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बोन ट्यूमर क्या होता है? क्या हर बोन ट्यूमर का मतलब कैंसर है?

बोन ट्यूमर कैंसर है या नहीं, इसका पता जांच से लगाया जा सकता है. पर उसके लिए ज़रूरी है कि समय रहते डॉक्टर को दिखाया जाए और टेस्ट किए जाएं.

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Are bone tumors always cancerous
बोन ट्यूमर ज़्यादातर बढ़ते उम्र के बच्चों में देखा जाता है
26 अप्रैल 2024 (Updated: 26 अप्रैल 2024, 19:03 IST)
Updated: 26 अप्रैल 2024 19:03 IST
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ट्यूमर शब्द सुनते ही दिमाग में आता है कैंसर, और इंसान डर जाता है. सबसे पहले तो ये समझना ज़रूरी है कि ट्यूमर और कैंसर हमेशा एक ही चीज़ नहीं होते. ट्यूमर का मतलब होता है गांठ. हम में से कुछ लोगों के शरीर में कहीं गांठ बन जाती है, पर हर गांठ का मतलब ये नहीं कि उसमें कैंसर है. यानी हर गांठ कैंसर की गांठ नहीं होती. आज हम बात करेंगे बोन ट्यूमर के बारे में. डॉक्टर से जानेंगे कि बोन ट्यूमर क्या होता है? क्या हर बोन ट्यूमर का मतलब कैंसर है? नॉर्मल ट्यूमर और कैंसर वाले ट्यूमर के बीच फ़र्क कैसे किया जाता है? ट्यूमर क्यों बन जाते हैं और कैंसर वाले ट्यूमर के लक्षण क्या हैं? इलाज भी जानेंगे. एक और ज़रूरी बात. कई लोगों को लगता है कि बायोप्सी करवाने से कैंसर फैल सकता है. क्या वाकई ऐसा हो सकता है?

बोन ट्यूमर क्या होता है?

ये हमें बताया डॉ. रुद्र ठाकुर ने.

डॉ. रुद्र ठाकुर, कंसल्टेंट, आर्थोपेडिक ऑन्कोसर्जन, बालको मेडिकल सेंटर, रायपुर

बोन ट्यूमर शरीर में होने वाले बाकी ट्यूमर से दुर्लभ होता है. ऐसे में इसको पकड़ने और इलाज में देरी हो जाती है जिसके चलते मरीज़ को अपने अंगों और जान से हाथ धोना पड़ता है. इसमें हड्डियों में गांठ बनती है, जिसपर शरीर का कोई कंट्रोल नहीं होता. ये लगातार बढ़ती जाती है. इस तरह की गांठ को बोन ट्यूमर कहा जाता है.

हर बोन ट्यूमर का मतलब कैंसर है?

इसका जवाब है नहीं. बोन ट्यूमर या शरीर का कोई भी ट्यूमर दो तरह का होता है. एक होता है बिनाइन ट्यूमर, जो शरीर में फैलते नहीं हैं. ये जान नहीं ले सकते. लेकिन ये जहां होते हैं, उस एरिया को नुकसान पहुंचाते हैं. दूसरे होते हैं मैलिग्नेंट ट्यूमर, जिनको कैंसर वाला ट्यूमर कहा जाता है. ये शरीर के बाकी हिस्सों जैसे लिवर, हड्डियों और फेफड़ों में फैलते हैं. ये ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं, जान तक ले सकते हैं.

कारण

बोन ट्यूमर होने का कोई पक्का कारण नहीं होता. ये ज़्यादातर बढ़ती उम्र के बच्चों में देखा जाता है. कुछ मरीज़ों में ये जेनेटिक हो सकता है. लेकिन ऐसे मरीज़ बहुत दुर्लभ होते हैं इसलिए बोन ट्यूमर कुछ खाने या करने से नहीं होता है. ये ज़्यादातर मरीज़ों में अपने आप होता है.

 बोन ट्यूमर की जांच के बाद ही पता चलता है कि वो कैंसर वाला है या नहीं
लक्षण

सबसे पहले शरीर के किसी हिस्से में गांठ पड़ती है. ये अपने आप आती है. ये चोट लगने से नहीं होती. इसकी शुरुआत अपने आप होती है. ये लगातार बढ़ती जाती है. किसी भी दवा से ये छोटी नहीं होती. साथ ही उस अंग में दर्द होता है. वज़न का कम होना भी एक लक्षण है.

इलाज

सबसे पहले बोन ट्यूमर का डायग्नोसिस करना ज़रूरी होता है. इसके लिए कुछ जांच करवानी होती हैं. सबसे पहले इमेजिंग की जाती है. इमेजिंग यानी एक्सरे, एमआरआई, पेट स्कैन, सीटी स्कैन. इससे पता चलता है कि बोन का ट्यूमर शरीर में किस हद तक फैला है. इमेजिंग के बाद बायोप्सी की जाती है. बायोप्सी यानी उस ट्यूमर का एक टुकड़ा निकाला जाता है और उसको माइक्रोस्कोप के नीचे रखकर देखा जाता है. इससे पता चलता है कि ये किस टाइप का ट्यूमर है. पहले बायोप्सी चीरा लगाकर की जाती थी. उससे ट्यूमर के फैलने का रिस्क होता था. आजकल ऐसी सुइयां आ गई हैं, जिनसे नाखून के बराबर चीरा लगाया जाता है. फिर टिशू निकाल लिया जाता है. इससे ट्यूमर के फैलने का कोई रिस्क नहीं होता है. 

कुछ बोन के ट्यूमर में किसी इलाज की ज़रूरत नहीं पड़ती है. वो अपने आप ठीक हो जाता है. कुछ में सुई लगाने की ज़रूरत पड़ती है. लेकिन जो कैंसर वाले ट्यूमर होते हैं, उनमें अलग-अलग तरह से इलाज होता है. जैसे कि कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और सर्जरी. अलग-अलग ट्यूमर में अलग-अलग तरह से इलाज होता है. ये सारे इलाज एक कैंसर के अस्पताल में किए जा सकते हैं. अगर बोन ट्यूमर का शक है तो तुरंत कैंसर के अस्पताल में जांच करवाएं. जितना जल्दी इलाज होगा, जान बचने की संभावना बढ़ती है और खर्चा भी कम होता है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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