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पंजाब में तो परांठों में भी नशा मिलाया जाने लगा है

सालाना 7,500 करोड़ रुपए का नशा इस राज्य में बंटता है. जानें ड्रग्स के असल रूट और पंजाब में इसके डीएनए को.

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रजत सैन
14 जून 2016 (Updated: 14 जून 2016, 02:04 PM IST) कॉमेंट्स
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एह धरती देस पंजाब दी

जिथे वगदे पंज दरिया

एथे रहमत सच्चे रब दी

घर गुरूआं, पीरां दा

जिथे हुंदी अरदास वी

भला मंग के दुनिया दा

ये लब मेरे फेवरेट पंजाबी गाने के हैं. 2011 में आई सफल पंजाबी फिल्मधरती’ के गाने से. सुनता हूं तो नाज़ होता है अपने पंजाब पर. बार-बार. क्योंकि इसमें भगत सिंह, उधम सिंह, करतार सिंह सराबा जैसे सूरमाओं की शहादत का ज़िक्र है. और ज़िक्र है उस धरती का जिसने पूरे देश को अन्न दिया. लेकिन कुछ ही देर में सब एक सपने जैसा लगने लगता है. क्योंकि जिस दौर का गुणगान गाने में हो रहा है वो बीत चुका है. जो अब है वो डराता है. आज ये धरती अंधेरे में है. और ये अंधेरा फैलाया चिट्टे ने. चिट्टा यानी हेरोइन.

मेरे पंजाब में हर साल करीब 7,500 करोड़ का नशा सप्लाई हो रहा है. मतलब राज्य के एक साल के बजट के दसवें हिस्से जितना. रोज़ करीब 2.5 करोड़ के नशे की खेप यहां बनी हुई है. औसतन 1400 रुपए हर आदमी इस चिट्टे पर फूंक रहा है. चाहे अमीर हो या गरीब. करोड़ों रुपए की इस खपत के समानांतर पंजाब की सरकार है जो वित्तीय मदद के लिए केंद्र सरकार की तरफ देखती रहती है. कहती है पूरा सूबा कर्ज़े में डूबा है. करीब 1.25 लाख करोड़ का कर्ज़ा. आंकड़े और भी परेशान तब करते हैं जब इसी राज्य का किसान पैसे होने के कारण खुद को मार लेना बेहतर समझता है.


मिराज होता है ? मृगतृष्णा, मृगमरीचिका. झुलसते रास्ते पर दूर-दूर जहां पानी नहीं, वहां ये भ्रम होता है कि सामने मीठे पानी की झील है. देस पंजाब की इस धरती के साथ भी ऐसा ही है. हिंदी और पंजाबी फिल्मों, पॉप कल्चर में इसे हंसता-खेलता, हरा-भरा दिखाया जाता है. बाहर वाले सोचते हैं यहां सब ऑडी-शॉडी में घूमते हैं, ऐश करते हैं. लेकिन पहले यहां आकर तो देखो! अंदर से सब बंजर, खोखला, सूखा सा है. शरीर से आत्मा निकल चुकी है. ऑडी में घूमते लड़के हों या यूपी बिहार से आए मजदूर, सब नशे के फेर में फंसे हैं. सब से मेरा मतलब हैं पंजाब के अधिकतर नौजवान

आप पंजाब में फैल रहे नशे की गंभीरता को इसी से समझ लें कि अब यहां परांठों में भी गांजा की मिलावट
होने लगी है. ये परांठे वाले स्कूल के आस-पास खड़े होते हैं. मकसद एक ही है. किसी तरह बच्चों को एक बार लत लग जाए, फिर वे खुद--खुद आंएगे. और इस नशे की चपेट में केवल लड़के ही हैं ऐसा सोचना गलत होगा. अमृतसर में तो एक नशा पुनर्वास केंद्र है जो सिर्फ लड़कियों के लिए चलाया जाता है. कुछ टाइम पहले ही एक वीडियो भी वायरल हुआ
. आप भी देख लो, ये हमारे पंजाब की ही एक बुरी तस्वीर है:-

https://www.youtube.com/watch?v=wR-CMDF70H4

कहां से आता है ये नशा?

अफगानिस्तान और ईरान से. थोड़ा पाकिस्तान से भी. अफगानिस्तान को ओपियम यानि अफीम का गढ़ माना जाता है. पूरे विश्व की 90% अफीम यहीं उगाई जाती है. पाकिस्तान से होते हुए इसे पंजाब (भारत) में दाखिल किया जाता है. पंजाब से पाकिस्तान को लगता बॉर्डर करीब 550 किलोमीटर लंबा है. बीएसएफ यानी सीमा सुरक्षा बल दिन-रात पेट्रोलिंग करते हैं लेकिन तस्करों की ट्रेनिंग शायद ज़्यादा कड़ी और एडवांस्ड है कि नशा आना बंद नहीं हो रहा.   


पंजाब सरकार क्या कर रही है?

