छह अस्पतालों ने इलाज करने से मना कर दिया, आठ दिन की बच्ची मौत हो गई
आगरा में 15 दिन में तीन ऐसे मामले देखे गए हैं, जब हॉस्पिटल ने इलाज करने से मना कर दिया.
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आगरा में आठ दिन की एक बच्ची की मौत हो गई. उसे बुखार था और छह अस्पतालों ने उसका इलाज करने से मना कर दिया. 6 मई की रात जिला अस्पताल में बच्ची की मौत हो गई है. टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, बच्ची के पिता 10 घंटे तक बीमार बच्ची के साथ एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल के चक्कर लगाते रहे लेकिन किसी ने इलाज़ नहीं किया.
बच्ची के पिता का नाम मंजीत सुतल है. उनकी पत्नी उषा ने 27 अप्रैल को एक प्राइवेट अस्पताल में बच्ची को जन्म दिया. मंजीत ने बताया कि बेटी जब पैदा हुई तो स्वस्थ थी. 4 मई को हल्का बुखार हुआ तो उसे वो नज़दीकी क्लिनिक लेकर गए. वहां कहा गया कि बच्ची को हॉस्पिटल लेकर जाएं. वह बेटी को एमजी रोड, प्रतापपुरा और शाहगंज रोड के चार हॉस्पिटल में लेकर गए, लेकिन सभी ने इलाज करने से मना कर दिया.
मंजीत ने बताया,
4 मई की शाम में मेरे एक दोस्त ने बताया कि एक प्राइवेट डॉक्टर मारुति एस्टेट क्रॉसिंग के पास मरीजों को देख रहे हैं. मैं भागा-भागा वहां गया लेकिन वहां के स्टाफ ने मुझे एक घंटे से ज्यादा इंतज़ार कराया. चेकअप करने के बाद डॉक्टर ने बताया कि इसे किसी और हॉस्पिटल में ले जाओ क्योंकि यहां वो सुविधाएं नहीं है, जो बच्ची को चाहिए. इसके बाद मैं बेटी को फतेहाबाद रोड के मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल ले गया. यहां स्टाफ ने बताया कि डॉक्टर नहीं हैं.मंजीत ने आगे कहा कि बच्ची की तबीयत ज्यादा बिगड़ी तो वह उसे लेकर जिला अस्पताल लेकर गए. रास्ते में बच्ची कुछ भी रिस्पॉन्ड नहीं कर रही थी, ऐसे में वो एक प्राइवेट अस्पताल में रुके, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत बताया. इसके बाद वह उसे जिला अस्पताल लेकर गए. मामले को लेकर जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर मुकेश कुमार वत्स ने बताया कि उन्हें मामले की कोई औपचारिक शिकायत नहीं मिली है. परिवार वालों को हेल्पलाइन नंबर 108 या 112 पर कॉल करना चाहिए था. पिछले 15 दिनों में आगरा में मेडिकल लापरवाही के कम से कम ऐसे तीन मामले सामने आए हैं. जिन मरीजों को कोरोना वायरस नहीं था, उन्हें भी सरकारी और प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज नहीं किया गया. इलाज़ नहीं होने के कारण गर्भ में बच्चे की मौत 22 अप्रैल को एक प्रेग्नेंट महिला का इलाज करने से दो प्राइवेट हॉस्पिटल्स ने इनकार कर दिया. वह करीब छह घंटे तक दर्द में रही. अंत में जब रात में 9 बजे उसे जिले के महिला हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, तो डॉक्टर ने बताया कि बच्चे की मृत्यु गर्भ में ही हो गई है. भाग दौड़ करते रहे लेकिन किसी डॉक्टर ने इलाज नहीं किया 24 अप्रैल को एक 12 साल के लड़के को पेट में दर्द था. छह प्राइवेट अस्पतालों ने इस लड़के का इलाज करने से मना कर दिया. अंत में लड़के को एसएन मेडिकल कॉलेज ले जाया गया जहां उसे कोरोना वायरस वाले आइसोलेशन वार्ड में रखा गया. आखिर में इस बच्चे की मौत हो गई. इलाज के इंतजार में बच्चे की मौत 29 अप्रैल को तीन प्राइवेट अस्पतालों ने आठ महीने के बच्चे का इलाज करने से मना कर दिया. जब मां-पिता एसएन मेडिकल कॉलेज पहुंचे तो बच्चे की इलाज के इंतजार में मौत हो गई क्योंकि उसने पहले कागजी कारवाई करने को कहा गया था. 30 अप्रैल को, नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) ने आगरा जिला प्रशासन को इन मामलों को लेकर नोटिस जारी किया था.
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