कोलकाता के इस गे कपल की कहानी आज आपका दिन बना देगी
अभिषेक ने कहा, 'वैसे तो मैं ख़ुद को क़ानूनी रूप से विवाहित नहीं कह सकता, लेकिन हां, मैं शादीशुदा हूं और चैतन्य मेरे पति हैं.'

3 जुलाई को कोलकाता के एक समलैंगिक जोड़े ने शादी कर ली. शादी की सुंदर-सुंदर तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट कीं. दूल्हा अभिषेक रे कोलकाता के एक मशहूर फ़ैशन डिज़ाइनर हैं और दूल्हा चैतन्य शर्मा डिजिटल मार्केटिंग एक्सपर्ट. शादी में क़रीबी दोस्त और परिवार वाले शामिल हुए.
वैसे तो भारत में समलैंगिक विवाह को क़ानूनी रूप से मान्यता नहीं है, लेकिन देश में कई कपल ऐसे शादी समारोहों के साथ अपने प्रेम का जश्न मनाते हैं. उन्हें मैरिज सर्टिफ़िकेट नहीं मिलता. न ही ऐसे कोई अधिकार मिलते हैं जो किसी को किसी का पति या पत्नी बनने के बाद मिलते हैं. लेकिन ये जोड़े अपनी खुशी के लिए, परिवार में अपने रिश्ते की स्वीकार्यता के लिए शादी करते हैं.
अभिषेक ने न्यूज़ संगठन टेलीग्राफ़ को बताया,
अभिषेक-चैतन्य की प्रेम कहानी.. वाह! वाह!"मैं इसे शादी समारोह कहना पसंद करूंगा. हालांकि, मैं ख़ुद को क़ानूनी रूप से विवाहित नहीं कह सकता, लेकिन हां, मैं शादीशुदा हूं और चैतन्य मेरे पति हैं."
अब आपको इन दोनों की प्रेम कहानी बता देते हैं. अभिषेक ने टेलीग्राफ़ के ‘माय कोलकाता’ सेगमेंट से अपनी कहानी साझा की.
अभिषेक ने बताया कि वो सालों से फेसबुक पर दोस्त थे, लेकिन कभी बात नहीं की. फिर आया 2020 का सितंबर. लॉकडाउन चल रहा था. सितंबर में होता है अभिषेक का बड्डे. अभिषेक ने केक काटते हुए फोटो पोस्ट की. अपने दोस्तों के बच्चों के साथ. चैतन्य को बच्चे पसंद है. तो यहां से शुरू हुई बातें. पहले तो चैतन्य को यही लगा कि वो अभिषेक के बच्चे हैं. बातें ऑन-ऑफ़ चलती रहीं.
"एक महीने के बाद बातचीत गहरी होने लगी. ये कुछ स्पेशल था. जैसे आमतौर पर हर डेटिंग संबंध शुरू होता है. अचानक एक दिन उसने मुझे एक टिकट का स्क्रीनशॉट भेजा. लॉकडाउन में कुछ चीज़ें खुलने लगी थीं. हमारे पास एक-दूसरे के नंबर तक नहीं थे. हम फेसबुक मैसेंजर पर चैट कर रहे थे. मुझे थोड़ा अटपटा लगा.
लेकिन चैतन्य और मेरी मुलाक़ात के बाद सब कुछ बदल गया. उसने मुझे बताया था कि वो एक वीकेंड के लिए आ रहा है, लेकिन वो यात्रा दो हफ़्ते तक बढ़ गई.
उसके जाने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि मैं उसे कितना मिस कर रहा हूं. इसलिए मार्च में मैं उससे और उसके परिवार से मिलने गुड़गांव गया. हम दोनों कुछ सॉलिड खोज रहे थे."