बयानबाज़ी और राजनीति. इससे ज़्यादा कुछ भी नहीं. इतने दावे के साथ कहने की कई वजहें हैं।

पहली वजह: 2014 ये पहले जब भी सीएम बादल साहब से जवाब मांगा जाता तो वो यूपीए सरकार को कटघरे में खड़ा कर देते. और कहते कि केंद्र सरकार (मनमोहन सिंह-यूपीए) का बीएसएफ पर कंट्रोल है और उन्हीं की ढील की वजह से पंजाब का ये हाल हुआ है. चलो 7 साल तो आपका ये कह-कह कर गुज़ारा हो गया. लेकिन 2014 के बाद से क्या? मोदी सरकार आई. एनडीए का हिस्सा भी हैं आप. अब क्या जवाब है आपके पास? तस्करी जैसी होती रही थी, वैसी ही होती रही है. बस अपने आंकड़े बेहतर दिखाने के लिए एफआईआर पर एफआईआर ठोकने लगे. और यहां तक कि एफआईआर करवाते समय आपके मुलाज़िम इतनी भी मेहनत नहीं करते कि गिरफ्तारियों की वजहें अलग-अलग बता सकें. आपका ध्यान आंकड़ो की तरफ है और यहां एक कौम नशे में खत्म हो रही है.

दूसरी वजह: किसी ने डिप्टी सीएम सुखबीर बादल से कहा कि पंजाब में नशा तस्करी इतनी फैल गई है कि इस पर फिल्में बनने लगी है. तो इस पर छोटे बादल बोलते हैं कि ये सब पंजाब को बदनाम करने के तरीके हैं. पंजाब से ज़्यादा नशा तो गोवा में है. सुखबीर जी आपको गोवा की इतनी ही चिंता होती है तो पंजाब के लोगों से वोट मांगने भी मत जाया करो.

तीसरी वजह: आप एक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहते हैं कि ड्रग्स को लेकर आपकी ज़ीरो टॉलरेंस पॉलिसी है. उसके कुछ ही दिन बाद जगदीश भोला (नामी तस्कर) को आपकी पुलिस गिरफ्तार कर लेती है. पूछताछ में भोला बार-बार आपके साले बिक्रम सिंह मजीठिया और सीनियर अफसरों के नाम लेता है. लेकिन आप उसकी बात मान नहीं रहे. वो मीडिया के आगे भी जांच की मांग करता है तो आप कहते हैं वो कुछ भी बोलेगा तो हम मान लेंगे क्या? मत मानिए. लेकिन आपसे जांच की उम्मीद तो रखते हैं हम.

चोथी वजह: आप खुद मानते हैं कि पंजाब में नशा तस्करी एक बड़ी दिक्कत है. इसलिए सालाना बजट का कुछ हिस्सा इसके नाम भी रखते हैं. लेकिन उस हिस्से से करते क्या हैं? पंजाब के 22 जिलों में कुल 31 नशा पुनर्वास केंद्र हैं. पर देखिए हर जिले में सिर्फ एक ही केंद्र ऐसा है जहां बिस्तर 10 से ज्यादा हैं. और पंजाब में नशा करने वालों की गिनती करीब 2.5 लाख है.

पांचवीं वजह: आपने नशे पर नकेल कसने के लिए एंटी नार्कोटिक्स ऑफिसर रखे. लेकिन कितने? सिर्फ 12!!! और 2 एंटी नार्कोटिक सेल! ऑफिसरों की नियुक्ति में ये कंजूसी समझ से बाहर है

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कितने में बिकती हैं ये ड्रग्स?

अफगानिस्तान से 1 लाख रुपए में 1 किली हेरोइन खरीदी जाती है. पंजाब पहुंचते-पहुंचते इसकी कीमत 30 गुना बढकर 30 लाख रुपए हो जाती है. जब यही हेरोइन पंजाब से बाकी भारतीय राज्यों में जाती है तो वो हो जाती है 1 करोड़ की. और ये प्राइस ग्राफ यहीं नहीं रुकता. जब भारत से विदेश में सप्लाई की जाती है तो 1 लाख वाली हेरोइन 5 करोड़ में बिकती है.


समाधान ये है:

आगे बढ़ना पड़ेगा. खुल कर बोलना पड़ेगा. वैसा ही जैसे तरन तारन में एक बाप ने अपने बेटे की मौत पर किया. बेटा ड्रग्स ओवरडोज़ से मर गया. लाश पर जो कफन ओढ़ाया उस पर प्रधानमंत्री मोदी के नाम संदेश था. लिखा था, “इससे पहले भी कई घरों के चिराग नशों की वजह से बुझ गए. और आज मेरा बेटा मर गया. लेकिन मैं इसे छुपाऊंगा नहीं. ये नहीं कहूंगा कि मेरे बेटे की हार्ट अटैक से मौत हुई. क्योंकि मैं सबको बताना चाहता हूं नशा करने से ज़िंदगी का अंत होता है.” तो इससे मुक्ति का एक ही तरीका है. चेतना. अवेयरनेस. यूथ अवेयर होगा तो शायद नशों की तरफ जाते उसके कदम रुक जाएं. और मैं फिर से सिर उठाकर अपने पंजाब पर गर्व कर सकूंगा.


kafan
कफन पर लिखा PM के नाम संदेश.




 
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