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'धर्म संसद' में नरसंहार की बात, पूर्व सेना प्रमुखों सहित 100 से ज्यादा हस्तियों ने कार्रवाई की मांग की

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिख भड़काऊ बयानबाजी को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया.

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नई दिल्ली स्थित उत्तराखंड भवन के बाहर हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद में दिए गए भड़काऊ भाषण के खिलाफ प्रदर्शन करते छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता (साभार: पीटीआई )
1 जनवरी 2022 (Updated: 1 जनवरी 2022, 11:24 IST)
Updated: 1 जनवरी 2022 11:24 IST
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देश के अलग-अलग हिस्सों में धर्म के नाम पर आयोजित किए गए कार्यक्रमों में एक समुदाय विशेष के खिलाफ की गई भड़काऊ बयानबाजी पर सैन्य बलों के रिटायर्ड प्रमुखों सहित नौकरशाहों और नामचीन हस्तियों ने चिंता जताई है. इस संबध में इन लोगों ने देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक संयुक्त पत्र लिखा है. इस पत्र में कहा गया है कि धर्म के नाम पर आयोजित किए गए इन कार्यक्रमों में जिस तरह से मुस्लिम समुदाय के नरसंहार की बात की गई, उससे देश की बाहरी और भीतरी सुरक्षा खतरे में है. इस आधार पर पत्र में नरसंहार की बात करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की गई है. सांप्रदायिक सौहार्द को खतरा इस पत्र पर सशस्त्र बलों के पांच पूर्व प्रमुखों के हस्ताक्षर हैं. रिटायर्ड एडमिरल लक्ष्मीनारायण दास, रिटायर्ड एडमिरल आरके धवन, रिटायर्ड एडमिरल विष्णु भागवत, रिटायर्ड एडमिरल अरुण प्रकाश और रिटायर्ड एयर चीफ मार्शल एसपी त्यागी की तरफ से साइन किए गए इस पत्र में हरिद्वार में आयोजित किए गए धर्म संसद के नाम पर खासी चिंता जताई गई है. पत्र में कहा गया कि इस कार्यक्रम में जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया गया, वो हिंसा उकसाने वाली है. पत्र में आगे लिखा गया,
"हम सब हरिद्वार में हिंदू साधुओं और अन्य नेताओं द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषणों (Hate Speech) से आहत हैं. 17 से 19 दिसंबर के बीच हरिद्वार में आयोजित धार्मिक सम्मेलन में साधुओं और अन्य नेताओं ने भारतीय मुसलमानों का नरसंहार करने को कहा, इसके साथ ही ईसाइयों और सिखों जैसे अन्य अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया. भारत के सभी सैन्य बल, थल सेना, वायु सेना, नौसेना अर्धसैनिक बल और पुलिस देश की बाहरी और आंतरिक सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं. हमने भारत के संविधान की शपथ ली है कि देश के धर्म निरपेक्ष माहौल को कभी खराब नहीं होने देंगे. हरिद्वार में हुए इस तीन दिवसीय धार्मिक आयोजन में बार-बार देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का आह्वान किया गया. इसके साथ ही जरूरत पड़ने पर हिंदू धर्म की रक्षा के नाम पर हथियार उठाने और विशेष समुदाय के नरसंहार की बात कही गई."
इस पत्र में आगे लिखा गया,
"हमारे देश की सीमाओं पर वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए, अगर कोई देश के भीतर शांति और सद्भाव को भंग करने की कोशिश करेगा, तो इससे हमारे दुश्मनों को बढ़ावा मिलेगा. यही नहीं, इस तरह की भड़काऊ बयानबाजी से ना केवल देश के नागरिकों के बीच का भाईचारा बिगड़ेगा बल्कि सैन्य बलों में कार्यरत हमारे वर्दीधारी भाई-बहनों में भी फूट पड़ सकती है. हम किसी को भी इस तरह से सार्वजनिक मंच से खुले तौर पर हिंसा करने के लिए इजाजत नहीं दे सकते, ये देश की आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द के लिए खतरनाक है." 
हरिद्वार धर्म संसद में दिए गए भड़काऊ भाषण के खिलाफ राष्ट्रपति और परधानमंत्री को लिखा गया पत्र
पत्र में आगे यह भी कहा गया कि हरिद्वार धर्म संसद में शामिल लोगों ने एक समुदाय विशेष के नरसंहार के लिए आर्मी के लोगों से भी हथियार उठाने को कहा है. पत्र में कहा गया देश की सेना से देश के ही लोगों के नरसंहार की बातें कहना ना केवल निंदनीय है बल्कि अस्वीकार्य भी. पत्र में अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों से अपील की गई कि वो अपने कार्यकर्ताओं पर लगाम लगाएं और इस तरह की भड़काऊ बयानबाजी की एक सुर में निंदा करें. राजनीतिक पार्टियों के अध्यक्षों से यह भी कहा गया कि वो राजनीति करने के लिए धर्म का प्रयोग ना करें.
हरिद्वार धर्म संसद कार्यक्रम की एक तस्वीर.
हरिद्वार धर्म संसद कार्यक्रम की एक तस्वीर.

