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साइरस मिस्त्री की टाटा बाय बाय पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है

2016 से चला आ रहा वो पूरा झगड़ा जान लीजिए, जिसमें टाटा कंपनी को जीत मिली है.

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सुप्रीम कोर्ट ने टाटा के हक में फैसला सुनाया है.
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26 मार्च 2021 (Updated: 26 मार्च 2021, 07:37 IST)
Updated: 26 मार्च 2021 07:37 IST
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सुप्रीम कोर्ट की ओर से टाटा ग्रुप की कंपनी टाटा संस लिमिटेड को बड़ी राहत मिली है. अदालत ने साइरस मिस्त्री को कंपनी के चेयरमैन पद से हटाने के फैसले को सही ठहराया है. कोर्ट ने NCLAT यानी नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल के फैसले को पलट दिया है. कोर्ट ने कहा कि मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाना कानूनी तौर पर सही है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले में साइरस इंवेस्टमेंट एंड स्ट्रिंग इंवेस्टमेंट के दावे को खारिज कर दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि टाटा संस में साइरस मिस्त्री के परिवार से जुड़े शापूरजी पलोनजी (एसपी) ग्रुप के शेयरों का वैल्यूएशन टाटा सन्स के अनलिस्टेड शेयरों के आधार पर तय होगा. कोर्ट यह तय नहीं कर सकता कि मिस्त्री को क्या मुआवजा मिलना चाहिए. यह दोनों पक्ष आपस में बैठकर तय कर सकते है. कोर्ट ने कहा कि इस बारे में जितने भी सवाल उठे थे, उसका जवाब टाटा समूह के पक्ष में है. एसपी ग्रुप के सभी आवेदनों को खारिज किया जाता है. कोर्ट ने 17 दिसंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था. टाटा संस ने NCLAT के 18 दिसंबर, 2019 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें टाटा संस लिमिटेड के चेयरमैन के रूप में साइरस मिस्त्री की बहाली का आदेश दिया था. इस पर 10 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. क्या है पूरा मामला? साल 2016. टाटा संस बोर्ड और रतन टाटा कैंप ने मिलकर साइरस मिस्त्री को कंपनी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. बोर्ड ने 24 अक्टूबर को साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया था. इसके बाद साइरस से कहा गया कि वे ग्रुप की अन्य कंपनियों से भी बाहर निकल जाएं. मिस्त्री ने इस्तीफा दे दिया. लेकिन इसके बाद वे गए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT). यानी कंपनियों की निचली अदालत. शापूरजी पलोनजी ग्रुप की दो कंपनी साइरस इन्वेस्टमेंट और स्टर्लिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन ने टाटा ट्रस्ट और टाटा सन्स के निदेशकों के ख‍िलाफ याचिका दाखिल की. इनमें टाटा सन्स पर अनियम‍ितता बरतने का आरोप लगाया गया. कहा गया कि प्रबंधन एवं नैतिक मूल्यों का उल्लंघन किया गया. आरोप ये भी थे कि रतन टाटा और कंपनी के ट्रस्टी एन सूनावाला सुपर डायरेक्टर की तरह काम कर रहे थे. कहा कि दोनों वरिष्ठ काम में दखलअंदाज़ी कर रहे थे. आरोप लगाया गया कि मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाने का काम ग्रुप के कुछ प्रमोटर्स ने किया. ग्रुप और रतन टाटा के अव्यवस्थ‍ित प्रबंधन की वजह से ग्रुप को आय का काफी ज्यादा नुकसान हुआ. 2018 में NCLT ने मिस्त्री की दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया. कहा कि आरोपों में कोई आधार नहीं दिखता. इसके बाद साइरस मिस्त्री ने अपील की NCLAT में, जिस पर 18 दिसंबर को निर्णय आया. फैसले में कहा गया कि टाटा संस के निदेशक मिस्त्री को पोस्ट से हटाने का फैसला सही नहीं है. कंपनी में मिस्त्री की 18.4 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. ये हिस्सेदारी टाटा संस के बाद सबसे बड़ी है. मिस्त्री का कहना था कि उन्हें भी बोर्ड में उनकी हिस्सेदारी के हिसाब से जगह मिले. टाटा समूह ने मिस्त्री के आरोपों को खारिज किया. कहा कि साइरस मिस्त्री को इसलिए निकाला गया क्योंकि बोर्ड उनके प्रति विश्वास खो चुका था. मिस्त्री पर ये भी आरोप लगे कि उन्होंने जानबूझकर कंपनी को नुकसान पहुंचाने की नीयत से कंपनी की संवेदनशील जानकारी लीक की. इस कारण ग्रुप की वैल्यू को नुकसान पहुंचा. अब सुप्रीम कोर्ट से भी फैसला टाटा के पक्ष में आया है.

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