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फ्रीबी वाले केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है, जानिए कहा क्या?

अपने ही पुराने फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने को क्यों कहा?

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रेवड़ी कल्चर पर सु्प्रीम कोर्ट (फोटो- आजतक)
26 अगस्त 2022 (Updated: 26 अगस्त 2022, 15:18 IST)
Updated: 26 अगस्त 2022 15:18 IST
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गुरूवार को रेवड़ी कल्चर (Freebies Culture) मामले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने फ्रीबीज के मुद्दे की जटिलता को देखते हुए मामला तीन जजों की बेंच (3 Judges Bench) के पास भेज दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 2013 में फ्रीबी पर आए सुप्रीम कोर्ट के ही निर्णय पर फिर से विचार करने की जरूरत है. मामले पर विशेषज्ञ समिति का गठन भी किया जाएगा. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर केंद्र को एक सर्वदलीय बैठक बुलाने का प्रस्ताव भी भेजा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक चुनावी लोकतंत्र में असली शक्ति मतदाताओं के पास होती है और वो ही पार्टियों और उम्मीदवारों का चुनते हैं. 

Election Freebies पर याचिका 

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए 'मुफ्त' का वादा करने वाले राजनीतिक दलों पर बैन लगाने की मांग की गई थी. बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में 22 जनवरी 2022 को ये याचिका दाखिल की थी. इसमें राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त की घोषणाओं और वादों पर रोक लगाने की मांग की गई थी. साथ ही 'अतार्किक मुफ्त वादे' करने वाले राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने या उनके चुनाव चिह्नों को सीज करने की मांग की गई.

आज आए आदेश के पहले सुप्रीम कोर्ट ने फ्रीबी मुद्दे पर सुनवाई करते हुए था कि हमें यह परिभाषित करना होगा कि फ्रीबी क्या है. साथ ही जनता के पैसे को कैसे खर्च किया जाए हम इसका परीक्षण करेंगे. 17 अगस्त को सुनवाई के दौरान बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि राजनीतिक दलों को चुनावी वादे करने से रोका नहीं जा सकता है, लेकिन 'फ्रीबीज' और 'असल कल्याणकारी योजनाओं' के बीच के अंतर को समझना होगा. बेंच ने ये भी कहा कि क्या यूनिवर्सल हेल्थकेयर और पीने के पानी की उपलब्धता को फ्रीबीज माना जा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा उपहार का वादा और उसे बांटना एक गंभीर मुद्दा है. इससे अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है. साथ ही SC ने साफ किया कि इसके लिए राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द नहीं किया जा सकता.

2013 में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?

साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने 'मुफ्त की घोषणाओं और वादों' को लेकर एक अहम फैसला सुनाया था. इस संबंध में 'सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु' केस काफी चर्चित रहा. साल 2006 का तमिलनाडु विधानसभा चुनाव जीतने के बाद डीएमके ने मुफ्त में कलर टीवी बांटने का वादा किया था. डीएमके सरकार के इसी फैसले को याचिकाकर्ता ने चुनौती दी थी.

इसपर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा कलर टीवी, साइकिल, मुफ्त मकान, बिजली या रोजगार देने के वादों को घूस या भ्रष्टाचार नहीं माना जा सकता है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट में 'फ्रीबीज' को लेकर कई सवाल थे. एक सवाल ये था कि क्या राजनीतिक दलों के ऐसे वादों को जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा-123 के तहत 'भ्रष्ट कार्यप्रणाली' माना जाना चाहिए.

कोर्ट ने फैसले में इन वादों लेकर कहा था कि जन प्रतिनिधित्व कानून उम्मीदवारों के बारे में बात करता है ना कि राजनीतिक पार्टी के बारे में. साथ ही कोर्ट ने कहा था कि इलेक्शन मेनिफेस्टो किसी राजनीतिक दल की अपनी नीतियों का एक स्टेटमेंट होता है. ये नियम बनाना कोर्ट के दायरे में नहीं है कि कोई राजनीतिक पार्टी चुनावी घोषणापत्र में किस तरह के वादे कर सकती है या नहीं कर सकती है. 

याचिकाकर्ता ने डीएमके के कई वादों को लेकर सवाल उठाया था. जिनमें, राशन कार्ड धारकों को मुफ्त में पंखे और ग्राइंडर मशीन देने की घोषणा भी थी. इसपर कोर्ट ने कहा था कि ये समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है. अंग्रेजी वेबसाइट 'द न्यूज मिनट' की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने कहा था,

"ये सरकार पर निर्भर है कि वो नीति-निर्देशक तत्वों को लागू करते समय लोगों की जरूरतों और अपने वित्तीय खजाने का ध्यान रखे. अगर कोई खास लाभ किसी खास वर्ग को मिल रहा है, तो राज्य का सीमित संसाधन हो सकता है. सभी कल्याणकारी योजनाएं एक बार में सभी नागरिकों के लिए लागू नहीं की जा सकती हैं. राज्य धीरे-धीरे इन योजनाओं को आगे बढ़ा सकता है और सुप्रीम कोर्ट ने भी कई फैसलों में ऐसा कहा है."

सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के इस फैसले में एक अहम टिप्पणी CAG को लेकर भी की थी. कोर्ट ने कहा था कि कैग का काम ऑडिट करना है, वो ये नहीं बता सकता कि सरकारों को किस तरीके से पैसे खर्च करने चाहिए. हालांकि, कोर्ट ने उस वक्त चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के साथ बातचीत कर इलेक्शन मेनिफेस्टो की गाइडलाइंस तय करने का भी सुझाव दिया था.

देखें वीडियो- रेवड़ी कल्चर पर चल रही बहस के बीच जानें रेवड़ी बनती कैसे है?

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