की की एक प्रमुख महिला नेता हैं. 1995 में राजनीति में आईं, जब केरल के स्थानीय चुनावों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत हुई. तब वो 20 साल की थीं. अपने पहले चुनाव में वो इडुक्की के अजुथा से एक ब्लॉक पंचायत सदस्य के रूप में चुनी गईं. फिर 2005 में उन्होंने ज़िला पंचायत चुनाव लड़ा. और, जीता. इसके बाद 2006 में पार्टी ने पीरमेड़ू सीट से बिजिमोल को उतारा और वो कांग्रेस के MLA ई एम अगस्ती के ख़िलाफ़ जीत गईं. दो टर्म MLA रहीं.
2016 में पार्टी ने किसी भी दो बार के विधायक रहे कैंडिडेट्स को टिकट नहीं दिया, लेकिन पार्टी ने बिजिमोल के लिए ये नियम तोड़ा. दो बार की विधायकी के बाद भी उन्हें टिकट दिया. और वो चुनाव जीतीं भी. इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, बिजिमोल किसानों और प्लानटेशन वर्कर्स के बीच बहुत पॉपुलर थीं, तो पार्टी का इस फ़ैक्टर पर ध्यान देना लाज़मी था.
बिजिमोल ने कथित प्रोग्रेसिव नेताओं के दोहरेपन पर भी कटाक्ष किया. लिखा,
महिला आरक्षण पर क्या कहा?"वो राजनीति में महिलाओं के महत्व के बारे में ख़ूब बात करेंगे. सेमिनार्स करवाएंगे. संसद में महिला आरक्षण लागू करने के लिए चर्चा करेंगे. विरोध आंदोलन आयोजित करेंगे. मेरा कहना है कि इस तरह के आंदोलनों में भाग लेने वालों में से ज़्यादातर आयोजकों को इस आंदोलन के बारे में ज़्यादा समझ ही नहीं है.
मेरे जैसी महिलाएं, जो 27 साल पहले पंचायतों में महिला आरक्षण लागू होने के बाद सक्रिय राजनीति में आईं थीं, उनके पास बताने के लिए ऐसे बहुत से स्त्री-विरोधी अनुभव हैं."
कहा,
"महिलाएं क्या कर सकती हैं? पिछले 25 सालों में महिलाओं ने इस सवाल की पारंपरिक धारणा को तोड़ा है. ये गर्व की बात है. न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में, बल्कि परिवारों में भी महिलाओं की राय को सुना जाता है. अहमियत दी जाती है. और, इसमें महिला आरक्षण की बड़ी भूमिका है."
बिजिमोल ने लिखा कि ये तथ्य है कि कानूनी तौर पर आरक्षण मिलने पर ही शासन-प्रशासन में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है. उन्होंने लिखा कि राजनीतिक दलों में महिलाओं के लिए कोई आरक्षण नहीं है जो कि अपने आप में बेहद रिग्रेसिव है. उन्होंने लिखा कि तमाम नेता अपने भाषणों में महिलाओं को आगे बढ़ाने की, उन्हें मौके देने की बात करते हैं. पर जब सच में ऐसा करने का मौका आता है तो वो पीछे हट जाते हैं.
बिजिमोल के इस पोस्ट पर अभी तक CPI की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है.
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