The Lallantop
Advertisement

ऑक्सफर्ड से पढ़ी इस लड़की के नाना की कहानी आपका दिन बना देगी

पुणे की रहने वाली जुही कोरे ने अपनी कहानी लिंक्डइन पर शेयर की है.

Advertisement
juhi kore
फोटो - लिंक्ड-इन
pic
सोम शेखर
8 सितंबर 2022 (Updated: 8 सितंबर 2022, 19:49 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

"1947. जिस साल भारत को आज़ाद घोषित किया गया, स्वायत्त घोषित किया गया. तब भी हर नागरिक को आज़ादी और स्वायत्ता से रहने का हक़ नहीं था. उन्हीं में से एक था एक स्कूल जाने की उम्र का बच्चा. महाराष्ट्र के गांव का, पिछड़ी जाति का एक बच्चा. वो बच्चा स्कूल जाने की उम्र का ज़रूर था, लेकिन वो स्कूल नहीं जाता था. उसका परिवार नहीं चाहता था कि वो स्कूल जाए. दो बड़ी वजहें थीं- चार बच्चों में सबसे बड़ा था, तो उसके मां-बाप चाहते थे कि वो खेत में काम करे. और दूसरे, उसके परिवार वालों को इस बात का डर था कि स्कूल में उसे कैसे ट्रीट किया जाएगा."

ये लिखा है जूही कोरे ने. जूही ऑक्सफ़ोर्ड ग्रेजुएट हैं. कमपैरेटिव सोशल-पॉलिटिक्स की पढ़ाई की है. लिंक्ड-इन पर एक पोस्ट डाला, जिसमें ये कहानी सुनाई. अपने नाना की कहानी. 40 के दशक में पिछड़ी जाति के परिवार के संघर्ष से लेकर सपने सच होने तक की कहानी. सोशल मीडिया पर ये पोस्ट वायरल है. पोस्ट पर हज़ार से ज्यादा कमेंट्स, 31 हज़ार लाइक्स और 200 के करीब शेयर्स हैं. 

आगे की कहानी सुनकर आप भी कहेंगे, 'भई, बाह!'

क्या थी उस बच्चे की कहानी, जिसे पढ़ने नहीं मिला.

"उस बच्चे ने अपने मां-बाप के साथ एक डील की. कहा कि वो खेत का काम सुबह 3 बजे से पहले निपटा लेगा. और, उसके बाद स्कूल चला जाएगा. हालांकि, उसके मां-बाप का डर हक़ीक़त बन गया. बिना किसी ढंग के जूतों के, पैदल डेढ़ घंटे चल कर स्कूल जाने के बावजूद, उसे स्कूल में बैठने तक नहीं दिया गया."

जूही ने लिखा कि वो बच्चा हारा नहीं. चूंकि खेत के काम से पैसे तो निकलते नहीं थे, तो उसने अपने जैसे ही 'जातबाहरों' (अनुसुचित जाति) से ही किताबें ले लीं. गांव के इकलौते लैम्प-पोस्ट के नीचे पढ़े. साथ पढ़ने वाले अगड़ी जातियों के लड़के बुली करते थे. अगड़ी जातियों के टीचर्स भेदभाव करते थे. क्लास के बाहर बैठाया जाता था. इसके बावजूद न केवल वो बच्चा पास हुआ, बल्कि उसने खुद को परेशान करने वाले लड़कों से ज्यादा नंबर हासिल किए.

जुही कोरे के लिंक्ड इन पोस्ट का स्क्रीनशॉट

जैसा हर हीरो के सफ़र में होता है, इस सफ़र में भी एक गुरु था. वो उनके स्कूल का प्रिंसिपल था. एक आदमी जिसने इस बच्चे की क़ाबीलियत पहचानी और कुछ सालों के बाद, जब उसने बच्चे की प्रोग्रेस देखी, तो उसकी स्कूली पढ़ाई और रहने-खाने का ख़र्च उठा लिया. आगे जूही लिखती हैं,

"लड़के ने अंग्रेज़ी सीखी, फिर चला गया बॉम्बे. सपनों के शहर. क़ानून की पढ़ाई की. इस दौरान वो एक सरकारी बिल्डिंग में क्लीनर का काम करता था. उस बच्चे ने MA कर लिया. और, बहुत सालों बाद एक उच्च सरकारी अधिकारी के तौर पर रिटायर हुआ. उसी बिल्डिंग से.

मुझे गर्व है उस लड़के पर. मेरे नाना पर."

जूही ने बताया कि एक साल पहले वो गुज़र गए और इस वजह से उनके कॉन्वोकेशन में नहीं थे. जूही ने आख़िर में लिखा कि केवल दो पीढ़ियों में उन्होंने क्लास के अंदर न बैठने से लेकर अपनी पोती के सबसे अच्छी यूनिवर्सिटी में पढ़ने तक, सब देख लिया.

म्याऊं: क्या ये लेस्बियन लव स्टोरी आप फैमिली के साथ बैठकर देख पाएंगे?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement