सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक ठहरा दिया; जिन्हें रिजर्वेशन मिल चुका, उनका क्या होगा?
पूर्व देवेंद्र फडणवीस सरकार के मराठा आरक्षण कानून को कोर्ट ने किस आधार पर खारिज किया?
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सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया है. 2018 में देवेंद्र फडणवीस की सरकार यह रिजर्वेशन लेकर आई थी.
(तस्वीर: पीटीआई)
पांच जजों ने माना कि मराठा समुदाय को आरक्षण नहीं दिया जा सकता. ये भी माना कि-
# आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता है. # आरक्षण सिर्फ पिछड़े वर्ग को दिया जा सकता है. मराठा इस कैटेगरी में नही आते हैं. # राज्य सरकार ने इमरजेंसी क्लॉज के तहत आरक्षण दिया था, लेकिन यहां कोई इमरजेंसी नहीं थी.
बता दें कि मराठा आरक्षण का यह मामला बॉम्बे हाई कोर्ट भी पहुंचा था. लेकिन हाई कोर्ट ने मराठा रिजर्वेशन को सही करार दिया था. बॉम्बे हाई कोर्ट का कहना था कि इंदिरा साहनी वाला फैसला राज्य सरकारों के फैसले पर प्रभावी नहीं होता. असाधारण परिस्थितियों में रिजर्वेशन को 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ाया जा सकता है.
इसके बाद जुलाई 2019 में बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की गई. सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र को इस पर नोटिस जारी किया. सितंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया. जिस पर अब फैसला आया है.

बॉम्बे हाई कोर्ट ने मराठा आरक्षण को सही माना था और इसे लागू रखने का फैसला दिया था.
ठाकरे बोले - ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है सुप्रीम कोर्ट के मराठा रिजर्वेशन को समाप्त करने पर महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने भी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा -
जब महाराष्ट्र कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहा है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला किसान और योद्धा समुदाय के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है. महाराष्ट्र ने मराठा जाति का आत्मसम्मान बढ़ाने के लिए रिजर्वेशन देने का फैसला लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को धवस्त कर दिया है, जिसको महाराष्ट्र असेंबली ने सर्वसम्मति से पास किया था. और यह फैसला क्या कहता है? यही कहता है कि हम रिजर्वेशन पर कोई फैसला नहीं ले सकते. उन्होंने उस फैसले को भी गलत ठहराया है, जिसे राज्य सरकार ने गायकवाड़ कमेटी की सिफारिश के आधार पर लिया है. राज्य की असेंबली संप्रभु है औऱ यही जनता की आवाज़ है. मराठा रिजर्वेशन का फैसला इसलिए लिया गया था क्योंकि यह एक बड़े समुदाय के कष्टों से जुड़ा हुआ था. इससे बहुत लोगों की जिंदगी पर असर पड़ता है. यह फैसला छत्रपति शिवाजी महाराज के महाराष्ट्र को एक सलाह है कि राज्य को रिजर्वेशन देने का कोई हक नहीं है. यह हक सिर्फ केंद्र और राष्ट्रपति को है.
