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मोदी सरकार ले आई है दो ट्रेन, चलेगी नहीं, उड़ेगी

एक का नाम है मैग्लेव और एक का नाम है टाल्गो. खैर नाम में क्या रखा है. अंदर पढ़ो ट्रेन की खास बातें क्या-क्या हैं.

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अविनाश जानू
2 अगस्त 2016 (Updated: 2 अगस्त 2016, 10:59 AM IST) कॉमेंट्स
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विकास की चर्चा अक्सर ट्रेन के इर्द-गिर्द घूमती है. मेट्रो को ही देख लो. भीड़ न हो तो लगता ही नहीं कि इंडिया में हैं. ऐसी ही सरकार की दो बहुत ही जबरदस्त ट्रेन के बारे में हम आपको बता रहे हैं -

आ रही है उड़ने वाली ट्रेन

बुलेट ट्रेन की तैयारी है और टाल्गो का भी ट्रायल चल रहा है और अब मोदी सरकार एक एेसी ट्रेन चलाने की तरफ कदम बढ़ा रही है जो चलेगी नहीं, समझो उड़ेगी. इसका नाम है मैग्लेव. भारतीय रेलवे ने मैग्लेव ट्रेन के लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट के लिए ग्लोबल टेंडर मांगे हैं. इसका मतलब है कि पूछा गया है मैग्लेव ट्रेन चलवाने में कौन-कौन कंपनी इंट्रेस्टेड है?

ये मैग्लेव है क्या?

मैग्लेव दो शब्दों से मिलकर बना है मैग्नेटिक और लेवीटेशन यानी चुंबकीय शक्ति से ट्रेन को हवा में ऊपर उठाकर चलाना. रेल मंत्रालय ने पीपीपी यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिए मैग्लेव ट्रेन सिस्टम की योजना बनाई है. इस ग्लोबल टेंडर की आखिरी तारीख 6 सितंबर है.

कहां से कहां तक चलेगी?

रेलवे के एक बड़े ऑफिसर ने बताया कि इस मैग्लेव ट्रेन को इन 4 ट्रैक पर चलाने का प्लान है - 1. बैंगलोर से चेन्नई 2. हैदराबाद से चेन्नई 3. दिल्ली से चंडीगढ़ 4. नागपुर से मुंबई

टेंडर निकला है, जल्दी भर दो

टेंडर जारी किया गया है डिजाइनिंग, बिल्डिंग, कमीशनिंग, ऑपरेशन, रनिंग और मेंटीनेंस के लिए दुनिया भर की कंपनियों से एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट के लिए. भारत सरकार इस प्रोजेक्ट के लिए जरूरी जमीन देगी और संबंधित कंपनी को एलीवेटेड ट्रैक, डिजाइनिंग, मैग्लेव ट्रेन सिस्टम की डिजाइनिंग और डिमान्ट्रेशन का जिम्मा खुद उठाना पड़ेगा. इसके लिए 200 से 500 किलोमीटर के ट्रैक के लिए टेंडर भरने वाली कंपनी को योजना देनी होगी और 10 से 15 किलोमीटर के ट्रैक पर अपने मैग्लेव ट्रेन सिस्टम को चलाकर दिखाना होगा. इस ट्रेन को 400 किलोमीटर से लेकर 500 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पर चलाया जाएगा.

बहुत मुश्किल है इसे चलाना, अमेरिका, इंग्लैंड भी फेल हो चुके हैं

दुनिया भर में मैग्लेव ट्रेन की तकनीक चुनिंदा देशों के पास ही है. ये देश हैं जर्मनी, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और यूएसए. चीन में शंघाई शहर से शंघाई एयरपोर्ट के बीच मैग्लेव ट्रेन चलती है और ये ट्रैक महज 38 किलोमीटर का है. मैग्लेव तकनीक से ट्रेन चलाने का सपना जर्मनी, यूके और यूएसए जैसे कई देशों ने देखा लेकिन तकनीकी कुशलता के बावजूद इसकी लागत और बिजली की खपत को देखते हुए ये सफल नहीं रही. दुनिया भर में कमर्शियल तरीके से ये सिर्फ और सिर्फ तीन देशों चीन, दक्षिण कोरिया और जापान में ही चल रही है.
टाल्गो के बारे में जानोगे तो आंखें चमक जाएंगी स्पेन वाली ट्रेन इंडिया में चलने जा रही है. एकदम लक्जरी कोच वाली. वो भी राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस से भी तेज. आज ट्रायल है. पिछला ट्रायल सही गया था, ये थोड़ा लेट हो गया बारिश के चलते. पर लग रहा है जल्द ही चल जाएगी ये ट्रेन इंडिया में. जान लो इसमें क्या-क्या सुविधा मिलने वाली है.

