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मॉब लिंचिंग पर राज्यों से जवाब मांगने वालों से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, 'कन्हैयालाल का क्या?'

Mob Lynching के मामलों से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कन्हैयालाल हत्याकांड का जिक्र करते हुए कहा कि इस तरह के मामलों को सेलेक्टिव तरीके से नहीं उठाया जा सकता है.

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mob lynching petition in supreme court mentions kanhaiyalal murder
Supreme Court ने कहा कि Mob Lynching के मामलों में सेलेक्टिव नहीं हुआ जा सकता. (फोटो: सोशल मीडिया)
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16 अप्रैल 2024 (Updated: 17 अप्रैल 2024, 09:22 IST)
Updated: 17 अप्रैल 2024 09:22 IST
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सुप्रीम कोर्ट में 16 अप्रैल को पूरे देश में मॉब लिंचिंग के मामलों को लेकर सुनवाई (Mob Lynching Hearing) हुई. इस दौरान कोर्ट ने कन्हैयालाल हत्याकांड (Kanhaiyalal Murder) का जिक्र किया और कहा कि मॉब लिंचिंग के मामलों को सेलेक्टिव तरीके से नहीं उठाया जा सकता है. इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने राज्यों को 6 और हफ्तों का समय दिया है. उनको मॉब लिंचिंग के मामलों में की गई कार्रवाई के संबंध में कोर्ट को अपने जवाब सौंपने हैं.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन विमन (NFIW) नाम के संगठन ने इस संबंध में एक जनहित याचिका दायर की थी. इस याचिका में पूछा गया था कि अलग-अलग राज्यों ने मॉब लिंचिंग से जुड़े मामलों को लेकर जो कदम उठाए हैं, उनकी जानकारी दी जाए. लेकिन केवल मध्य प्रदेश और हरियाणा की सरकारों ने जवाब दाखिल किए थे. इसके बाद जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा,

"ज्यादातर राज्यों ने अभी तक अपने हलफनामे नहीं दिए हैं. ये अपेक्षित था कि राज्य इस संबंध में जानकारी दें कि उन्होंने अभी तक क्या कदम उठाए हैं. ऐसे में हम उन्हें जवाब दाखिल करने के लिए 6 और हफ्तों का समय देते हैं."

इस मामले में NFIW की तरफ से अधिवक्ता निजाम पाशा पेश हुए थे. उन्होंने दलील दी कि देश में मॉब लिंचिंग के मामले बढ़ रहे हैं और ज्यादातर समय इन मामलों को एक सामान्य हादसा या झड़प बता दिया जाता है. कहा गया कि इस तरह से तहसीन पूनावाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो दिशा-निर्देश दिए थे, उनका उल्लंघन किया जाता है.

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तहसीन पूनावाला मामले में सर्वोच्च अदालत ने मॉब लिंचिंग और सामूहिक हिंसा को रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे. कोर्ट की तरफ से कहा गया था कि इस तरह के मामलों का स्वत: संज्ञान लेना चाहिए.

‘सांप्रदायिक तौर पर पक्षपातपूर्ण’

हालांकि सुनवाई के दौरान जस्टिस अरविंद कुमार ने निजाम पाशा से पूछा कि क्या कन्हैयालाल की हत्या का जिक्र उनकी याचिका में किया गया है. इस पर पाशा ने कहा कि उन्हें इस बारे में निश्चित तौर पर नहीं पता है और अगर कन्हैयालाल हत्याकांड का जिक्र याचिका में नहीं है तो आगे किया जाएगा. इस पर जस्टिस अरविंद कुमार ने कहा,

"आपको याचिका में हर घटना का जिक्र करना होगा. हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आप सेलेक्टिव नहीं हैं."

यह जानने के बाद कि कन्हैयालाल हत्याकांड का जिक्र याचिका में नहीं है, गुजरात सरकार की तरफ से पेश हुईं अधिवक्ता अर्चना पाठक दवे ने आरोप लगाया कि याचिका सांप्रदायिक तौर पर पक्षपातपूर्ण है और सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोगों के बारे में चिंता जता रही है. इसी बीच जस्टिस संदीप मेहता ने उन्हें टोका और कहा कि मामले को धर्म या जाति के चश्मे से नहीं देखना चाहिए. उन्होंने कहा,

"वो घटना (कन्हैयालाल हत्याकांड) मॉब लिंचिंग का मामला नहीं था. मामले को धर्म या जाति के चश्मे से ना देखें. वहां पर सिर्फ मॉब लिचिंग का आरोप था, कार्रवाई हुई थी..."

मामले की अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की गर्मियों की छुट्टियों के बाद होगी.

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