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लकवाग्रस्त लोग चलने लगेंगे, ये नई डिवाइस कहां खोजी गई जो चमत्कार से कम नहीं?

ये रीसर्च कामयाब हुई तो मेडिकल दुनिया में क्रांति हो जाएगी...
paralysed man walks again using electronic brain implant Gert Jan Oskam netherlands
दिमाग में सोचा और चलने लगा लकवाग्रस्त शख्स (फोटो- EPFL)
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पैरेलिसिस जिसे हिंदी में कहते हैं- लकवा मार जाना. इस स्थिति में जिस अंग पर इसका असर होता है, वो चलना बंद हो जाता है. माने दिमाग से निर्देश लेना बंद कर देता है. पर अब एक ऐसी डिवाइस खोज लेने का दावा किया जा रहा है जिससे दिमाग और रीढ़ की हड्डी के बीच टूटे कनेक्शन को जोड़ा जा सकता है. डिवाइस का नाम है ‘वायरलेस डिजिटल ब्रिज’. इसे स्विट्जरलैंड की पब्लिक रीसर्च यूनिवर्सिटी EPFL ने तैयार किया है. डिजिटल ब्रिज एक ब्रेन-स्पाइन इंटरफेस होता है जो दिमाग और रीढ़ की हड्डी के बीच खोए हुए कनेक्शन को रीस्टोर करने का काम करता है. ये पीड़ित शख्स (Paralysed) को लकवाग्रस्त अंग के मूवमेंट को कंट्रोल करने में मदद करता है. इसी की मदद से 40 साल के गर्ट-जान ओस्कम अपने पैरों पर खड़े हो सके, चल पाए और यहां तक कि सीढ़ियां भी चढ़ने लगे.

12 साल पहले एक एक्सीडेंट में नीदरलैंड के गर्ट-जान ओस्कम पैरेलाइज हो गए थे. वो चल नहीं सकते थे. ना ही खड़े हो सकते थे. डिजिटल इम्प्लांट के जरिए वो अपने दिमाग से ही पैरों को शिफ्ट करने का काम कर सकते हैं. ओस्कम ने बीबीसी को बताया कि वो एक बच्चे की तरह महसूस कर रहे हैं जो फिर से चलना सीख रहा है.

विचार को एक्शन में बदलते हैं

ESPL ने अपनी वेबसाइट पर इस इंप्लांट से जुड़ी एक डीटेल्ड रिपोर्ट छापी है. वहां के न्यूरोसाइंस के प्रोफेसर ग्रेगोइरे कोर्टाइन ने बताया कि उन्होंने ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफ़ेस (BCI) तकनीक का इस्तेमाल कर दिमाग और रीढ़ की हड्डी के बीच एक वायरलेस इंटरफेस बनाया है जो किसी दिमाग के थॉट को एक्शन में बदल देता है. उन्होंने बताया कि चलने के लिए दिमाग, रीढ़ की हड्डी को कमांड भेजता है लेकिन रीढ़ की हड्डी में चोट लग जाए तो ये कनेक्शन टूट जाता है. इसी कनेक्शन को वापस जोड़ने का काम करता है डिजिटल ब्रिज.

शोधकर्ताओं का दावा है कि रीढ़ की हड्डी की डिजिटल मरम्मत से नए नर्व कनेक्शन विकसित हुए हैं. 

फिलहाल रीसर्च स्टेज में है 

ओस्कम की इंप्लांट सर्जरी करने वाली न्यूरोसर्जन और प्रोफेसर जॉक्लीने बलोच ने बताया कि ये सिस्टम अभी रीसर्च स्टेज में है और लकवाग्रस्त रोगियों के लिए उपलब्ध होने में इसे कुछ साल लग सकते हैं. वो कहती हैं कि उनका मकसद सिर्फ टेस्टिंग करना नहीं बल्कि लकवाग्रस्त लोगों की मदद करना है. शोधकर्ता बताते हैं कि भविष्य में पैरों के अलावा हाथ के काम के लिए भी इस स्ट्रेटजी का इस्तेमाल किया जा सकता है. उम्मीद है कि जल्द ही ये एक्सपेरिमेंट सफल होगा और लोगों का जीवन बदलेगा. 

बता दें, शरीर पैरेलाइज होने की अलग-अलग वजहें हो सकती हैं. ये तकनीक फिलहाल सिर्फ उन लोगों पर काम कर सकती हैं जो रीढ़ की हड्डी में चोट लगने की वजह से पैरेलाइज हुए हों. भविष्य में इसे स्ट्रोक से हुए पैरेलेसिस के लिए विकसित किए जाने के प्लान है. 


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