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दहेज ऐक्ट पर हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, कहा- 'इसकी वजह से शादी की परंपरा खतरे में'

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ये भी कहा कि आजकल दहेज उत्पीड़न की झूठी FIR दर्ज कराने का ट्रेंड चल गया है

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allahabad high court 498a
एक मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने दहेज निषेध कानून पर टिप्पणी की (फोटो - फ़ाइल)
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सोम शेखर
15 जून 2022 (Updated: 15 जून 2022, 03:03 AM IST) कॉमेंट्स
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Allahabad High Court ने मंगलवार, 14 जून को IPC की धारा 498A यानी दहेज निषेध ऐक्ट के संबंध में एक अहम फ़ैसला सुनाया. कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि इस कानून के तहत हुई FIR में दो महीने के 'कूलिंग पीरियड' से पहले कोई गिरफ़्तारी नहीं की जानी चाहिए.

फ़ैसले में ये भी कहा गया कि 'कूलिंग-पीरियड' के दौरान मामले को तुरंत एक परिवार कल्याण समिति (FWC) को सौंप देना चाहिए और मध्यस्थता से विवाद को सुलझाने की कोशिश की जानी चाहिए. अदालत ने ये भी स्पष्ट किया कि सिर्फ़ उन मामलों को FWC के पास भेजा जाएगा, जिसमें दोषी पाए जाने पर 10 साल से कम की सज़ा होती है. और महिला को कोई शारीरिक चोट न आई हो. 

Cruelty का पूरा मामला क्या है?

केस उत्तर प्रदेश का है. एक महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के ख़िलाफ़ दहेज निषेध ऐक्ट के तहत क्रूरता, अपमान, आपराधिक धमकी, हत्या के प्रयास के लिए FIR दर्ज कराई. महिला ने दावा किया कि उस पर दहेज के लिए दबाव डाला जा रहा था. उसके ससुर और देवर ने उसके साथ यौन संबंध बनाने की मांग की. उसके पति ने उसे बाथरूम में बंद कर दिया. उन्होंने उस पर अबॉर्शन कराने का दबाव बनाया. ये भी आरोप लगाया कि उसके पति ने उसके साथ जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का प्रयास किया.

आरोपी (पति और ससुराल वालों) ने हाई कोर्ट में अपनी बेगुनाही की अर्जी दाख़िल की. हाई कोर्ट ने महिला के ससुराल वालों की अर्जी मान ली, लेकिन पति की याचिका को ख़ारिज कर दिया और उसे निचली अदालत में पेश होने का निर्देश दिया.

बार ऐंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक़, सुनवाई हुई तो कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता महिला के पास अपने केस को डिफ़ेंड करने के लिए ठोस सबूत नहीं थे. कोर्ट ने ये भी कहा कि आजकल वैवाहिक कलह के मामलों में झूठी FIR दर्ज कराने का ट्रेंड चल गया है.

साथ ही अदालत ने पत्नी द्वारा लगाए गए आरोपों की प्रकृति और भाषा की निंदा की. कहा कि उसने इस घटना को कई गुना बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है.

"जिस तरह से शिकायतकर्ता ने बिना किसी शर्म के घटना का ग्राफ़िक और विशद वर्णन किया है, उससे उसकी मानसिक स्थिति का पता चलता है. उसके ऐक्शन्स ये दिखाते हैं कि अपने पति और ससुराल वालों से बदला लेने के लिए उसने शालीनता की सारी हदें पार कर दी हैं."

‘शादी की परंपरा खतरे में’

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने अपने आदेश के दौरान एक बड़ी टिप्पणी भी की. उन्होंने कहा कि अगर इसी तरह IPC की धारा 498ए का दुरुपयोग होता रहा, तो सदियों पुरानी शादी की 'पारंपरिक ख़ुशबू' पूरी तरह से गायब हो जाएगी.

ससुर और देवर के ख़िलाफ़ आरोपों पर चर्चा करते हुए, जस्टिस चतुर्वेदी का कहना था कि पारंपरिक भारतीय परिवारों में ये लगभग असंभव है. और बहू से यौन संबंधों की मांग करने वाले आरोपों को पचाना मुश्किल है. 

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