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करो थारो काईं मैं कसूर! सचिन पायलट का दिल क्या यही दर्द गुनगुनाता होगा?

क्या राजस्थान में तीसरा मोर्चा बनाएंगे सचिन पायलट?

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Sachin pilot fast against Ashok Gehlot
सचिन पायलट अपनी ही सरकार के खिलाफ एक दिन के अनशन पर बैठे हैं. (तस्वीरें- इंडिया टुडे)
11 अप्रैल 2023 (Updated: 11 अप्रैल 2023, 15:56 IST)
Updated: 11 अप्रैल 2023 15:56 IST
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शुरुआत हुई थी "द यूनाइटेड कलर्स ऑफ राजस्थान" से. राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद 14 दिसंबर 2018 को राहुल गांधी ने सचिन पायलट और अशोक गहलोत के साथ तस्वीर शेयर कर यही लिखा था. तीनों नेता मुस्कुरा रहे थे. उस वक्त ये रंग कितने घुले हुए थे, इस पर कइयों को संदेह था. क्योंकि राजनीति के जानकारों को पता था कि इसमें मुस्कुराते हुए सचिन पायलट अंदर से गमज़दा थे. हुआ भी यही. राहुल गांधी के इन इकट्ठे रंगों का बिखराव काफी पहले हो गया. बगावत की कहानी सबको याद है. अब 2023 है. राजस्थान में कुछ महीने बाद फिर विधानसभा चुनाव होने हैं. एक नेता जो मुस्कुराते हुए भी गम में था, उसकी नाराजगी अब तक दूर नहीं हो पाई है.

30 मार्च 2023 को कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने एक इंटरव्यू में कहा था कि दिल्ली से जो निर्देश आएंगे वो करेंगे. दिल्ली से यानी कांग्रेस आलाकमान से. लेकिन ठीक 10 दिन बाद, पायलट ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ फिर से बगावत का बिगुल बजा दिया. राजस्थान कांग्रेस के भीतर का संकट दोबारा बाहर आ गया. आज, 11 अप्रैल को पायलट सीएम गहलोत के खिलाफ एक दिन के अनशन पर बैठे हैं. पायलट ने अनशन के पोस्टर पर लिखवाया है, ‘वसुंधरा सरकार में हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन’.

पायलट का कहना है कि अशोक गहलोत ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था, लेकिन अब खुद कोई कार्रवाई नहीं कर रहे. 9 अप्रैल को पायलट ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उसमें उन्होंने सीएम अशोक गहलोत के पुराने वीडियो चलाए, जिनमें गहलोत पूर्व सीएम वसुंधरा राजे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं. उन्होंने सीएम गहलोत को घेरते हुए आगे कहा, 

"वसुंधरा सरकार के समय विपक्ष में रहते हुए हमने 45 हजार करोड़ के घोटालों को लेकर आवाज उठाई थी. हमने वादा किया था कि सरकार आएगी तो इन घोटालों पर निष्पक्ष जांच होगी. अब विधानसभा चुनावों में 6-7 महीने बचे हैं, ऐसे में विरोधी भ्रम फैला सकते हैं कि कहीं कोई मिलीभगत तो नहीं है. हमें इसे गलत बताने के लिए जल्दी कार्रवाई करनी होगी."

सचिन पायलट ने दावा किया कि उन्होंने इस मुद्दे को लेकर अशोक गहलोत को चिट्ठियां भी लिखीं, फिर भी कार्रवाई नहीं हुई. 28 मार्च 2022 को पहली चिट्ठी लिखी थी. फिर 2 नवंबर 2022 को दूसरी चिट्ठी लिखी. लेकिन गहलोत ने कोई जवाब नहीं दिया.

14 दिसंबर 2018 को राहुल गांधी यही तस्वीर पोस्ट की थी (फोटो- राहुल गांधी/ट्विटर)

पायलट की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस और अनशन की बात ने अटकलें तेज कर दीं. चर्चा चलने लगी कि क्या पायलट राजस्थान चुनाव से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनकी तरह दूसरे पूर्व कांग्रेस नेताओं की राह पकड़ेंगे. कुछ दिन पहले आजतक को दिए एक इंटरव्यू में सचिन पायलट ने कांग्रेस नेतृत्व को सही समय पर सही निर्णय लेने की सलाह दी थी. उन्होंने कहा था कि तभी राजस्थान में पिछले 25-30 सालों का क्रम (सत्ता परिवर्तन) टूट जाएगा. ये पहली बार नहीं है, जब पायलट इस तरह से नाराज दिखे. लेकिन चुनाव से पहले उनके अनशन से क्या कांग्रेस के फैसलों में कुछ बदलाव आएगा? क्या पायलट को अब तवज्जो मिलेगी?

