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'सरकार ने अपराध की गंभीरता को नहीं देखा', बिलकिस के बलात्कारियों को सजा देने वाले जज बोले

रिटायर हो चुके जस्टिस यूडी साल्वी ने कहा कि सरकार को पीड़ित की स्थिति पर ध्यान देना चाहिए था.

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Justice UD Salvi and Bilkis Bano
जस्टिस यूडी साल्वी और बिलकिस बानो.
23 अगस्त 2022 (Updated: 23 अगस्त 2022, 01:11 IST)
Updated: 23 अगस्त 2022 01:11 IST
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साल 2002 के गुजरात दंगों (Gujarat Riots) के दौरान बिलकिस बानो (Bilkis Bano) के गैंगरेप और उनकी बेटी समेत परिवार के सात लोगों की हत्या करने के मामले में 11 लोगों को सजा देने वाले जस्टिस यूडी साल्वी (रिटायर्ड) ने कहा है कि गुजरात सरकार (Gujarat Government) को इन लोगों को रिहा करने से पहले अपराध की गंभीरता को देखना चाहिए था. मुंबई में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जस्टिस साल्वी ने ये भी कहा कि राज्य सरकार को पीड़िता की हालत का भी ध्यान करना चाहिए था. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा, 

'सरकार को दोषियों को दी गई सजा, उनके द्वारा किया गया अपराध और पीड़िता की हालत पर विचार करना चाहिए था. मुझे नहीं लगता कि इन पहलुओं पर ध्यान दिया गया था. मुझे पता चला है कि जिस नीति का पालन करते हुए इन लोगों को रिहा किया गया है, वो साल 1992 की है. न कि नई नीति, जो कि साल 2014 में बनाई गई थी. नई नीति में ऐसे अपराधों के दोषियों की रिहाई का कोई प्रावधान नहीं है.'

उन्होंने कहा कि वैसे तो सरकार को ये अधिकार है कि वो कानून के अनुसार दोषियों को एक निश्चित समयसीमा के बाद रिहा कर सकती है, लेकिन ऐसे प्रावधान बनाने का ये मकसद था कि सरकारें इसका इस्तेमाल सही तरीके से करेंगी. पूर्व जज ने कहा, 

'मुझे नहीं पता कि सरकार ने ये निर्णय किस आधार पर लिया है. क्योंकि इस मामले में अभियोजन एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) थी, इसलिए राज्य सरकार को केंद्र सरकार से सलाह लेने की जरूरत होती है. हालांकि मुझे नहीं पता कि ये भी किया गया था या नहीं. अगर राज्य सरकार ने केंद्र से संपर्क किया था, तो केंद्र की क्या प्रतिक्रिया थी, ये भी जानकारी सार्वजनिक नहीं है.'

मालूम हो कि गुजरात की बीजेपी सरकार ने अपनी रीमिशन पॉलिसी के तहत बिलकिस बानो के गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त को रिहा कर दिया था. रिहाई के बाद बलात्कार और हत्या के दोषियों का मिठाई खिलाकर स्वागत किया गया था.

Supreme Court में याचिका

इधर इसे लेकर गहरी नाराजगी जाहिर की गई है और गुजरात सरकार से मांग की गई है कि वो इन दोषियों को तत्काल जेल में भेजे. वहीं तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.

इसी मामले को लेकर एक अन्य याचिका सीपीएम नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार और फिल्मकार रेवती लाल और लखनऊ की पूर्व प्रोफेसर और कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा ने भी दायर की है.

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