20 अगस्त 2016 (Updated: 20 अगस्त 2016, 10:27 AM IST) कॉमेंट्स
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पीवी सिंधू किस जाति की हैं?आप भले ये सवाल सुनकर खिसियाहट से भरकर चौंक जाएं, लेकिन कुछ लोगों के लिए यक्ष प्रश्न है. जब से उनका नाम सुनाई पड़ने लगा, खासतौर पर जब से उनने सेमीफाइनल जीता. लोगों की रूचि उनके खेल से ज्यादा उनकी जाति में बढ़ गई. गूगल के ट्रेंड्स भी यही दिखाते हैं. आंकड़े देख लीजिए. मशीनी आंकड़ें हैं. मशीनों की जाति नहीं होती, वो सच कहेगी.
19 अगस्त को रात साढ़े आठ बजे लोग ये जानने को कितने आतुर थे.
ये इकलौती चीज नहीं थी, उनके कोच की जाति भी तलाशी जा रही थी. अगर आपको लगता है, सिर्फ जाति ही वो फैक्टर या कीवर्ड है, जिसके तलाशे जाने पर आपको सिर जमीन पर दे मारना चाहिए तो रुकिए. एक और झगड़ा इस बात पर था कि वो किस क्षेत्र से आती हैं, ये भी तलाशा जा रहा था. अब सिर मार ही दीजिए.
आंध्रप्रदेश और तेलंगाना इसी बहस पर खर्च हो रहा था. कुछ ने कहा कि वो हैदराबाद में पली-बढीं. वहीं कुछ का कहना था वो विजयवाड़ा की हैं. जवाब उनकी मां ने दिया. उनने कहा सबसे पहले मेरी बेटी एक इंडियन है.
फिर एक तस्वीर पर बात चली. हैदराबाद में बोनालू त्योहार मनाने अपने सर पर पके हुए चावल ले जातीं पीवी सिंधू की एक तस्वीर के साथ ये कहा गया कि उन्हें तेलंगाना का ब्रांड एम्बेसडर बनाना चाहिए. सानिया मिर्ज़ा को नहीं.
क्षेत्र की लड़ाई से कहीं आगे जाकर लोगों ने उन्हें मूलनिवासी घोषित कर दिया था, मानो उनकी पहचान यही हो. इनके लिए एक खिलाड़ी की जीत से कहीं ज्यादा महत्व इस बात का था कि उसे अपने ओर की बता. उसकी जीत को अपनी जाति के गौरव से जोड़ सकें. *स्लो क्लैप्स*
वो सिल्वर लेकर आईं, लेकिन लोग यहीं नहीं रुके, बधाइयां भी ऐसे दी गईं. और अब तक उन्हें जाट घोषित कर दिया गया था.
कुछ कमी रह गई हो तो इनने पूरी कर दी. इनकी जाति आज भी ताकतवर है क्योंकि एक खिलाड़ी ओलंपिक में रजत जीत आई. इनसे पूछना चाहिए, जाति थोड़ा और ताकतवर क्यों नहीं हुई? तब शायद सोना जीत जातीं.
ये हाल है, खिलाड़ी खेलते हैं. इस सबके बाद भी खेलते हैं. आपने या आपकी जाति ने उनकी ट्रेनिंग या उनके प्रोत्साहन के लिए क्या ही कर दिया है. आप जानें लेकिन जब वो नाम कमाते हैं तो उनकी जीत में अपनी जाति घुसाने लगते हैं. वो रह गया तो क्षेत्र घुसाना जरुरी होता है. कोई हरियाणे या हैदराबाद की बेटी भी क्यों कहलाए? जब खिलाड़ियों के लिए चार साल कुछ नहीं करते तो उनको जीतने पर भी बेटा-बेटी, जाति-जगह छोड़ कर खिलाड़ी ही क्यों नहीं रहने देते?