गहलोत के बचाव में आए कांग्रेस नेता

एक तरफ पायलट मुख्यमंत्री को घेर रहे हैं, दूसरी ओर कांग्रेस नेतृत्व अशोक गहलोत के समर्थन में डटकर खड़ा है. कांग्रेस के मीडिया इनचार्ज पवन खेड़ा ने कहा कि यह कहना गलत है कि जांच नहीं हो रही है. 10 अप्रैल को प्रेंस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा था, 

"गजेंद्र सिंह शेखावत के ऊपर संजीवनी घोटाले की जांच चल रही है. राजस्थान में हमारे विधायकों को खरीदकर चुनी हुई सरकार गिराने की साजिश में बीजेपी के कौन से नेता शामिल थे, इसकी भी जांच हो रही है."

पवन खेड़ा ने साफ कहा कि अगर किसी को शिकायत है तो वे प्रभारी और महासचिव से बात करें.

वहीं कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने एक बयान जारी कर कहा कि सचिन पायलट का अनशन पार्टी हितों के खिलाफ है. रंधावा ने इसे पार्टी विरोधी गतिविधि बताया है. उन्होंने कहा कि अगर पायलट को अपनी सरकार से कुछ दिक्कत है तो मीडिया में जाने के बदले पार्टी फोरम में उसकी चर्चा की जा सकती है. रंधावा के मुताबिक, 

"पायलट को पहले उनसे बात करनी चाहिए थी. राजस्थान प्रभारी बनने के बाद मैं 20 से ज्यादा बार उनसे मिल चुका हूं. लेकिन उन्होंने भ्रष्टाचार का मुद्दा कभी नहीं उठाया था. लेकिन वे अब सीधे मीडिया में जा रहे हैं, ये तरीका सही नहीं है. मैं 11 अप्रैल को जयपुर जाऊंगा और इस मुद्दे पर पायलट और गहलोत दोनों से बात करूंगा."

कांग्रेस के दूसरे नेताओं के बयान भी आने शुरू हो गए. सभी गहलोत के पक्ष में ही नजर आए. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि अशोक गहलोत काफी सुलझे हुए नेता हैं. पहले भी उनके सामने ऐसे संकट आ चुके हैं. बघेल के मुताबिक गहलोत खुद इस चीज से निपट लेंगे.

किस दिशा में हैं सचिन पायलट?

कुछ दिन पहले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल ने बयान दिया था कि वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत दोनों एक ही टीम के हैं. यानी दोनों की राजस्थान में मिलीभगत है. बेनीवाल ने ये भी कहा था कि अगर सचिन पायलट उनके साथ आते हैं तीसरा मोर्चा बन सकता है. सचिन पायलट ने इसका खंडन नहीं किया था. फिर अरविंद केजरीवाल ने भी इसी बयान को दोहराया कि दोनों (गहलोत-राजे) एक-दूसरे का समर्थन करते हैं.

राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट (फोटो- पीटीआई)

इंडिया टुडे मैगजीन के पत्रकार आनंद चौधरी कहते हैं कि अब सचिन पायलट ने भी अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुछ ऐसा ही इशारा किया है. आनंद का मानना है कि आने वाले दिनों में अगर सचिन पायलट कांग्रेस छोड़ते हैं तो इसे राजस्थान में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट की तरह देख सकते हैं. सचिन पायलट को उम्मीद थी कि चुनाव से पहले अंतिम कुछ महीनों के लिए उन्हें सीएम बना दिया जाए लेकिन अब ये उम्मीद भी खत्म है.

आनंद के मुताबिक, सचिन पायलट के अनशन का शायद ही कुछ असर होगा. क्योंकि वो पहले ही अपनी छवि खराब कर चुके हैं. पहले लोग उनके बारे में सोचते थे, लेकिन अब काफी कुछ बदल चुका है. वो कहते हैं, 

"सचिन पायलट अपना आखिरी दांव चल रहे हैं. वो हर चीज करके देख चुके हैं. विधानसभा से लेकर रैलियों में गहलोत सरकार पर सवाल उठा चुके हैं. अगर इनका कुछ प्रभाव होता तो ये पहले ही बगावत कर चुके होते. वो कोशिश कर रहे हैं कि टिकटों का जब बंटवारा हो तो कम से कम तब उन्हें तवज्जो मिले."

गहलोत-राजे के बीच "गठजोड़"?

