मंत्रालयों में फोटो, मर्सिडीज बेंज की डिमांड, जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के पीछे ये वजहें भी?
सूत्रों के मुताबिक जगदीप धनखड़ इस प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के संपर्क में थे. इससे चिंतित केंद्र सरकार ने धनखड़ को विपक्ष के प्रस्ताव को स्वतंत्र रूप से स्वीकार न करने के लिए तीन बार समझाने की कोशिश की. लेकिन वो नहीं माने.

पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे को लेकर अलग-अलग कहानियां चल रही हैं. इंडिया टुडे ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि धनखड़ की सरकार से तनातनी एक दिन की नहीं थी. कथित तौर पर दोनों के बीच लंबे समय से कुछ मांगों को लेकर खींचतान चली आ रही थी. जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करना इस विवाद का अंतिम पड़ाव बताया जा रहा है, जिसके बाद कथित तौर पर धनखड़ पर इस्तीफे का दबाव बनाया गया. जस्टिस वर्मा वही न्यायाधीश हैं जिनके आवास से इस वर्ष की शुरुआत में बड़ी मात्रा में नकदी बरामद हुई थी.
इंडिया टुडे ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि धनखड़ इस प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के संपर्क में थे. इससे चिंतित केंद्र सरकार ने धनखड़ को विपक्ष के प्रस्ताव को स्वतंत्र रूप से स्वीकार न करने के लिए तीन बार समझाने की कोशिश की थी. सूत्रों ने बताया कि संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू, कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल और राज्यसभा में सदन के नेता जेपी नड्डा ने उनसे आग्रह किया कि वह कुछ समय इंतजार करें, क्योंकि एक संयुक्त महाभियोग प्रस्ताव लाने पर सहमति बनाने की प्रक्रिया चल रही थी.
लेकिन, कथित तौर पर सरकार की बार-बार की अपीलों के बावजूद, धनखड़ ने असहमति दर्शाते हुए यह एलान कर दिया कि उन्हें विपक्षी सांसदों के हस्ताक्षर मिल चुके हैं.
मानसून सत्र शुरू होने से 4–5 दिन पहले ही किरेन रिजिजू ने उपराष्ट्रपति को यह बता दिया था कि केंद्र सरकार लोकसभा में जस्टिस वर्मा के खिलाफ प्रस्ताव लाने की तैयारी कर चुकी है और राज्यसभा में भी ऐसा ही प्रस्ताव लाया जाएगा.
सत्र शुरू होने से ठीक एक दिन पहले रिजिजू ने एक बार फिर उन्हें यही जानकारी दी. इस समय तक सरकार के पास विपक्षी सांसदों सहित निचले सदन से पर्याप्त हस्ताक्षर एकत्र हो चुके थे.
कांग्रेस नेता से धनखड़ की मुलाकातइस बीच 20 और 21 जुलाई को धनखड़ ने कुछ विपक्षी नेताओं से मुलाकात की, जहां न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा हुई. 21 जुलाई सुबह तक यह स्पष्ट हो गया कि धनखड़ कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता से मिल चुके हैं और विपक्ष द्वारा जुटाए गए हस्ताक्षरों को औपचारिक रूप से स्वीकार कर संसद में प्रस्ताव पढ़ने के लिए तैयार हैं.
इस बीच सरकार ने तीन बार उनसे संपर्क किया और कहा कि यदि महाभियोग प्रस्ताव लाया जाना है, तो उसमें सत्ता पक्ष के सांसदों के हस्ताक्षर भी शामिल होने चाहिए, क्योंकि इस पर सर्वसम्मति बनी थी.
पहली बार रिजिजू और नड्डा उनसे मिले, दूसरी बार रिजिजू और मेघवाल, और तीसरी बार सिर्फ मेघवाल उनसे मिले. सभी ने आग्रह किया कि सरकार को विश्वास में लिया जाए और प्रस्ताव में सत्ता पक्ष के सांसदों के भी हस्ताक्षर होने चाहिए. लेकिन सूत्रों के अनुसार, धनखड़ अडिग रहे और उन्होंने सरकार को कोई आश्वासन नहीं दिया. उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया कि वे विपक्षी सांसदों की सूची को सदन में पढ़ेंगे.
पुरानी नाराज़गी और मांगेंसूत्रों के मुताबिक, यह टकराव केवल एक दिन की घटना नहीं थी. लंबे समय से धनखड़ की कुछ मांगों को लेकर सरकार से मतभेद थे. अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की भारत यात्रा से पहले धनखड़ ने कथित तौर पर कहा,
"मैं भी उपराष्ट्रपति हूं और उनका समकक्ष हूं, इसलिए मैं ही उनसे मुख्य और उच्चस्तरीय बैठक करूंगा."
बताया जा रहा है कि एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री ने उन्हें समझाया कि जेडी वेंस उपराष्ट्रपति भले ही हों, लेकिन वे अमेरिकी राष्ट्रपति का संदेश प्रधानमंत्री मोदी के लिए लेकर आ रहे हैं.
एक और विवाद सामने आ रहा है. सूत्रों का यह भी कहना है कि धनखड़ अक्सर चाहते थे कि उनके फोटो भी मंत्रियों के कार्यालयों में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के साथ लगाए जाएं. इसके अलावा अपनी गाड़ियों के काफिले को कथित तौर पर मर्सिडीज-बेंज गाड़ियों से बदलने की मांग भी कई बार की थी.
21 जुलाई की शाम विवाद के बाद धनखड़ बिना किसी पूर्व सूचना के राष्ट्रपति भवन पहुंच गए. वहां लगभग 25 मिनट तक इंतजार करने के बाद उन्होंने राष्ट्रपति को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया.
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