सबसे पहले ये जानो कि टाल्गो क्या होता है?

स्पेन के रेलवे सेक्टर की एक बहुत बड़ी कंपनी है, जिसका नाम है टाल्गो. पुरानी भी है, मई 1941 में शुरू हुई थी. टाल्गो का हेडक्वॉर्टर स्पेन की राजधानी मैड्रिड में है.

अब पढ़ो इस टाल्गो ट्रेन में क्या-क्या सुविधाएं हैं -

1. टाल्गो ट्रेन 250 kmph की स्पीड से चल सकती है. माने एक घंटे में 250 किलोमीटर. यानी आगरा निकल रहे हो और टाल्गो पकड़ लिए तो घंटे भर का वेट न करना 55 मिनट पे ही उतर लेना वरना वापसी की ट्रेन पकड़नी पड़ेगी. एक और प्रॉब्लम है कि ये तो समझ ही रहे हो कि रेल की पटरी तो इंडिया की ही है, स्पेन की तो है नहीं. इसलिए यहां पर 150 से 160 kmph पे ही ट्रायल चल रहा है. फिर भी डेढ़, दो घंटे में अगर आगरा पटक रही है तो सौदा फायदे का ही है.talgo-12. उसमें भी इस ट्रेन का एक हल्का वर्जन भी आता है. जो उड़ते हुए चलती है और 30 परसेंट टाइम बचा लेती है. मतलब जहां 17 घंटे में राजधानी दिल्ली से मुंबई पहुंचाती है. टाल्गो बस 12 घंटे में आपको वहां पहुंचा देगी. मतलब राजधानी और शताब्दी सब भूल जाओगे एक बार टाल्गो में चढ़ने के बाद.talgo-23. राजधानी और शताब्दी में जो LHB वाले डिब्बे यूज होते हैं, उनके मुकाबले ये टाल्गो ट्रेन वाले डिब्बे 1 करोड़ रुपये बचाएंगे. और एक प्लस प्वांइट ये भी है कि इसके मेंटीनेंस में भी कम पैसा खर्च होता है.talgo-34. जैसा बुलेट ट्रेन के लिए है न, नई पटरी लगाओ और तमाम झंझट. ऐसा कुछ भी टाल्गो के लिए नहीं है. यही वाली पटरी जिन पर इंडिया की सिंपल ट्रेन चलती है, उसी पर ये भी चल जाएगी.talgo-45. बढ़िया ट्रेन के डिब्बों में हर सीट में फुटरेस्ट, पढ़ने के लिए सीट में ही लाइट लगी होगी. टेबल होगा सामान रखने के लिए. टीवी स्क्रीन भी लगी होगी.talgo-56. ट्रेन के अंदर का माहौल जैसे का तैसा बना रहेगा, चाहे बाहर लू चल रही हो या फिर बर्फ पड़ रही हो.talgo-67. शॉवर लेना हो, रेस्टोरेंट में खाना खाना हो या फिर कैफेटेरिया में कॉफी की चुस्की लेनी हो सबका इंतजाम अलग-अलग कोच में रहेगा.talgo-78. ऊपर से जब ये ट्रेन चलने लगेगी, तो रेलवे का बिजली का बिल भी कम हो जाएगा. समझो कैसे? देखो ट्रेन होगी हल्की. इससे चलाने में कम एनर्जी लगेगी. यानी की सीधी सी बात कम एनर्जी के लिए कम बिजली लगेगी.talgo-89. टाल्गो वालों की ही टाल्गो 250 ट्रेन थी जो सेंट्रल एशिया में चलने वाली पहली हाई स्पीड ट्रेन बनी थी. उज्बेकिस्तान में चलती थी. वो भी डेली.talgo-910. अब इतनी अच्छी-अच्छी बात जान लिए हो तो ये भी जान लो कि इतनी फैंसी ट्रेन चलाने में खर्चा आएगा. जो कि बहुत ज्यादा होगा और उससे आपकी पॉकेट पर पड़ने वाला बोझ बढ़ जाएगा.talgo-10

टैल्‍गो का दूसरा परीक्षण 5, तीसरा 9 और चौथा 14 अगस्‍त को होगा. इन परीक्षणों के दौरान ट्रेन की रफ्तार 140 और 150 किलोमीटर प्रति घंटे तक की जाएगी.

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