सचिन पायलट जिन मुद्दों को लेकर अनशन पर बैठे हैं, उस पर अशोक गहलोत ने अब तक कुछ नहीं कहा है. सरकार में आने से पहले अशोक गहलोत ने कई बार कहा था कि वसुंधरा राजे जेल जाएंगी. उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगाए थे. गहलोत पर "साठ-गांठ" के इस आरोप को आनंद चौधरी सही मानते हैं. वो बताते हैं कि वसुंधरा राजे की सरकार पर जमीन घोटालों का आरोप लगा, माइनिंग घोटाले का आरोप लगा, एक मामले में वसुंधरा राजे के ओएसडी पर सीधे-सीधे आरोप लगा, लेकिन इसके बावजूद अशोक गहलोत ने कुछ नहीं किया. सरकार में आने के बाद गहलोत इन मुद्दों पर आने वाले सवालों को टालते रहे हैं.

आनंद के मुताबिक, 

"इसी तरह वसुंधरा राजे भी गहलोत के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करतीं. गहलोत पर आरोप लगा था कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों को माइन्स आवंटित कीं. गहलोत के बेटे की हिस्सेदारी वाली कंपनी को सड़कों के टेंडर देने के आरोप लगे थे. लेकिन इन आरोपों पर राजे ने कुछ नहीं किया था. अशोक गहलोत इस पर दुहाई देते हैं कि वे बदले की भावना से कार्रवाई नहीं करते हैं."

पायलट के इस एकदिवसीय अनशन का असर कांग्रेस के आने वाले फैसलों में दिख सकता है. वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई इंडिया टुडे में लिखते हैं कि पायलट कांग्रेस लीडरशिप से बार-बार मिल रहे आश्वासन से थक चुके हैं. अनशन कर वे सीधा मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं कि पार्टी के प्रति उनकी वफादारी को कमजोरी की तरह ना देखा जाए.

सचिन पायलट और अशोक गहलोत की लड़ाई

राजस्थान में कांग्रेस ने पिछला चुनाव सचिन पायलट के नेतृत्व में ही जीता था. 2014 में पायलट अजमेर से लोकसभा चुनाव हार गए थे. इसके बाद उन्हें राजस्थान का कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था. कई लोग मानते हैं कि अशोक गहलोत और पायलट के बीच तनातनी 2014 में उनके अध्यक्ष बनने के बाद ही शुरू हो गई थी. हालांकि ये कभी खुलकर सामने नहीं आई.

आनंद चौधरी बताते हैं कि साल 2018 में चुनाव के बाद सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों सीएम की रेस में थे. तब राहुल गांधी ने SMS के जरिये कांग्रेस विधायकों से राय मांगी थी. उस समय करीब 60 से ज्यादा विधायकों ने अशोक गहलोत को चुना था. और 30-35 विधायकों ने सचिन पायलट के नाम पर हामी भरी थी. हालांकि जब जुलाई 2020 में उन्होंने बगावत की तो उनके साथ महज 19 विधायक खड़े थे. यानी डेढ़ साल बाद ही पायलट के समर्थन वाले विधायकों की संख्या करीब आधी हो गई थी.

सचिन पायलट और अशोक गहलोत (फाइल फोटो- पीटीआई)

पायलट के साथ इस तनातनी में पहले गहलोत काफी शांत नजर आते थे. वह सिर्फ अपनी रणनीतियों से आगे बढ़ते थे. लेकिन अशोक गहलोत पहली बार लोकसभा चुनाव 2019 के बाद सचिन पायलट के खिलाफ खुलकर सामने आ गए. कांग्रेस राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटें हार गई थी. पायलट समर्थकों ने खुलेआम ये कहना शुरू कर दिया था कि राज्य में कांग्रेस की हार का कारण सीएम के काम करने का तरीका है. अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत भी जोधपुर से लोकसभा चुनाव हार गए थे. तब सचिन पायलट राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष थे.

लोकसभा चुनाव के बाद एक इंटरव्यू में गहलोत ने सीधे-सीधे कहा कि पायलट उस सीट की जिम्मेदारी लें. तब उन्होंने कहा था, 

"पायलट साहब कह रहे थे, ‘भारी बहुमत से सीट जीतेंगे जोधपुर की, हमारे वहां 6 MLA हैं, शानदार कैंपन किया है’. मैं समझता हूं कि पायलट साहब उस सीट की जिम्मदारी तो लें. जोधपुर में पार्टी की हार का पूरा पोस्टमॉर्टम होना चाहिए कि क्यों हम वो सीट नहीं जीत सके."

