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बेंजामिन नेतन्याहू फिर से बनेंगे इजरायल के PM, विरोधी यैर लैपिड ने मानी हार

बेंजामिन नेतन्याहू की पार्टी लिकुड के नेतृत्व वाले गठबंधन को इजरायल के चुनाव में स्पष्ट बहुमत मिला है.

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Benjamin Netanyahu Yair Lapid Israel Election
बाएं से दाएं. यैर लैपिड और बेंजामिन नेतन्याहू. (फोटो: रॉयटर्स)
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3 नवंबर 2022 (Updated: 3 नवंबर 2022, 24:05 IST)
Updated: 3 नवंबर 2022 24:05 IST
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इजराइल के पूर्व प्रधानमंत्री यैर लैपिड (Yair Lapid) ने बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) के सामने हार मान ली है. लैपिड ने अपने विरोधी को बधाई दी. उन्होंने कहा कि इज़राइल देश सभी राजनीतिक विचारों से ऊपर है और मैं इजराइल के लोगों और इजराइल देश की खातिर नेतन्याहू की सफलता की कामना करता हूं.

दरअसल, इस बार के इजरायल चुनाव नेतन्याहू की पार्टी लिकुड और इसके साथ गठबंधन वालीं घोर दक्षिणपंथी पार्टियोंं को स्पष्ट बहुमत मिला है और वे अब पूरी तरह से सरकार बनाने की स्थिति में है. नेतन्याहू की अगुवाई वाले गठबंधन ने इजराइली संसद नेसेट की 120 में से 64 सीटें जीत ली हैं.

इससे पहले एक नवंबर को इजराइल में आम चुनाव हुए थे. पिछले चार सालों से भी कम समय में ये पांचवा मौका है, जब यहां चुनाव कराना पड़ा. साल 2019 से ही इजराइल में राजनीतिक अस्थिरिता बनी हुई थी. उस समय नेतन्याहू पर धोखाधड़ी और फ्रॉड के आरोप लगे थे, जिसके कारण उन्हें पद छोड़ना पड़ा था.

नेतन्याहू के खिलाफ आरोप

इजराइल के केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा जारी ताजा अपडेट्स के मुताबिक नेतन्याहू की लिकुड पार्टी ने 31 सीटें जीत ली हैं. वहीं पूर्व प्रधानमंत्री यैर लैपिड की येश अतिद को 24 सीटें, रिलीजियस जायोनिज्म को 14 सीटें, नेशनल यूनिटी को 12 सीटें, शास को 11 सीटें और यूनाइटेड तोराह जुडाइज्म को आठ सीटें मिली हैं. मालूम हो कि 73 साल के बेंजामिन नेतान्याहू इजराइल के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे हैं.

हालांकि नेतन्याहू के खिलाफ अभी भी कथित रिश्वत, धोखाधड़ी और फ्रॉड का मामला चल रहा है. उन्होंने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस बात की भी संभावना जताई जा रही है कि उनके सत्ता में आने पर संबंधित कानूनों में बदलाव कर दिया जाएगा, ताकि इस केस से नेतन्याहू को बचाया जा सके.

बेंजामिन नेतान्याहू को फिलिस्तीनी अधिकारों के खिलाफ माना जाता है और वो वेस्ट बैंक और गाजा में फिलिस्तीनी राज्य बनाने का विरोध करते आए हैं, जबकि शांति कायम करने के लिए अमेरिका समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस फॉर्मूले का समर्थन किया है.

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