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गुजरात दंगे में निर्दोष लोगों को फंसाने का आरोप लगा था, SC ने तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत दी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक गुजरात हाईकोर्ट तीस्ता की रेगुलर जमानत याचिका पर फैसला नहीं सुना देता, केवल तब तक ही उन्हें अंतरिम जमानत दी जा रही है.

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Teesta Setalvad Bail
तीस्ता सीतलवाड़. (फाइल फोटो)
2 सितंबर 2022 (Updated: 2 सितंबर 2022, 18:54 IST)
Updated: 2 सितंबर 2022 18:54 IST
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ (Teesta Setalvad) को अंतरिम जमानत दे दी है. साल 2002 के गुजरात दंगे (2002 Gujarat Riot) से जुड़े दस्तावेजों का फर्जीवाड़ा करने के आरोप में वो 26 जून से ही जेल में बंद हैं. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस सुधांशू धूलिया की पीठ ने कहा कि तीस्ता पिछले दो महीनों से हिरासत में हैं और इस दौरान जांच के लिए उन्हें सात दिन की पुलिस हिरासत में भी भेजा गया था.

पीठ ने ये भी कहा कि तीस्ता पर लगे आरोप साल 2002 और ज्यादा से ज्यादा 2012 तक कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेजों से जुड़े हुए हैं. इसलिए इस तरह के आरोप में याचिकाकर्ता पूरी तरह से जमानत की हकदार हैं.

कोर्ट ने कहा कि इस आरोप में जांच के लिए जितने चीजें जरूरी थीं, उसका पुलिस ने पहले ही इस्तेमाल कर लिया है, जिसमें हिरासत में पूछताछ भी शामिल है. इसलिए ये मामला अब ऐसी स्थिति में पहुंच गया है, जहां अतरिम जमानत जरूरी हो गई है. पीठ ने कहा, 

'हमारे विचार से याचिकाकर्ता अंतरिम जमानत की हकदार हैं. यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि अभी ये मामला हाईकोर्ट में लंबित है, जैसा कि सॉलिसिटर जनरल ने भी ध्यान दिलाया है. इसलिए हम ये तय नहीं कर रहे हैं कि याचिकाकर्ता को जमानत दी जानी चाहिए या नहीं. इस मामले पर हाईकोर्ट को विचार करना है. हम सिर्फ इस बिंदु पर विचार कर रहे हैं कि जब तक ये मामला विचाराधीन है, क्या इस बीच भी याचिकाकर्ता को जेल में रखना आवश्यक है.'

पीठ ने आगे कहा, 

'हमने सिर्फ अंतरिम जमानत के दृष्टिकोण से इस मामले पर विचार किया है. इस मामले पर मेरिट के आधार पर विचार करने के लिए हाईकोर्ट स्वतंत्र है और इस न्यायालय द्वारा की गईं टिप्पणियों का उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.'

कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया कि इस मामले में इस बात पर भी संज्ञान लिया गया है कि 'वो एक महिला हैं' और अन्य आरोपियों द्वारा इसका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. अन्य मामलों को उसके मेरिट के आधार पर ही तय किया जाए.

तीस्ता सीतलवाड़ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि उनकी क्लाइंट के खिलाफ जो FIR दर्ज की गई है, उसमें 24 जून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश की बातें ही शामिल हैं और इसमें और कुछ भी नहीं है, इसलिए तीस्ता के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने 24 जून के एक आदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साल 2002 के गुजरात दंगे मामले में क्लीन चिट दी थी. वहीं गुजरात सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा तीस्ता की जमानत याचिका अभी हाईकोर्ट में लंबित है, इसलिए उच्च न्यायालय को इस मामले को सुनने देना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.

हालांकि, कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कुछ ऐसी चीजें हैं जो उन्हें 'परेशान' कर रही हैं और ऐसे में याचिकाकर्ता अंतरिम जमानत की हकदार हैं.

Teesta Setalvad को सरेंडर करना पड़ेगा पासपोर्ट

न्यायालय ने कहा कि एक तो याचिकाकर्ता दो महीने से भी अधिक समय से जेल में बंद हैं, लेकिन अभी तक कोई चार्जशीट दायर नहीं हुई है. वहीं, दूसरी वजह ये है कि तीस्ता के खिलाफ मौजूदा FIR जकिया जाफरी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले दिन ही दायर की गई थी और इसमें लगाए गए आरोप कोर्ट की टिप्पणियों से ही भरे हुए हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ जो आरोप हैं वो मर्डर या किसी को शारीरिक नुकसान पहुंचाने जैसे गंभीर नहीं हैं, बल्कि ये कोर्ट में पेश किए गए कथित जाली दस्तावेजों का मामला है, जो कि संगीन नहीं है.

इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत दे दी. अपने आदेश में कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया है कि तीस्ता को अपना पासपोर्ट सरेंडर करना पड़ेगा. जब तक हाईकोर्ट से उन्हें रेगुलर बेल नहीं मिल जाती, वे देश के बाहर नहीं जा सकती हैं. 

इसके अलावा तीस्ता को इस मामले में जांच एजेंसियों को लगातार अपना सहयोग देना होगा. कोर्ट का कहना है कि वो तीस्ता को बेल पर नहीं छोड़ रहे हैं, सिर्फ जब तक हाईकोर्ट द्वारा रेगुलर बेल पर कोई फैसला नहीं आ जाता, कोर्ट द्वारा उन्हें अंतरिम जमानत दी जा रही है.

(डिसक्लेमर: हम ये साफ कर दें कि न्यायालय की पूरी कार्यवाही के ब्योरे देना संभव नहीं होता. संक्षेपण किया जाता है. वकीलों की दलीलों और बेंच की टिप्पणियों का क्रम कई बार बना नहीं रह पाता. बावजूद इसके, दी लल्लनटॉप ने उपलब्ध जानकारियों को समेटने की कोशिश की है. दर्शक जानते ही हैं कि कार्यवाही की भाषा अंग्रेज़ी होती है. इसीलिए हमने अनुवाद पेश किया है. न्यायालय की कार्यवाही की सटीक जानकारी के लिए न्यायालय से जारी आधिकारिक आदेश को ही देखा जाए.)

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