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इजरायल पुराना दोस्त, ईरान भी बड़ा सहयोगी, अगर युद्ध हुआ तो किसकी तरफदारी करेगा भारत?

Iran-Israel के बीच बढ़ते तनाव पर नई दिल्ली की नज़र बनी हुई है. क्योंकि अगर एशिया में एक और युद्ध छिड़ता है तो इसका प्रतिकूल प्रभाव भारत पर भी पड़ना तय है.

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Iran-Israel Conflict
ईरान ने 13 अप्रैल की रात इज़रायल पर हवाई हमले किए थे. (Business Today)
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सौरभ
15 अप्रैल 2024 (Updated: 15 अप्रैल 2024, 09:50 PM IST) कॉमेंट्स
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पहले रूस-यूक्रेन, फिर इज़रायल-हमास और अब इज़रायल-ईरान. एशिया एक और युद्ध की कगार पर खड़ा है. 13-14 अप्रैल की रात ईरान ने इज़रायल पर करीब 300 मिसाइल और ड्रोन दागे. हालांकि, खबरों के मुताबिक इज़रायल के एयर डिफेंस सिस्टम ने लगभग सभी हमलों को ध्वस्त कर दिया. फिलहाल दोनों देशों की सेनाएं स्टैंडबाय पर हैं, लेकिन स्थिति तनावपूर्ण है. दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव ने मध्य एशिया, यूरोप समेत दुनिया भर को चिंता में डाल दिया है. अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देश स्थिति पर नज़र बनाए हुए हैं. भारत भी हालात की निगरानी कर रहा है. विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक बयान जारी कर दोनों देशों को तनाव खत्म करने की सलाह दी है, क्योंकि अगर युद्ध के हालात बनते हैं तो असर भारत पर भी पड़ेगा.

सात बिंदुओं में समझने कोशिश करते हैं कि अगर इज़रायल-ईरान युद्ध में जाते हैं तो भारत पर इसका कितना प्रभाव पड़ेगा. भारत के दोनों देशों से संबंध कैसे हैं और अगर युद्ध हुआ तो क्या होगा भारत का स्टैंड.

1. इज़रायल और ईरान, दोनों ही देशों से भारत के गहरे कूटनीतिक संबंध रहे हैं. और ये संबंध आज से नहीं दशकों से अलग-अलग सरकारों की सूझबूझ और राजनयिकों की मेहनत से प्रगाढ़ हुए हैं. इस सूझबूझ और मेहनत का नतीजा ये हुआ कि भारत ने दो विरोधी देशों से परस्पर गहरे संबंध स्थापित किए. इसलिए अगर इज़रायल और ईरान के बीच तनाव बढ़ता है तो भारत के लिए किसी एक तरफ जाना मुश्किल होगा. भारत के लिए ये रस्सी पर चलने जैसी स्थिति पैदा करेगा.

2. इज़रायल भारत का पुराना दोस्त है. खासतौर पर डिफेंस और सिक्योरिटी के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच गहरे रणनीतिक संबंध हैं. अमेरिका, फ्रांस और रूस के साथ-साथ इज़रायल भी भारत को बड़ी मात्रा में हथियार सप्लाई करता है. पिछले एक दशक से दोनों देशों के संबंधों की गर्मजोशी देखी जा सकती है. नरेंद्र मोदी सरकार में भारत और इज़रायल के संबंध ना सिर्फ और मजबूत हुए बल्कि मुखर भी हुए हैं. यही वजह है कि पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास के इज़रायल पर हमले के बाद दोनों के बीच युद्ध शुरू हुआ तो भारत ने शुरुआती घंटों में ही अपने इज़रायल के लिए समर्थन जाहिर कर दिया.

3. लेकिन ईरान के साथ भी भारत के मजबूत कूटनीतिक रिश्ते हैं. ईरान लंबे समय से भारत के लिए कच्चे तेल का बड़ा सप्लायर रहा है. हालांकि, अमेरिका के प्रतिबंधों की वजह से इस पर प्रभाव पड़ा. जो दोनों ही देशों के लिए नुकसानदायक था. भारत और ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में पनपती आतंकवाद की जड़ों पर एक जैसी सोच रखते हैं जो इस मुद्दे पर उनके बयानों में दिखती भी है. अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ तालिबान के बर्ताव पर भी दोनों देश चिंता जता चुके हैं.

4. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 18 हजार भारतीय इज़रायल में रहते हैं, पांच से दस हजार भारतीय ईरान में रहते हैं. किसी भी तरह की असहज स्थिति में इन प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा खतरे पड़ सकती है. ऐसी परिस्थितियों में भारत सरकार के लिए मुश्किल खड़ी होगी. मगर बात सिर्फ इन दोनों देशों में रहने वाले भारतीयों तक सीमित नहीं है. खाड़ी देशों में करीब 90 लाख भारतीय हैं. इनमें ज्यादातर काम की तलाश में वहां गए हैं. ईरान और इज़रायल के बीच तनाव बढ़ा तो इन 90 लाख प्रवासियों पर असर पड़ेगा.

5. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद कच्चे तेल ने कई देशों को परेशानी में डाल दिया था. भारत भी उनमें से एक था. हालांकि, भारत ने पश्चिम से लड़कर रूस से सस्ते दाम पर तेल का करार किया. जिससे पेट्रोल-डीज़ल की सप्लाई और दाम दोनों ही प्रभावित नहीं हुए. मगर पश्चिम एशिया से भारत करीब 80 प्रतिशत तेल खरीदता है. ऐसे में मिडिल ईस्ट में एक और युद्ध होता है तो तेल के क्षेत्र में भारत के लिए बड़ी चुनौती आ सकती है.

6. तेल सिर्फ गाड़ियां नहीं चलाता, पूरी अर्थव्यवस्था चलाता है. इसके दाम महंगाई से सीधे आनुपातिक हैं. अंग्रेजी में कहें तो डायरेक्टली प्रपोर्शनल. यानी तेल के दाम बढ़ेंगे तो सब्जी, दूध, अनाज समेत हर सामान महंगा हो जाएगा. जो किसी भी देश की सरकार के लिए सहज स्थिति नहीं होती.

7. मध्य एशिया में निर्यात के लिए पाकिस्तान हमें रास्ता नहीं देता है. इसलिए अफगानिस्तान समेत दूसरे देशों में इंपोर्ट-एक्सपोर्ट का जरिया ईरान का चाबहार पोर्ट है. अगर युद्ध जैसी परिस्थिति बनती है तो भारत के निर्यात पर भी असर पड़ सकता है.

वीडियो: इज़रायल पर ईरान का हमला दुनियाभर के देशों ने क्या कहा?

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