इस पत्र में आखिर में देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के साथ देश की संसद और सुप्रीम कोर्ट से भी अपील की गई कि इस तरह के हिंसक और भड़काऊ बयानबाजी पर कड़ी कार्रवाई की जाए. पत्र में कहा गया कि देश का संविधान सभी को नागरिकों को अपने मन का धर्म अपनाने का अधिकार देता है. ऐसे में संविधान की रक्षा की जानी चाहिए. पत्र में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से अपील की गई कि वो इस तरह की बयानबाजी की निंदा करें. मामला क्या है? इस पत्र में तो वैसे भड़काऊ बयानबाजी के कई भाषणों का जिक्र है, लेकिन मुख्य तौर पर जिक्र हरिद्वार में आयोजित किए गए कार्यक्रम का है. दरअसल, उत्तराखंड के हरिद्वार (Haridwar) के भूपतवाला स्थित वेद निकेतन धाम में 17 से 19 दिसंबर के बीच धर्म संसद के नाम से एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. 'इस्लामिक भारत में सनातन का भविष्य' नाम से चले इस कार्यक्रम में स्वामी अमृतानंद, स्वामी सत्यव्रतानंद सरस्वती, महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरि, स्वामी वेदांत प्रकाश सरस्वती, स्वामी परमानंद, स्वामी ललितानंद महाराज, पंडित अधीर कौशिक जैसे करीब 500 लोग शामिल हुए थे. यति नरिसिंहानंद का नाम तो राजनीति में शामिल महिलाओं के खिलाफ घटिया टिप्पणी और भड़काऊ सांप्रदायिक बयानबाजी में पहले भी आ चुका है.
यति नरसिंहानंद राजनीति में मौजूद महिलाओं के खिलाफ अश्लील टिप्पणियां कर चुके हैं.
यति नरसिंहानंद राजनीति में मौजूद महिलाओं के खिलाफ अश्लील टिप्पणियां कर चुके हैं.

इस कार्यक्रम में मंडलेश्वर धर्मदास और महामंडलेश्वर अन्नपूर्णा भारती समेत कई लोगों ने अल्पसंख्यकों पर आपत्तिजनक भाषण दिए. नरसंहार के नारे लगाए. इन विवादित भाषणों के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए. इनमें धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने, एक विशेष समुदाय के व्यक्ति को प्रधानमंत्री ना बनने देने और एक विशेष समुदाय की आबादी न बढ़ने देने का जिक्र है. इस पूरे मामले के सामने आने के बाद हरिद्वार पुलिस ने IPC की धारा 153 A (धर्म, भाषा, नस्ल आदि के आधार पर लोगों में नफरत फैलाने की कोशिश) के तहत वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण त्यागी, महामंडलेश्वर धर्मदास और महामंडलेश्वर अन्नपूर्णा भारती के खिलाफ केस दर्ज किया.
इस मामले की FIR में कुछ और नाम जोड़े गए हैं. न्यूज एजेंसी ANI की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार ने बताया कि वायरल वीडियो क्लिप के आधार पर FIR में दो और लोगों के नाम जोड़े गए हैं. ये नाम सागर सिंधु महाराज और यति नरसिंहानंद गिरी के. उन्होंने ये भी बताया कि FIR में धारा 295A (किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किया गया काम ) जोड़ी गई है.

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