160 साल पहले इस नर्स ने जो किया, वो आज कोरोना से लड़ने में कैसे काम आ सकता है?
फ्लोरेंस नाइटिंगेल की कहानी, जिनकी याद में इंटरनेशनल नर्सेज डे मनाया जाता है
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फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म इटली के फ्लोरेंस शहर में हुआ था. उनका नाम इसी शहर के ऊपर रखा गया था. हालांकि इनके जन्म के फ़ौरन बाद ही इनका परिवार वापस इंगलैंड शिफ्ट हो गया था. (तस्वीर: Wikimedia commons)
कौन थीं फ्लोरेंस?
ब्रिटेन के एक धनी परिवार में जन्मीं फ्लोरेंस के परिवार वाले उन्हें शादी के लिए तैयार कर रहे थे. ये बात है उन्नीसवीं सदी की. उस समय लड़कियों को पढ़ाया-लिखाया भी इसलिए जाता था कि वो एक संभ्रांत परिवार के लड़के से शादी करके अपना घर बसा सके. फ्लोरेंस के माता-पिता भी यही चाहते थे. लेकिन फ्लोरेंस के मन में कुछ और ही था.
फ्लोरेंस दूसरों की सेवा में जीवन बिताना चाहती थीं. इसलिए उन्होंने अपने परिवार से कहा, कि वो नर्स बनना चाहती हैं. उनके माता-पिता को लगा कि नर्सिंग का काम उनके परिवार की प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं है. इसलिए उन्होंने फ्लोरेंस का विरोध किया. लेकिन फ्लोरेंस ने इन सब पर ध्यान न देकर कहा कि वो कभी शादी नहीं करेंगी. और अपनी नर्सिंग की ट्रेनिंग के लिए निकल पड़ीं. खुद सीखकर उन्होंने बाकी महिलाओं को भी नर्सिंग में ट्रेनिंग देनी शुरू की. इस समय तक उन्हें समाज में हिकारत भरी नज़रों से ही देखा जाता था.

वो युद्ध जिसने फ्लोरेंस को हीरो बना दिया
1853 से लेकर 1856 तक एक युद्ध चला. इसे क्रीमियन वॉर कहा जाता है. एक तरफ रूस था, तो दूसरी तरफ ऑटोमन एम्पायर, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, और सारडीनिया. इस युद्ध में ब्रिटेन के कई सैनिक घायल हुए. धड़ाधड़ मौतें हो रही थीं. तब फ्लोरेंस अपने साथ ट्रेन की हुई 38 नर्सों और 15 ननों को लेकर उन सैनिकों की सेवा में निकल पड़ीं. वहां पहुंचीं तो देखा कि सैनिक बहुत बुरी हालत में रह रहे हैं. युद्ध में लगी चोटों और घावों से ज्यादा आस-पास की गंदगी, और उससे फैली बीमारियां उनकी जान ले रही थीं. जैसे टाइफाइड, कॉलरा, दस्त इत्यादि.
फ्लोरेंस ने ब्रिटेन की सरकार से कहा, कि एक सैनिटरी कमीशन भेजिए. एक नया अस्पताल बनवाया. और नालों की सफाई करवाई. पेशेंट्स की साफ़-सफाई पर खासा जोर दिया फ्लोरेंस ने. इन सभी उपायों की वजह से सैनिकों की मौत के आंकड़े तेजी से नीचे गिरे. वो जल्दी ठीक होने शुरू हुए.

क्रीमिया युद्ध के दौरान उन्होंने डेटा इकट्ठा करना शुरू किया. और इस डेटा ने दिखाया कि इंफेक्शन रोकने से मौतों की संख्या कम हो जाती है. इस स्टडी के आधार पर उन्होंने सरकार को सुझाव दिए, कि हाथ धोने और अस्पतालों को डिसइंफेक्ट करने से काफी फर्क पड़ सकता है. भारत में भी पब्लिक हेल्थ सर्विसेज की कमी पर उन्होंने बात की. अपने करियर के बाद के दौर में भी वो इस बात पर जोर देती रहीं कि अस्पतालों में हाइजीन का खयाल रखा जाना बेहद ज़रूरी है.
आज क्यों जरूरी हैं फ्लोरेंस नाइटिंगेल?
नॉवेल कोरोना वायरस से लड़ने में देश का हेल्थकेयर सिस्टम जीजान से लगा हुआ है. इंफेक्शन रोकने के लिए हर जगह उपाय किए जा रहे हैं, फ्लोरेंस ने संक्रामक बीमारियों के बीच काफी काम किया था. और उनके द्वारा उठाए गए कदम संक्रमण को रोकने में कामयाब हुए थे. इनमें कुछ ज़रूरी चीज़ें थीं:
#हाथ धोना
#अस्पतालों में साफ़ सफाई करवाना
#हर पेशेंट के लिए अलग से धुले हुए कपड़ों और बिस्तर का इंतजाम करना
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए डॉक्टर्स भी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हाइजीन का ख्याल रखना चाहिए. आंख-नाक-मुंह छूने से बचना चाहिए. अस्पतालों में संक्रमण को रोकने के लिए पर्याप्त उपाय किए जाने चाहिए. अपने जन्म के दो सौ साल बाद भी फ्लोरेंस नाइटिंगेल के उपाय प्रासंगिक हैं. और एक बहुत बड़ी महामारी से लड़ने के काम आ रहे हैं.
फ्लोरेंस की एक पेंटिंग जिसमें वो हाथ में लैंप लिए हुए हैं. (तस्वीर : Getty Images)
चलते-चलते
जब फ्लोरेंस क्रीमियन युद्ध के दौरान सैनिकों का ध्यान रख रही थीं, तब रोज़ रात को सबके सो जाने के बाद अस्पताल का राउंड लेने निकलती थीं वो. उनके हाथ में एक लैंप हुआ करता था. इस वजह से उन्हें लेडी विद द लैंप भी कहा जाने लगा.
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