इसके बाद भी अशोक गहलोत कई मौकों पर पायलट के साथ दिखे. लेकिन उन्होंने पायलट के बयानों का सार्वजनिक रूप से जवाब देना शुरू कर दिया था. जुलाई 2020 में बगावत के बाद तो उन्होंने पायलट को 'निकम्मा' और 'नकारा' तक कह दिया था.

पायलट की नाराजगी खत्म नहीं हुई

2018 में सचिन पायलट राहुल गांधी के साथ मुस्कुराते हुए तस्वीर खिंचवाकर मान तो गए थे, लेकिन नाराजगी बनी रही. सिर्फ डेढ़ साल में ही सबकुछ सामने आ गया. जुलाई 2020 में पायलट कुछ विधायकों को साथ लेकर मानेसर के रिजॉर्ट में चले गए थे. 12 जुलाई को पायलट ने अशोक गहलोत सरकार के अल्पमत में आ जाने का ऐलान कर दिया था. सरकार को गिराने के संकेत देने लगे. 

बगावत की वजह राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप यानी SOG के एक नोटिस को बताया गया था. विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप में ये नोटिस भेजा गया था. गहलोत पर आरोप लगा कि उन्हीं के इशारों पर ये नोटिस भेजा गया. सचिन पायलट ने ये भी आरोप लगाया था कि सरकार में होते हुए भी उनकी बातों को अहमियत नहीं दी जा रही है. अधिकारियों को उनकी बात नहीं मानने को कहा जा रहा है.

इस बगावत के बीच अशोक गहलोत ने गांधी परिवार को भरोसे में लिया था. उन्होंने विधायकों को एकजुट किया. दूसरे दलों और निर्दलीय विधायकों को बुलाकर एकजुटता दिखाई कि सरकार को सबका समर्थन है. गहलोत के राजनीतिक गुणा-भाग से तब सरकार बच गई थी. लेकिन पायलट के ऊपर हमेशा के लिए एक दाग लग गया था.

इसी बगावत के दौरान इंडिया टुडे मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में पायलट ने साफ-साफ कहा था, 

"2018 में कांग्रेस राज्य में जीतकर आई थी, तभी मैंने मुख्यमंत्री बनने का दावा पेश किया था. मेरे पास मौजूं कारण थे. जिस समय राजस्थान में कांग्रेस के महज 21 विधायक थे, उस समय मैंने कांग्रेस का भार संभाला. काडर के साथ मिलकर काम किया. पार्टी को जिंदा किया. उस समय गहलोत जी ने एक शब्द भी नहीं कहा. और चुनाव जीतते ही अपने अनुभव के आधार पर मुख्यमंत्री बनने आ गए. फिर भी उन्हें सीएम बनाने के राहुल गांधी के निर्णय का मैंने स्वीकार किया. उनकी ही जिद पर मैं उपमुख्यमंत्री बनने को तैयार हुआ."

जुलाई 2020 की बगावत के बाद गहलोत ने पायलट को डिप्टी सीएम पद से हटा दिया था. कांग्रेस आलाकमान ने भी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी ले ली थी. तब भी पायलट पर आरोप लगा कि वे बीजेपी से जुड़ने वाले हैं. हालांकि पायलट के पास उतने विधायक भी नहीं थे जिससे बीजेपी के साथ सरकार बनाई जा सकती थी. इसलिए बगावती होते हुए भी उन्होंने धैर्य का पालन किया. कहते हैं कि बाद में कांग्रेस नेतृत्व ने पायलट को भरोसे में लिया और उन्हें मनाने में कामयाब रहा.

पिछले साल सितंबर में सचिन पायलट के लिए एक और आस जगी थी. अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़ने वाले थे. लगा कि अब राजस्थान में सचिन पायलट को जिम्मा सौंपा जा सकता है. लेकिन गहलोत  अध्यक्ष पद के साथ-साथ सीएम पद भी संभालने के मूड में थे. उन्होंने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया. फिर पायलट की ये उम्मीद भी उड़ान नहीं भर पाई.

हालांकि इन सालों में सचिन पायलट लगातार अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ बोलते रहे. लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस नेतृत्व की प्रतिक्रिया आनी बंद हो गई. वहीं, अब अनशन की बात पर कांग्रेस नेताओं के बयानों से साफ है कि सचिन पायलट को कांग्रेस नेतृत्व तवज्जो नहीं दे रहा है. उसे अब भी अशोक गहलोत पर भरोसा है. ऐसे में अनशन कर रहे सचिन पायल क्या सोच रहे होंगे… 'करो थारो काईं मैं कसूर!'

वीडियो: अशोक गहलोत को अडानी से प्यार या राहुल गांधी से',राजस्थान विधानसभा में उठ गया सवाल.

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