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ग्रीन हाइड्रोजन क्या है और इसे लेकर अंबानी और अडानी में होड़ क्यों मची हुई है?

भारत के दो सबसे अमीर शख्स ग्रीन हाइड्रोजन में अरबों रुपये का निवेश करने के लिए तैयार हैं.

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Ambani Adani Green Hydrogen
मुकेश अंबानी और गौतम अडानी. (फोटो: पीटीआई/फाइल)
9 सितंबर 2022 (Updated: 9 सितंबर 2022, 01:00 IST)
Updated: 9 सितंबर 2022 01:00 IST
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भारत के दो सबसे बड़े अरबपतियों गौतम अडानी (Gautam Adani) और मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा जगजाहिर है. इस समय अक्षय उर्जा, जिसे क्लीन एनर्जी या हरित उर्जा भी कहते हैं, के क्षेत्र में दोनों एक दूसरे को जोरदार टक्कर दे रहे हैं. इसी दिशा में उनके लिए एक नया अखाड़ा तैयार हुआ है- जिसका नाम है 'ग्रीन हाईड्रोजन' (Green Hydrogen). दोनों ने ग्रीन हाईड्रोजन इंडस्ट्री में अरबों रुपये का निवेश करने का ऐलान किया है.

उद्योगपति गौतम अडानी ने घोषणा की है कि उनकी कंपनी भारत में तीन गीगाफैक्ट्रीज लगाने जा रही है, जो सोलर मॉड्यूल्स, विंड टर्बाइन्स और हाईड्रोजन इलेक्ट्रोलाइजर्स बनाएंगी. अडानी ग्रुप ने कहा है कि ग्रीन एनर्जी बनाने के लिए उन्होंने फ्रांस की TotalEnergies के साथ पार्टनरशिप की है.

वहीं रिलायंस इंडस्ट्रीज की तरफ से घोषणा की गई है कि वो कैलिफोर्निया स्थित सौर उर्जा सॉफ्टवेयर डेवलपर SenseHawk में बड़ी हिस्सेदारी खरीदेंगे. उनका कहना है कि यह अक्षय उर्जा या ग्रीन एनर्जी सेक्टर में उनके निवेश का हिस्सा है.

कुल मिलाकर देखें तो अगले तीन सालों में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने इस सेक्टर में 10 बिलियन डॉलर (करीब 80 हजार करोड़ रुपये) का निवेश करने की योजना बनाई है. वहीं अडानी ग्रुप क्लीन एनर्जी की दिशा में अगले एक दशक में 70 बिलियन डॉलर (करीब 5.6 लाख करोड़ रुपये) निवेश करेगा.

इस तरह दोनों कंपनियों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे देश के ग्रीन हाइड्रोजन सेक्टर में बिजनेस करना चाहती हैं और इसे लेकर दोनों में कड़ी प्रतिस्पर्धा चल रही है. आइए जानते हैं कि ग्रीन हाइड्रोजन क्या है और क्यों ये दोनों कंपनियां इसमें इतनी रुचि दिखा रही हैं.

ग्रीन हाइड्रोजन क्या है?

ग्रीन हाइड्रोजन को सबसे अच्छे और स्वच्छ ईंधनों में से एक माना जाता है. पानी के इलेक्ट्रोलिसिस के दौरान जो हाइड्रोजन गैस निकलती है, उसे ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है. इस प्रक्रिया यानी कि इलेक्ट्रोलिसिस या इलेक्ट्रिक करेंट के जरिये पानी में से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग कर दिया जाता है. ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में भी अक्षय उर्जा (सौर या पवन) का इस्तेमाल किया जाता है. इस तरह ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में कोई ग्रीनहाउस गैस नहीं निकलती है, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक होती हैं.

ऊर्जा या ईंधन के पारंपरिक साधन जैसे कि कोयला, गैस और पेट्रोलियम इत्यादि से बहुत ज्यादा कार्बन निकलता है. जिसके कारण ये पर्यावरण के लिए काफी हानिकारक होता है. जलवायु परिवर्तन के लिए इन्हीं ईंधनों की काफी ज्यादा भूमिका है, इसलिए तमाम अंतरराष्ट्रीय और घरेलू संस्थाएं स्वच्छ उर्जा जैसे कि सौर उर्जा, पवन उर्जा, हाइड्रोजन उर्जा इत्यादि के इस्तेमाल पर जोर दे रही हैं.

यही वजह है कि विश्व के तमाम देश अपने कुल ईंधन में अक्षय उर्जा की हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं. इस समय जितना हाइड्रोजन उत्पादन किया जाता है, उसमें एक फीसदी से भी कम ग्रीन हाइड्रोजन होता है. अंतरराष्ट्रीय अक्षय उर्जा एजेंसी (IRENA) का कहना है कि 2050 तक कुल उर्जा में 12 फीसदी हिस्सेदारी होगी. ऐसे में भारत के बड़े औद्योगिक समूह इस सेक्टर में अपने पैर पसार रहे हैं.

कितनी ग्रीन हाइड्रोजन की जरूरत है?

हाइड्रोजन का इस्तेमाल मुख्य रूप से अमोनिया और मेथनॉल के उत्पादन के लिए होता है. पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के उत्पादन के लिए पेट्रोलियम इंडस्ट्री में भी ग्रीन हाइड्रोजन का काफी इस्तेमाल किया जाता है.

औद्योगिक कारणों जैसे कि रिफाइनरी और फर्टीलाइजर्स के लिए अमोनिया और मेथनॉल की जरूरत होती है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक इनके उत्पादन में इस समय हर साल 60 लाख टन से अधिक हाइड्रोजन की जरूरत होती है. 

लेकिन 2050 तक भारत में हाइड्रोजन की मांग और खपत पांच गुना तक बढ़ने की उम्मीद जताई गई है. तब हर साल देश को 2.8 करोड़ टन हाइड्रोजन की जरूरत होगी.

द एनर्जी एंड रिसोर्स इनिशिएटिव यानी कि टेरी संस्था के मुताबिक एक किलो ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में 5-6 डॉलर यानी कि करीब 400-500 रुपये खर्च होते हैं. लेकिन इस ईंधन को अपनाना स्टील और फर्टीलाइजर जैसी कंपनियों के लिए महंगा है.

इसलिए अगर उत्पादन की कीमत घटकर करीब 2 डॉलर यानी कि लगभग 160 रुपये हो जाती है, तो यह संभव हो पाएगा. लेकिन उत्पादन की कीमत तभी कम हो पाएगी, जब भारत में इलेक्ट्रोलाइजर्स मैन्यूफैक्चरिंग में बढ़ोतरी होगी.

इसी साल भारत सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी जारी की है, जिसके अनुसार 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने का लक्ष्य रखा गया है. सरकार ने उद्योग जगत को इस दिशा में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया है. इसलिए अडानी और अंबानी ने इस क्षेत्र में काफी दिलचस्पी दिखाई है. इस समय ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा देश चीन है, जो सालाना 2.4 करोड़ टन से अधिक ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल करता है.

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