'रामचरित मानस पर बैन लगे, ऐसे धर्म का सत्यानाश हो अगर...' अब स्वामी प्रसाद मौर्य ने दिया बयान
"अगर यही धर्म है तो ऐसे धर्म को मैं नमस्कार करता हूं."

'रामचरित मानस को बैन कर देना चाहिए.'
'धर्म के नाम पर पिछड़ों और दलितों को गाली क्यों?'
ये कहना है समाजवादी पार्टी के नेता और यूपी विधान परिषद के सदस्य (MLC) स्वामी प्रसाद मौर्य का. रामचरित मानस को लेकर हाल में बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने एक टिप्पणी की जिस पर खूब बवाल हुआ. अब स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि इस ग्रंथ में धर्म के नाम पर जाति विशेष, वर्ग विशेष को अपमानित किया गया है.
आज तक के रिपोर्टर संतोष कुमार शर्मा ने इस विवाद को लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य से बातचीत की. जब रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि करोड़ों लोग इसे पढ़ते हैं क्या उनकी बात से भावनाएं आहत नहीं होंगी. तो मौर्य ने कहा कि कोई करोड़ों लोग नहीं पढ़ते हैं ये सब बकवास है. ये तुलसीदास ने अपनी खुशी के लिए लिखा. उन्होंने कहा कि धर्म के नाम पर पिछड़ों और दलितों को गाली क्यों. गाली धर्म हो ही नहीं सकता है. जिसमें मानवता आहत हो वो धर्म नहीं हो सकता है.
ऐसे धर्म का सत्यानाश हो- मौर्यमौर्य ने रामचरित मानस की उस चौपाई का जिक्र किया, जिसमें दलित और स्त्री विरोधी कहा जाता है. "ढोल, गंवार शूद्र, पशु, नारी. सकल ताड़ना के अधिकारी." उन्होंने कहा कि जब इस पर लोग आपत्ति जताते हैं तो धर्माचार्य और ठेकेदार सफाई देने आते हैं कि इसमें उनको (शूद्रों) शिक्षा के लिए इशारा किया गया है. मौर्य ने बताया कि महिलाओं और दलितों-आदिवासियों को पढ़ने का अधिकार अंग्रेजों के शासन में मिला. जब तुलसीदास ने ये ग्रंथ लिखा तब कहां से ये शिक्षा देने बात आ गई.
स्वामी प्रसाद मौर्य ने आगे कहा,
"इसी मानस में बताया गया है कि कोई व्यभिचारी हो, दुराचारी हो, अनपढ़ हो या देशद्रोही भी हो लेकिन अगर वो ब्राह्मण हो तो पूजिये. लेकिन कितना भी ज्ञानी क्यों ना हो, विद्वान हो, ज्ञाता हो लेकिन अगर वो शूद्र है तो उसका सम्मान मत करिये. अगर यही धर्म है तो ऐसे धर्म को मैं नमस्कार करता हूं, जो हमारा सत्यानाश चाहता है."
उन्होंने कहा कि वे धर्म के ठेकेदारों से पूछना चाहते हैं कि क्या दलित-आदिवासी और पिछड़े हिंदू नहीं हैं? अगर पिछड़े, दलित और आदिवासी हिंदू हैं और वे 85 फीसदी हैं. 85 फीसदी हिंदुओं को गाली देकर मुट्ठी भर 5 फीसदी हिंदुओं की भावना की बात करते हैं. दोनों बातें नहीं चलेंगी. अगर हिंदू सम्मान की बात है तो उसमें दलित, आदिवासी और पिछड़े भी हैं. केवल 5 फीसदी धर्माचार्य हिंदू नहीं हैं.
मौर्य ने कहा कि सरकार को इन आपत्तिजनक अंश को हटाना चाहिए या पूरी किताब को बैन कर देना चाहिए, जिससे दलितों, पिछड़ों की भावनाएं हो रही है. उन्होंने कहा कि वे इसे लेकर कई बार सार्वजनिक रूप से आपत्ति जता चुके हैं. किसी भी धर्म को किसी के बारे में गाली देने का अधिकार नहीं है.
बिहार के शिक्षा मंत्री ने क्या बोला था?इससे पहले बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने रामचरित मानस को नफरत फैलाने वाला ग्रंथ बताया था. 11 जनवरी को चंद्रशेखर ने पटना में नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दौरान कहा था कि रामचरित मानस समाज को बांटने वाला ग्रंथ है. जब मीडिया ने उनसे सवाल किया तो उन्होंने कहा था कि मनुस्मृति में समाज की 85 फीसदी आबादी वाले बड़े तबके के खिलाफ गालियां दी गई हैं. रामचरित मानस के उत्तर कांड में लिखा है कि नीच जाति के लोग शिक्षा ग्रहण करने के बाद सांप की तरह जहरीले हो जाते हैं. ये नफरत बोने वाले ग्रंथ हैं. उनके इस बयान पर विपक्षी नेता अभी तक हमला कर रहे हैं.
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