ऐसे में अब मैं हाथ जोड़ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति से गुजारिश करूंगा कि वह मराठा रिजर्वेशन पर फौरन फैसला लें. केंद्र ने शाहबानो केस और आर्टिकल 370 को हटाने जैसे बड़े फैसले लिए हैं. अब वह मराठा रिजर्वेशन के मामले में भी तेजी दिखाएं. छत्रपति संभाजी राजे मराठा रिजर्वेशन को लेकर पीएम से एक साल से वक्त मांग रहे हैं, लेकिन उन्हें वक्त क्यों नहीं दिया जा रहा? हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि अब रिजर्वेशन पर फैसला लेने का अधिकार प्रधानमंत्री को ही है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत नहीं किया जा सकता. लेकिन किसी को भी इस मसले पर राज्य का माहौल खराब करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. मराठा रिजर्वेशन को लेकर कानूनी लड़ाई तब तक चलती रहेगी, जब तक कि हम यह लड़ाई जीत नहीं जाते.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पीएम मोदी से अपील की है कि वह मराठा आरक्षण को लेकर फौरन फैसला लें. (फाइल फोटो-PTI)
फिलहाल क्या है महाराष्ट्र में रिजर्वेशन का गणित महाराष्ट्र में इस वक्त विभिन्न समुदायों और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दिए गए रिजर्वेशन को मिला लें तो लगभग 75 फीसदी रिजर्वेशन है. 2001 के राज्य आरक्षण अधिनियम के बाद महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 52% था. इसमें ओबीसी के लिए 19 फीसदी, अनुसूचित जाति के लिए 13 फीसदी, अनुसूचित जनजाति के लिए 7 फीसदी, स्पेशल बैकवर्ड कास्ट के लिए 13 फीसदी रिजर्वेशन शामिल था. 12-13% मराठा कोटा के साथ राज्य में कुल रिजर्वेशन 64-65% हो गया था. केंद्र द्वारा 2019 में घोषित आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% कोटा लागू होने के बाद रिजर्वेशन 75 फीसदी के आसपास पहुंच गया है. पुरानी है मराठा रिजर्वेशन की पॉलिटिक्स बड़े मराठा वोट बैंक के चलते राजनीतिक दल रिजर्वेशन के जरिए मराठा वोटरों को लुभाने की कोशिश करते रहे हैं. इस क्रम में 2018 में महाराष्ट्र की तत्कालीन देवेंद्र फडणवीस सरकार ने मराठाओं के लिए 16 फीसदी तक आरक्षण की घोषणा कर दी थी. इसके लिए फडणवीस ने 29 नवंबर 2018 को पिछड़ा आयोग की सिफारिश पर मराठाओं के लिए आरक्षण का बिल विधानसभा में पेश किया, जो ध्वनिमत से पास हो गया. बिल को विधान परिषद से भी पास करवा लिया गया. इस तरह महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को 16 फीसदी तक आरक्षण मिलने का रास्ता साफ हो गया. यह महाराष्ट्र स्टेट रिजर्वेशन फॉर सोशली एंड एजुकेशनली बैकग्राउंड क्लास (SEBC) एक्ट के आधार पर दिया गया.

2018 में महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार मराठा आरक्षण लेकर आई. (फाइल फोटो)
हालांकि, यह पहली बार नहीं था कि मराठाओं के लिए रिजर्वेशन लाया गया हो. 2014 में महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार थी. मुख्यमंत्री थे पृथ्वीराज चव्हाण. उन्होंने 25 जून, 2014 को एक आर्डिनेंस निकालकर मराठा समुदाय को 16 फीसदी और मुसलमानों को 5 फीसदी आरक्षण दे दिया. इस ऑर्डिनेंस के खिलाफ बंबई हाई कोर्ट में याचिकाएं लग गईं. बाद में हाई कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया. सरकार से कहा कि संवैधानिक प्रक्रिया का पालन कीजिए, तभी जाकर आरक्षण टिकेगा. इसके बाद सरकार ने महाराष्ट्र बैकवर्ड क्लास कमीशन को ज़िम्मेदारी दी कि वो राज्य में जातियों के पिछड़ेपन पर एक रिपोर्ट तैयार करे. रिटायर्ड जस्टिस गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले इस कमीशन ने महाराष्ट्र के हर जिले में जनसुनवाई शुरू की. लेकिन जब तक इस कमीशन की रिपोर्ट आती, महाराष्ट्र में चव्हाण सरकार चली गई और देवेंद्र फडणवीस की सरकार आ गई.
कुल 25 मानकों पर मराठों के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक आधार पर पिछड़ा होने की जांच की गई. उसमें सभी मानकों पर मराठों की स्थिति दयनीय पाई गई. इस दौरान किए गए सर्वे में 43 हजार मराठा परिवारों की स्थिति जानी गई. इसके अलावा जन सुनवाइयों में मिले करीब 2 करोड़ ज्ञापनों का भी अध्ययन किया गया. इनके आधार पर कमीशन ने मराठा समुदाय को सोशल एंड इकनॉमिक बैकवर्ड कैटेगरी (SEBC) के तहत अलग से आरक्षण देने की सिफारिश की थी. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मराठा आरक्षण पर कैंची चला दी है.