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लोकसभा चुनाव 2019: पॉलिटिक्स बाद में, पहले महिला नेताओं की 'इज्जत' का तमाशा बनाते हैं!

चुनाव एक युद्ध है. जिसकी कैजुअल्टी औरतें हैं.

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इस युद्ध में महिलाएं बेहद बुरे तरीके से घायल होती हैं.
31 मार्च 2019 (Updated: 31 मार्च 2019, 09:05 IST)
Updated: 31 मार्च 2019 09:05 IST
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ठोंक डाला. मार डाला. उड़ा दिया. बम मार दिया भाईस्साब. युद्ध और हिंसा. इनसे जुड़ी उपमाओं का इस्तेमाल कर बड़ी फील आती है. क्रिकेट से लेकर इलेक्शन तक. पबजी वाले हैं न हम. इलेक्शन यानी सबसे बड़ा युद्ध. युद्ध में कोई जीतेगा. कोई हारेगा. पर हर युद्ध की तरह इसमें भी कुछ कैजुअल्टी होंगी. वो फौजी जो चाहे जीतें. चाहे हार जाएं. पर बेहद गंभीर तरीके से घायल जरूर हो जाएंगे. हमारे इलेक्शन्स में ये कैजुअल्टी औरतें होंगी.

PP KA COLUMN

'मैं एक दिन बस में था. जाम लगा हुआ था. उसी जाम में उनका (जया प्रदा) काफिला भी फंसा हुआ था, मुझे लगा कहीं यह जाम खुलवाने के लिए वह ठुमका ना लगाने लगें!...अब तो रामपुर की शामें बहुत रंगीन हो जाएंगी. रामपुर के लोग भी बहुत अच्छे हैं. वोट तो वे आजम खान को ही देंगे. लेकिन मजे जरूर लूटेंगे. मुझे चिंता है कहीं हमारे संभल के लोग भी मजे लूटने ना चले जाएं.'

