'2012 में दुनिया खत्म' वाले दावे में वैज्ञानिक पीटर हिग्स नाम कैसे आया था?
पीटर हिग्स (Peter Higgs) ने 1964 'हिग्स फील्ड' के बारे बताया था. उन्हें 2013 में फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार भी मिला. क्वांटम फिजिक्स की दुनिया को एक बड़ा झटका हाल ही में लगा जब मंगलवार, 9 अप्रैल को खबर आई कि 94 साल के पीटर हिग्स नहीं रहे.
27 किलोमीटर लंबी ट्यूब. दशकों की रिसर्च. अरबों डॉलर का खर्च. विज्ञान का सबसे प्रतिष्ठित माना जाने वाला नोबेल पुरस्कार. और एक मिथक, जो बच्चे-बच्चे की जुबान तक जा पहुंचा, कि 2012 में दुनिया खत्म हो जाएगी. इसी नाम से एक हॉलीवुड फिल्म तक बन गई. 2009 में आई इस फिल्म में दिखाया गया कि 2012 में दुनिया में तबाही आई. लेकिन जब असल में साल 2012 आया तो दुनिया को कुछ नहीं हुआ. पर खबरों में एक नया नाम आने लगा, ‘गॉड पार्टिकल (God Particle)’. इसके नाम पर कई फिजिसिस्ट (Peter Higgs) खफा भी हुए.
खैर इसको वैज्ञानिकों ने नाम दिया था, हिग्स-बोसॉन पार्टिकल (Higgs boson particle). जिसकी नींव कभी पीटर हिग्स ने 1964 में हिग्स फील्ड के बारे में बता कर रखी थी. उन्हें 2013 में फिजिक्स में नोबेल पुरस्कार भी मिला था. क्वांटम फिजिक्स (Quantum Physics) की दुनिया को एक बड़ा झटका हाल ही में लगा जब मंगलवार, 9 अप्रैल को खबर आई कि 94 साल के पीटर हिग्स नहीं रहे. जिस ‘गॉड पार्टिकल’ से उनका नाम जोड़ा जाता है वो इस नाम को खास पसंद भी नहीं करते थे.
उनका मानना था कि ये धर्मशास्त्र के साथ सैद्धांतिक भौतिकी का दुर्भाग्यपूर्ण मिश्रण है. एक सवाल ये कि इसका ये नाम क्यों दिया गया और क्या ये अपने नाम के मुताबिक ही काम भी करता है? समझते हैं कि हिग्स बोसॉन को हम कितना जान पा रहे हैं.
हिग्स बोसॉन बताने के लिए शैंपेन की बोतल का इनाम रखा गया1960 का दशक था. क्वांटम फिजिक्स में एक चर्चा शुरू हुई कि चीजों में मास (mass) या द्रव्यमान आता कहां से है. पीटर हिग्स ने थ्योरी दी थी कि एक फील्ड की वजह से फंडामेंटल सब एटॉमिक पार्टिकल्स (fundamental subatomic particles) में मास आता है. जिसे ‘हिग्स फील्ड’ (Higgs field) नाम दिया गया. जितना जटिल ये हमें लग रहा है. उतना ही जटिल उस वक्त भी ये लोगों को लगा.
यहां तक इसे समझाने के लिए साल 1993 ब्रिटिश साइंस मिनिस्टर ने फिजिक्स के वैज्ञानिकों के सामने एक चैलेंज रखा. कहा कि हिग्स फील्ड के जटिल मामले को समझाने वाले को बढ़िया शैंपेन की बोतल दी जाएगी. जीतने वाली कहानी में इसे पार्टी के उदाहरण से समझाया गया, जिसे हम अपने उदाहरण से समझते हैं.
कल्पना कीजिए कि एक बॉलीवुड फिल्म की भयंकर मुनाफा कमाने पर पार्टी चल रही है. कमरा एकदम भरा हुआ है. तभी वहां एक एक्टर आता है, जिसकी पिछली पांच फिल्में फ्लॉप थीं. अगर उसको दरवाजे से होकर ‘बार’ (Bar) तक जाना है, तो क्या होगा? उसे कोई रोकेगा नहीं, न ही बात करने के लिए लोग आगे आएंगे. वो चुपचाप ‘बार’ तक पहुंच जाएगा.