इसके बाद अभिषेक ने बताया कि आगरा की यात्रा के दौरान चैतन्य ने ताजमहल के ठीक सामने बहुत ही फ़िल्मी स्टाइल में उन्हें प्रपोज़ किया. लेकिन सब गुडी-गुडी नहीं रहा. फिर आई परिवार की गड़बड़ियां. घरवालों ने पूछा, 'तुम क्या कर रहे हो?', 'क्या तुम वाकई शादी करना चाहते हो?'

चैतन्य एक मारवाड़ी परिवार से हैं. उनकी मां को पता था और सभी मांओं की तरह वो भी समाज की वजह से परेशान थीं. लेकिन किसी तरह नाव पार लग गई. लोगों ने एक्सेप्ट किया. अभिषेक ने कहा,
'पंडित को ढूंढना सबसे बड़ी चुनौती'“हम समाज के उस तबके से आते हैं, जहां हमें कुछ भी करने से पहले दो बार सोचना नहीं पड़ता, लेकिन हम ख़ुद भी ये देखकर हैरान थे कि लोग इसे कितनी खूबसूरती से स्वीकार कर रहे हैं. मेरा पूरा मोहल्ला, यहां तक कि 60-65 साल के लोग भी शादी में शामिल हुए.”
अभिषेक ने बताया कि बिग-फ़ैट इंडियन वेडिंग का आइडिया चैतन्य का था. और इसके लिए एक पंडित ढूंढना सबसे बड़ी चुनौती थी. अभिषेक ने कहा कि वो अपने घर वाले पंडितजी के पास नहीं जा सकते थे, क्योंकि वो उन्हें अपने घर के आधिकारिक पंडित के रूप में खोना नहीं चाहते थे! लेकिन जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हम लोग अपने समाज के 'पथ प्रदर्शक' हैं. उन्होंने अपने गांव का हाल बताया कि कैसे समलैंगिक जोड़ों को समाज के मॉरल्स की वजह से प्रताड़ित किया जाता है. कितने लड़के-लड़कियां को चुपचाप जंगल में ले जा कर उनका गला काट दिया जाता है. उन्होंने कहा कि हम जो कर रहे हैं, वो एक बदलाव लाएगा और अगर हम लोग ऐसा नहीं करेंगे तो दूसरों को भी कभी हिम्मत नहीं मिलेगी. अभिषेक ने कहा,
"आज जीवन में पहली बार मुझे ऐसा लग रहा है कि मैंने समाज के लिए कुछ किया है. यह मेरी शादी थी, लेकिन असल में मैं अपने समुदाय के कई लड़कों और लड़कियों, समलैंगिकों, ट्रांसजेंडरों के लिए ज़िम्मेदार महसूस करता हूं. काश मैं आपको वो मेसेजेज़ दिखा पाता जो हमें मिले हैं.
लोगों को समझना होगा कि ये नैचुरल है. ख़ाली 'तेरा जैसा चल रहा है, चलने दे, नाम के वास्ते शादी कर लो' ज़्यादा दिन तक नहीं चल सकता. ये कितना स्वाभाविक और सामान्य है. मुझे उम्मीद है कि हमारी शादी भारत को उस बदलाव को लाने में मदद करेगी जिसकी भारत को ज़रूरत है."
भारत में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिए कई पेटिशन्स दिल्ली हाई कोर्ट के सामने पेंडिंग है. हालांकि, इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का रुख स्पष्ट है: अदालतों को समलैंगिक विवाह को वैध बनाने से बचना चाहिए. अप्रैल में यूपी सरकार ने एक ऐसी ही पेटिशन के ख़िलाफ़ कहा था कि भारतीय कानून और संस्कृति के मुताबिक, शादी के लिए एक बायोलॉजिकल हस्बैंड और बायोलॉजिकल वाइफ का होना ज़रूरी होता है. उनके बिना शादी के रिचुअल्स पूरे नहीं होते हैं. होमोसेक्शुअल शादी को मान्यता नहीं दी जा सकती है क्योंकि उसमें एक महिला और एक पुरुष नहीं होते हैं, न ही वो बच्चा पैदा कर सकते हैं.