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हमीरपुर का 25 साल पुराना हत्याकांड, जिसमें SC ने पूर्व सांसद अशोक चंदेल की उम्रकैद को सही बताया

यूपी के हमीरपुर में भरे बाजार शुक्ला परिवार के लोगों की हत्या हुई थी. निचली अदालत ने अशोक सिंह चंदेल को बरी कर दिया था.

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Hamirpur murder ashok singh chandel
पूर्व सांसद अशोक सिंह चंदेल. (फोटो: फेसबुक)
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धीरज मिश्रा
4 नवंबर 2022 (Updated: 4 नवंबर 2022, 08:48 PM IST)
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उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में करीब 25 साल पहले 5 लोगों की सामूहिक हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने पूर्व सांसद अशोक सिंह चंदेल (Ashok Singh Chandel) और अन्य छह लोगों की उम्रकैद की सजा पर मुहर लगाई और हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है. हमीरपुर की ट्रायल कोर्ट ने साल 2002 में इस केस के सभी आरोपियों को बरी कर दिया था. हालांकि, बाद में इलाबाद हाईकोर्ट ने विस्तृत सुनवाई के बाद अप्रैल, 2019 में सभी 10 आरोपियों को उम्रकैद की सजा दी थी.

CJI यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने दोषियों की याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटने का सही निर्णय दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

‘हाईकोर्ट की ये जिम्मेदारी थी कि वो उस फैसले (ट्रायल कोर्ट) को पलट दें, क्योंकि इसके लिए पर्याप्त सबूत उपलब्ध थे. और यदि ऐसा न किया जाता तो यह बहुत बड़ा अन्याय होता.’

कोर्ट ने कहा कि इस मामले रे सभी पहलुओं की जांच के बाद ये सामने आया है कि ट्रायल कोर्ट ने जो फैसला दिया था, वो 'अनुमानों और अटकलों' पर आधारित था. इसलिए हाईकोर्ट ने उस फैसले को पलटकर सही काम किया था. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सबूतों का गलत निष्कर्ष निकाला था.

‘गाड़ी रुकी और चलने लगीं गोलियां’

ये पूरा मामला यूपी के हमीरपुर में दो समूहों, अशोक चंदेल ग्रुप और शुक्ला परिवार, के बीच लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक रंजिश की कहानी है. दरअसल, 26 जनवरी 1997 को राजीव शुक्ला शहर के मोहल्ला सुभाष बाजार में कुछ सामान खरीदने गए थे. वहां से लौटते वक्त उन्होंने देखा कि उनके बड़े भाई राकेश कुमार शुक्ला और उनके दो बेटे गुड्डा और चंदन, श्रीकांत पांडे, विपुल (राजीव शुक्ला के बेटे) और वेद प्रकाश एक जोंगा गाड़ी से घर जा रहे थे.

राजीव ने अपने बड़े भाई से बात करने के लिए गाड़ी रुकवा दी. गाड़ी सड़क के एकदम बीच में रुकी. पास में ही नसीम की बंदूक की दुकान थी. दोनों भाइयों को बातचीत करते हुए कुछ ही देर हुई थी कि नसीम की दुकान से छह लोग, अशोक कुमार चंदेल, नसीम, श्याम सिंह, साहब सिंह, झंडु और रुक्कू निकले और गाड़ी पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरु कर दी.

गोलियों की आवाज सुनने के बाद एक शराब ठेके का मालिक रघुवीर सिंह, उसका बेटा आशुतोष उर्फ डब्बू, प्रदीप सिंह, उत्तम सिंह और भान सिंह भी मौके पर पहुंचे और जोंगा गाड़ी पर फायरिंग करने लगे.

इस घटना में राकेश कुमार शुक्ला और उनके बेटे गुड्डा समेत कुल पांच लोगों की मौत हो गई थी. वहीं कई सारे लोग घायल भी हुए थे. FIR के मुताबिक इस घटना के वक्त अशोक चंदेल ने कहा था- ‘शुक्ला परिवार का कोई भी व्यक्ति बचना नहीं चाहिए.’

कौन है अशोक चंदेल?

अशोक सिंह चंदेल एक समय हमीरपुर का कद्दावर नेता था. पहली बार वो साल 1989 में विधायक बना था. हमीरपुर सीट से उसने निर्दलीय चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी. इसके बाद साल 1993 में उसने जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत गया. फिर साल 2007 में समाजवादी पार्टी की टिकट पर विधायक बना था.

इससे पहले साल 1999 में चंदेल ने BSP की टिकट पर हमीरपुर लोकसभा सीट पर चुनाव जीता था. साल 2017 में चंदेल ने BJP में शामिल हो गया और फिर चौथी बार विधायक बना.

कैसे बचता रहा चंदेल?

इस घटना के बाद करीब एक साल तक चंदेल फरार था. साल 1998 में उसने सरेंडर किया और जल्द ही उसे जमानत मिल गई. हालांकि, आरबी लाल नाम के जिस एडिशनल जिला जज (एडीजे) ने जमानत दी थी, उन्हें बाद में साल 2003 में बर्खास्त कर दिया गया था. फिर 15 जुलाई 2002 को एक अन्य जज अश्विनी कुमार ने अशोक सिंह चंदेल को बरी कर दिया था.

इधर राजीव कुमार शुक्ला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर फैसले को पलटने और अश्विनी कुमार के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी. राजीव ने शिकायत की थी कि निचली अदालत के जज ने कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है और बिना किसी आधार के चंदेल को बरी कर दिया. इसके चलते साल 2013 में अश्विनी कुमार को भी बर्खास्त किया गया था.

करीब 25 साल लंबे चले इस मामले में कई बार याचिकाकर्ता ने चंदेल के खिलाफ आरोप लगाया कि वो अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल कर कानूनी प्रक्रिया का माखौल उड़ा रहा है.

हाईकोर्ट का फैसला

इस घटना के करीब 22 साल बाद, 19 अप्रैल 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अशोक सिंह चंदेल और आठ लोगों के खिलाफ उम्रकैद की सजा सुनाई. जस्टिस रमेश सिन्हा और दिनेश कुमार की पीठ ने निचली अदालत के फैसले को सिरे से खारिज कर दिया, जिसने सबूतों के अभाव की बात कह आरोपियों को बरी कर दिया था. 

इस आदेश के बाद से सभी दोषी अलग-अलग जेल में बंद हैं. अशोक सिंह चंदेल आगरा की जेल में बंद है. अब इसी फैसले को सर्वोच्च अदालत ने भी बरकरार रखा है.

इसके साथ ही कोर्ट ने पीड़ित राजीव शुक्ला की भी उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने उम्रकैद की सजा को बदल कर मृत्युदंड करने की मांग की थी. इसके अलावा उन्होंने अशोक कुमार चंदेल को यूपी से बाहर किसी जेल में कैद करने की मांग की थी. हालांकि, न्यायालय ने इस याचिका को भी खारिज कर दिया.

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