ससुराल वाले दूर रह रहे, इसका मतलब ये नहीं कि बहू को परेशान नहीं कर सकते, बोला बॉम्बे HC
हाई कोर्ट ने उस याचिका को रद्द कर दिया, जिसमें पीड़िता के ससुराल वालों ने दूर रहने के आधार पर उत्पीड़न के एक मामले में अपने खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की मांग की थी.

मुंबई में एक महिला ने हरासमेंट केस दर्ज कराया. पति और पति के रिश्तेदारों के ख़िलाफ़. रिश्तेदारों ने केस में एक याचिका लगाई. बोले कि वो तो दूर रहते हैं, फिर कैसा केस? कोर्ट ने कहा कि उससे क्या मतलब! जब तक प्रूव नहीं हो जाता, सब शक के घेरे में हैं.
उत्पीड़न का पूरा मामला क्या है?जोड़े की शादी 2007 में हुई थी. उनके तीन बच्चे हैं. 2017 में पत्नी को पता चला कि कथित तौर पर पति का एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर चल रहा है. आरोप है कि पूछने पर पति ने उसके साथ मारपीट की.
महिला ने मामले की FIR दर्ज कराई. अपनी FIR में महिला ने आरोप लगाया कि जब उसने अपने पति के माता-पिता और भाई-बहनों को उसके अफ़ेयर के बारे में बताया, तो उन्होंने उसके साथ बात करने के बजाय महिला के साथ ही ग़लत व्यवहार किया. शिकायत के मुताबिक़, ससुराल वालों ने दहेज के लिए 50 हज़ार रुपये की मांग भी की थी.
केस दर्ज हुआ. फिर केस से संबंधित पति के रिश्तेदारों ने कोर्ट में एक याचिका दायर की. याचिका में ये तर्क दिया कि (आरोपी) पति अकोला ज़िले में रहता था, माता-पिता और एक विवाहित बहन अमरावती जिले में रहते हैं और छोटा भाई पुणे शहर का रहने वाला है और इसलिए, उनके ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप सही नहीं हैं.
8 जून को बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने याचिका पर फ़ैसला सुनाया. याचिका में रिश्तेदारों के तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. जज ने कहा,
"सबसे पहले तो क़ानून में ऐसा कोई अनुमान नहीं है कि दूर रहने वाला रिश्तेदार हमेशा निर्दोष होता है. जब तक कि ये साबित न हो कि वो निर्दोष है, तब तक कुछ भी पुख़्ता तरीके से नहीं कहा जा सकता. कई मामलों में पति और पत्नी से दूर रहने वाले रिश्तेदारों ने विवाहित जोड़े के मामलों में दखल दिया है."
इसके अलावा जस्टिस सुनील शुक्रे और गोविंद सनप की बेंच ने कहा कि मामले में जांच अभी भी चल रही है और इसमें और बातें सामने आ सकती हैं. बेंच ने कहा,
"अब तक हमने पाया है कि पत्नी ने याचिकाकर्ताओं (रिश्तेदारों) पर जो आरोप लगाए हैं, वो बहुत स्पेसिफ़िक हैं. इस स्टेज पर यह नहीं कहा जा सकता है कि ससुराल वालों के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप किसी भी अपराध का खुलासा नहीं करते हैं."
प्राथमिकी की दलीलों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने हाइलाइट किया कि मामले में सभी आरोपियों के ख़िलाफ़ कोई अस्पष्ट बयान नहीं दिया गया है. इसे देखते हुए कोर्ट ने FIR रद्द करने से इनकार कर दिया.
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