बालासोर ट्रेन हादसा: जांच करने वालों ने रिपोर्ट में किसे जिम्मेदार बताया है?
सिग्नलिंग सिस्टम की जांच के लिए सेफ्टी प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया. रिपोर्ट में और क्या पता चला?

बालासोर ट्रेन हादसे की जांच रिपोर्ट में दो डिपार्टमेंट के स्टेशन स्टाफ को जिम्मेदार ठहराया गया है. सिग्नलिंग और ऑपरेशन्स (ट्रैफिक) विभाग. इस हादसे की शुरुआती जांच कमिश्नर ऑफ रेलवे सेफ्टी (CRS) को सौंपी गई थी. रिपोर्ट में CRS ने किसी ‘बाहरी हस्तक्षेप’ का जिक्र नहीं किया है. चूंकि इस पहलू की जांच CBI कर रही है. 2 जून को कोरोमंडल एक्सप्रेस बहानगा स्टेशन के पास लूप लाइन में खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई थी. इसके बाद ट्रेन के कई डिब्बे पटरी से उतर गए थे. इसी दौरान दूसरे ट्रैक से गुजर रही यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस कोरोमंडल के उन डिब्बों से टकरा गई. इस हादसे में 292 लोगों की मौत हुई और एक हजार से ज्यादा यात्री घायल हुए.
सेफ्टी प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गयाअंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, रेलवे बोर्ड के सूत्रों ने बताया कि CRS रिपोर्ट 27 जून को सौंपी गई थी. जांच में पाया गया है कि सिग्नलिंग मेंटेनर ने स्टेशन मास्टर को मरम्मत काम के लिए "डिस्कनेक्शन मेमो" जमा किया था. ये प्रक्रिया का हिस्सा है. मरम्मत के बाद एक "रीकनेक्शन मेमो" भी जारी किया गया था. इसका मतलब है कि इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिग्नलिंग सिस्टम सही था. लेकिन ट्रेन पास कराने से पहले सिग्नलिंग सिस्टम की जांच के लिए सेफ्टी प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया कि रिले रूम में जाने के लिए बने प्रोटोकॉल में भी खामिया पाई गई. रिले रूम इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिग्नलिंग सिस्टम का सेंटर होता है, जहां से सबकुछ ऑपरेट होता है. इसकी जवाबदेही सिग्नलिंग स्टाफ और स्टेशन मास्टर दोनों की होती है.
रेलवे बोर्ड के एक सीनियर अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया,
"ऐसा प्रोटोकॉल है कि रेलवे की किसी संपत्ति का जब मेंटनेंस किया जाता है तो ट्रेन की सुरक्षा के लिए इंजीनियरिंग स्टाफ के साथ ऑपरेशन्स स्टाफ भी जिम्मेदार होते हैं. चाहे वो ट्रैक से जुड़ा हो या सिग्नलिंग से जुड़ा मामला हो."
CRS एक सरकारी एजेंसी है. ये देश में रेलवे सेफ्टी अथॉरिटी के तौर पर काम करता है. रेलवे एक्ट 1989 के अनुसार, इसका काम ट्रेन के सफर में सुरक्षा और संचालन को सुनिश्चित करना है. इसके साथ ही ये जांच और परामर्श देने के साथ कानूनी काम भी देखता है. इसका एक अहम काम सीरियस ट्रेन हादसों की जांच-पड़ताल करना भी है. CRS रेल मंत्रालय के नियंत्रण में नहीं है. ये मिनिस्ट्री ऑफ सिविल एविएशन के तहत काम करता है. ऐसा इसलिए ताकि ये रेलवे बोर्ड और विभागों के प्रभाव से दूर रह सके.
29 शवों की पहचान DNA जांच से हुईकेंद्र सरकार के आदेश के बाद 6 जून को CBI ने भी ट्रेन हादसे की जांच शुरू की थी. CBI रेलवे स्टाफ से लगातार पूछताछ कर रही है. रेलवे के सूत्रों ने अखबार को बताया कि जांच एजेंसी ने इससे पहले बहानगा बाजार रेलवे स्टेशन के रिले रूम, पैनल और दूसरे सामानों को सील किया था. बहानगा स्टेशन के स्टाफ सहित कई और रेलवे अधिकारियों से भी पूछताछ हुई थी. उनके मोबाइल फोन जब्त किए गए थे. रिकॉर्ड रूम से हादसे से पहले और बाद के डिजिटल लॉग्स को सीज किया गया था.
ट्रेन हादसे के एक महीने बाद भी कई परिवारों को उनके संबंधियों के शव नहीं मिले हैं या उनकी पहचान नहीं हो पाई है. AIIMS भुवनेश्वर में 81 लोगों की डेड बॉडी रखी हुई थी. अब इनमें से 29 डेड बॉडी की पहचान डीएनए जांच के बाद हुई है. कम से कम 52 शवों की पहचान अब भी होनी बाकी है.
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