वहीं अब जिस हिट फिल्म की पार्टी चल रही है. उसका हीरो कमरे में आता है. लोग उसे घेर लेते हैं. बातें करने लगते हैं. उसे बार तक जाने में दिक्कत होती है. वो थोड़ा धीरे आगे बढ़ता है.
अब इसका हिग्स फील्ड और हिग्स बोसॉन पार्टिकल से क्या लेना-देना? तो मामला ये है कि जैसे हिट और फ्लॉप फिल्म के हीरो के चलने में ऐसा कोई खास अंतर नहीं था. लेकिन उनको बार तक पहुंचने में अलग-अलग समय लगा. ये इस वजह से हुआ कि वो भीड़ के साथ कैसे इंटरैक्ट किए? भीड़ उनसे कैसे मिली-जुली.
अब इसको फिजिक्स की भाषा में समझें तो किसी सब एटॉमिट फंडामेंटल पार्टिकल, मतलब किसी एटम से भी छोटे पार्टिकल में मास एक फील्ड की वजह से हो सकता है. जैसे पार्टी में लोग वो फील्ड थे. ऐसे ही हिग्स फील्ड से गुजरने पर भी कुछ पार्टिकल्स में मास होता है. ये है मोटा-मोटी हिग्स की थ्योरी.
2012 वाले प्रयोग में क्या था?2012 में जो प्रयोग हुआ, उसे लेकर लोगों ने ‘दुनिया के अंत’ की खबरों को भी जोड़ा. इस प्रयोग में एक ‘लार्ज हैड्रान कोलाइडर’ में कणों को बेहद तेज रफ्तार में दौड़ाया गया. जिसमें साइंटिस्ट्स ने एक पार्टिकल खोजने की बात कही. बता दें लार्ज हैड्रान कोलाइडर एक तरह की मशीन है, जिसमें कणों को बेहद शक्तिशाली चुंबकों वगैरह की मदद से तेज रफ्तार दी जाती है. और उन्हें समझने की कोशिश की जाती है.
खैर, जो पार्टिकल मिला उसे मीडिया ने नाम दिया, ‘गॉड पार्टिकल.’ इस नामकरण के पीछे एक दूसरे वैज्ञानिक का हाथ था, जो थे लियो लेडरमैन. इस पार्टिकल को खोजने में आने वाली तमाम दिक्कतों को देखते हुए, उन्होंने इसे ‘गॉडडैम पार्टिकल’ (Goddamn Particle) कहा. जो बाद में ‘गॉड पार्टिकल’ बन गया.
लेकिन वैज्ञानिकों ने इसे नाम दिया हिग्स बोसॉन पार्टिकल (Higgs boson particle). अनुमान लगाया गया कि खोजा गया पार्टिकल हिग्स के थ्योरी में बताए पार्टिकल जैसा ही है.
दरअसल यूनिवर्स के बनने को लेकर साइंटिस्ट्स के बीच एक सवाल काफी समय से है. जब ये दुनिया बनी तब मास आया कहां से? कैसे एक बिंदु से पूरा संसार बना? जब कुछ नहीं था, तब इतना सब कुछ बना कैसे? ये प्रयोग और हिग्स बोसॉन पार्टिकल की खोज इन सवालों के जवाबों की तरफ एक छोटा सा कदम था.
बताया गया कि हिग्स फील्ड से फंडामेंटल सब एटामिक पार्टिकल्स ‘क्वार्क्स’ और ‘लेप्टन’ को मास मिलता है. लेकिन ये सब एटामिक पार्टिकल्स की बात है. माने अणु से भी छोटे कण. हालांकि दुनिया में मास कैसे और कब बना होगा ये सवाल आज भी है. कई जवाब दिए गए लेकिन सभी सिर्फ अनुमान और थ्योरी हैं.
जैसे हिग्स फील्ड की थ्योरी को टेस्ट करने के लिए 2012 में 27 किलोमीटर लंबे लार्ज हैड्रान कोलाइडर की मदद लेनी पड़ी. वैसे ही दुनिया के कई सवाल खोजने के लिए कागजों से निकालकर, उन पर प्रयोग करना आज भी जारी है. इसमें एक बड़ा कदम 2012 में लिया गया था. जिसमें अपना अहम योगदान देने वाले पीटर हिग्स अब हमारे बीच नहीं रहे.