ज्योति रेप और मर्डर केस का आरोपी नाबालिग होने की वजह से छूट गया. सुप्रीम कोर्ट ने भी हाथ खड़े कर दिए कि हम कानून से बाहर नहीं जा सकते. उस आरोपी के छूटने के दो दिन बाद मंगलवार को राज्यसभा में जुवेनाइल जस्टिस बिल पास हो गया.
हंगामे की वजह से विंटर सेशन में कोई काम नहीं हो पाया, लेकिन ये इकलौती चीज थी जिस पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों सहमत हुए. लोकसभा में यह बिल मई में ही पास हो गया था. अब सिर्फ राष्ट्रपति की मुहर का इंतजार है.
निर्भया केस का छठा आरोपी सिर्फ तीन साल में इसलिए रिहा हो गया क्योंकि अपराध के वक्त वह नाबालिग था. इससे निर्भया के मां-बाप भी नाराज हैं और कई संगठन भी.
इस बिल के बारे में खास बातें:
1. अब जघन्य अपराधों के केस में नाबालिग पर भी अडल्ट की तरह मुकदमा हो सकेगा.
2. 2014 में ये बिल पेश किया था महिला-बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने. इस साल मई में लोकसभा में पारित हुआ. यह बिल तभी लागू होगा जिस दिन राष्ट्रपति इस पर हस्ताक्षर करेंगे. यानी निर्भया समेत पुराने मामलों पर यह लागू नहीं होगा.
3. बड़े क्राइम जिसमें 7 साल से ऊपर या फांसी की सजा होती है. उसे करने वाला अगर 16 साल के ऊपर है और 18 के अंदर, तो उस पर वयस्क की तरह मुकदमा चलेगा.
4. हर जिले में एक जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड होगा. जिसमें कम से कम एक महिला, एक मजिस्ट्रेट और दो सोशल वर्कर रहेंगे.
5. ये बोर्ड जांच के बाद तय करेगा कि क्रिमिनल 16 साल से ऊपर है या नहीं. फिर उसका अपराध किस तरह का है. उसे नाबालिग अपराधी की तरह सुधार गृह भेजना है या अडल्ट की तरह मुकदमा चलाना है.
6. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 की जगह लेगा ये बिल. जो बनाया गया था किशोर अपराधियों को अदालती कार्यवाही में सहूलियत देने के लिए. उनके अपराधी स्वभाव को बदल कर नॉर्मल लाइफ जीने लायक बनाना इसका मकसद था.
7. इस बिल में बच्चे गोद लेने का भी प्रोसीजर है. कि कौन किस तरीके से बच्चा गोद ले सकता है. इसके अलावा बच्चों को नशे की लत लगाने या उनके खिलाफ क्रुएलटी के केस में सजा और जुर्माने का इंतजाम है.
8. इस बिल के हिसाब से मुजरिम किशोर का फैसला करते वक्त उसकी बाकी जिंदगी और पुनर्वास का खयाल रखा जाएगा.
9. बिल का विरोध करने वालों का कहना है कि इससे आर्टिकल 14 यानी बराबरी का हक मारा जाएगा. आर्टिकल 21 जिसमें सबके लिए सीधे और सही कानून प्रक्रिया की बात है, उस पर भी असर पड़ेगा.
10. एक दलील ये है कि ये कानून संयुक्त राष्ट्र के नियमों के खिलाफ है. United Nations Convention on the Rights of the Child (UNCRC) के हिसाब से जो देश संयुक्त राष्ट्र के नियम मानते हैं उनको 18 साल से कम उम्र के लोगों के लिए एक सा कानून रखना है.