1. हाल ही में जयाप्रदा ने बीजेपी जॉइन की है. पुरुष नेता जितनी बार पार्टियां बदलते हैं. उसकी कोई गिनती नहीं है. पर जयाप्रदा ने किया तो सपा नेता फिरोज खान क्या बोले. 2. -प्रियंका गांधी वाड्रा. थोड़ा समय हो गया इन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी उठाते हुए. लेकिन नीचता बराबर जारी है. कैलाश विजयवर्गीय, बीजेपी के महासचिव. इनने कहा था:
'कांग्रेस के पास लीडर नहीं है. इसलिए वो चॉकलेटी चेहरे के माध्यम से चुनाव में आना चाहते हैं.'
-कुछ समय पहले एक्ट्रेस पायल रोहतगी ने एक ट्वीट डाला था. लिखा था: ‘पॉर्न स्टार सनी लियोनी को खड़ा कर दो प्रियंका गांधी के साथ, वो बॉक्स ऑफिस के साथ बेडरूम स्टोरीज़ में भी हिट हैं.” -सुब्रह्मण्यम स्वामी भी पीछे नहीं रहे थे. उन्होंने कहा था- 'प्रियंका को बाईपोलर डिसऑर्डर है. वो लोगों को पीट देती हैं. अपनी बीमारी की वजह से वो इस लायक नहीं कि पब्लिक में रह पाएं. वो कभी भी अपना मानसिक संतुलन खो सकती हैं.' अंग्रेजी में एक शब्द होता है विच हंटिंग. यानी औरत को चुड़ैल बताना. और उसे समाज को खतरा बताते हुए, उसके साथ हिंसा करना. जो औरतें नेता बनने, या किसी भी ऐसे फील्ड में घुसने की कोशिश करती हैं. जिसमें पुरुषों का बोलबाला है, उनकी विच हंटिंग शुरू हो जाती है. अब ट्विटर है. इंटरनेट लगभग मुफ्त है. तो शब्दों से काम चल जाता है. 3. अलका लांबा खुद कई बार इस तरह के कमेंट्स का शिकार हो चुकीं हैं. मगर नासमझी औरत या मर्द देखकर नहीं आती. ईशा कोपिकर बीजेपी में शामिल हुईं तो अलका ने मानो प्रियंका का 'बदला' लेते हुए कहा.
'बेटी बचाओ. कहीं चॉकलेट समझकर खा न लें.'
4. विजयवर्गीय का चॉकलेट बयान बहुत दिनों तक लोगों को कल्लाया. इसलिए उन्होंने फैसला लिया कि वो उससे भी घटिया बयान देंगे. मध्यप्रदेश के CM कमलनाथ हैं. उनकी कैबिनेट के मंत्री सज्जन सिंह वर्मा. बोले:
'ये बीजेपी का दुर्भाग्य है कि उनकी पार्टी में सब खुरदुरे चेहरे हैं. बड़े ऐसे चेहरे हैं, जिनको लोग नापसंद करते हैं. तो इसमें हम क्या करें? एक हेमा मालिनी हैं बेचारी. जिनको जगह-जगह नृत्य कराते रहते हैं, शास्त्रीय नृत्य.'
5. बीजेपी-कांग्रेस से आगे बढ़ते हैं. किसी महिला का अपमान करना हो. तो मायावती लोगों की फेवरेट हैं. उन्होंने अपने पूरे करियर में काम कैसा किया. कितने विवादों में फंसी. ये मुद्दा अलग है. और असल भी है. अगर नीचता की ऊंचाइयां होतीं. तो ये वो जगह होती, जहां से मायावती पर टिप्पणियां की जाती हैं. कुछ समय पहले की बात. महेंद्र नाथ पांडे. शॉर्ट में एमएन पांडे. उत्तर प्रदेश में बीजेपी के अध्यक्ष हैं. एक सभा में भाषण दे रहे थे. भाषण देते हुए सपा और बसपा के बीच हुए गठबंधन को लेकर बोले:
'मैंने सोशल मीडिया पर देखा एक नौजवान ने पोस्ट कर दिया कि श्री अखिलेश जी, माया जी को शॉल पहना रहे हैं. तो नौजवान लिखता है नीचे- अखिलेश के मुंह से कि- 'ये वही शॉल है जो गेस्ट हाउस में पिता जी ने उतारा था.'
गेस्ट हाउस यानी गेस्ट हाउस कांड. 2 जून 1995 . यूपी के राजनीतिक इतिहास का एक काला दिन. इस दिन मायावती लखनऊ में स्टेट गेस्ट हाउस में ठहरी हुई थीं. उन्होंने मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. गुस्से में उबलते सपा विधायक और गुंडों ने वहां हंगामा काट दिया. मायावती के साथ उस दिन 'बदसलूकी' हुई, ऐसा कहना अंडरस्टेटमेंट होगा. उनकी मानें तो उनके कमरे का दरवाजा पीटा गया. भद्दी गालियां सुनाई गईं. और वो बाल-बाल बचकर निकली थीं. इस कांड के बाद से ही सपा और बसपा के बीच तीखी तलवार खिंच गई थी. अखिलेश के बाद दरार कम हुई. पर जबतक मायावती को वो रात याद न दिलाई जाए. तब तक इलेक्शन में fun कैसे आएगा. कुछ दिनों पहले मायावती ने मोदी पर सवाल उठाते हुए कहा. जो खुद इतने शाही अंदाज़ में रहता है. वो खुद को कभी चाय वाला और कभी चौकीदार बताता है. बीजेपी विधयाक सुरेंद्र नाथ सिंह ने जवाब दिया: 'मायावती जी क्या कहेंगी. वो खुद रोज फेशियल करवाती हैं. और हमारे नेता को शौकीन कहती हैं. वस्त्र पहनना शौकीन होने की बात नहीं होती. शौकीन होने की बात वो होती है, कि बाल पका हुआ है और बाल रंगवाकर मायवती आज भी अपने को जवान साबित करती हैं. 60 साल की उम्र हो गई, लेकिन सारे बाल काले हैं, इसको कहते हैं बनावटी शौक.' * इनमें से कोई बयान नया नहीं है. न पुराना है. समय, साल और सत्ता बदलते हैं. तो इन औरतों के नाम बदल जाते हैं. बयान वही रहते हैं. पॉलिटिक्स यानी शक्तिप्रदर्शन के खेल में, औरतों से अपेक्षित है कि वो वैसी ही रहें. जैसी कई साल पहले थीं. रजवाड़ों के खानदान से आएं. सर पर पल्लू रखें. और वो करें जो उनके पति, पिता या ससुर कर गए. वफादारी दिखाएं. समझदारी नहीं. पर वो तो करेंगी जो उन्हें करना है. आज आइटम सॉन्ग. कल राजनीति. दोनों गर्व से. आप देखते जाइए.

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