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सिस्टर अभया की हत्या में पादरी और नन दोषी करार; फैसले में 28 साल क्यों लगे, जान लीजिए

अदालत न अड़ती तो केरल की सबसे लम्बी मर्डर इन्वेस्टिगेशन में ये फैसला न आता

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बाईं तरफ से: सिस्टर अभया, जिनकी लाश उनके कॉन्वेंट के कम्पाउंड से मिली. थॉमस कुट्टूर और सिस्टर सेफी, पर हत्या के आरोप साबित हो गए हैं. (तस्वीर साभार: विकिमीडिया/mathrubhumi online)
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अमित
22 दिसंबर 2020 (Updated: 22 दिसंबर 2020, 09:44 AM IST) कॉमेंट्स
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सीबीआई कोर्ट ने 28 साल पुराने सिस्टर अभया मर्डर केस में फादर थॉमस कुट्टूर और सिस्टर सेफी को दोषी करार दिया. तिरुवनंतपुरम में स्पेशल सीबीआई जज के. सैनिकुमार ने मंगलवार 22 दिसंबर को यह फैसला दिया. सजा पर फैसला 23 दिसंबर को हो सकता है. इसे केरल की सबसे लम्बी मर्डर इन्वेस्टिगेशन कहा जाता है. इस केस के दौरान केरल के चर्चों पर भी कई सवाल उठे थे. घटना के 28 साल बाद आया फैसला यह पूरा मामला पिछले तकरीबन 3 दशकों में कई उतार-चढ़ावों से गुजरा है. मामले की परतें खोलने के लिए पुलिस और सीबीआई की कई बार लंबी-लंबी जांच चलीं. अदालत ने एक बार पुलिस की जांच को और दो बार सीबीआई की जांच को खारिज कर दिया था. सीबीआई की तीसरी जांच के बाद दो पादरियों और एक सिस्टर की हत्या के आरोप में गिरफ्तारी हुई. CBI का आरोप था कि सिस्टर अभया ने दो पादरियों थॉमस कुट्टूर, जोस पुथुरुक्कयिल और एक नन सिस्टर सेफी को ‘आपत्तिजनक स्थिति’ में देख लिया था. सिस्टर अभया ये बात किसी को बता न दें और चर्च की बदनामी न हो, इस डर में तीनों ने मिलकर उनकी हत्या कर दी थी. रहस्यों भरा था सिस्टर अभया की मौत का मामला सिस्टर अभया कोट्टायम के पायस टेन कॉन्वेंट में पढ़ती थीं. पेरेंट्स ने उनका नाम बीना थॉमस रखा था. जब नन बनीं, तो अभया नाम मिला. वह सेंट जोसफ कॉन्ग्रीगेशन ऑफ रिलीजियस सिस्टर्स की सदस्य थीं. 27 मार्च, 1992 की सुबह सिस्टर अभया पढ़ने के लिए उठी थीं. अपने एक एग्ज़ाम के लिए. समय था, सुबह के 4 बजे. पानी लेने के लिए वो किचन में गईं. लेकिन कमरे में वापस नहीं आईं. अगले दिन उनकी डेड बॉडी कम्पाउंड के कुएं में तैरती मिली. 1993 में केरल पुलिस ने इसे आत्महत्या बताकर केस बंद कर दिया था. उसके बाद सिस्टर अभया के साथ की 67 ननों ने केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री के. करुणाकरण से अपील की कि इसे हत्या मानकर जांच कराई जाए. उसके बाद केरल हाई कोर्ट ने जांच CBI को सौंपी. जज ने न्यायप्रणाली पर सवाल उठाए और खुद को गोली मार ली. प्रतीकात्मक फोटो कोर्ट ने मामले में सख्ती दिखाई और सीबीआई की रिपोर्ट को 2 बार खारिज कर दिया. तीसरी बार की रिपोर्ट में ही मामला साफ हो सका. (प्रतीकात्मक फोटो) कोर्ट के अड़ने पर आया फैसला 1996 आते-आते सीबीआई ने कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल कर दी कि उन्हें पता नहीं चल पा रहा है कि सिस्टर अभया की हत्या हुई थी, या उन्होंने सुसाइड किया था. कोर्ट ने मामले में सख्ती दिखाई, और सीबीआई की रिपोर्ट को खारिज कर दिया. कोर्ट ने सीबीआई को फिर से जांच करने के आदेश दिए. इसके एक साल बाद यानी 1994 में सीबीआई फिर से कोर्ट पहुंची. बताया कि जांच में यह तो पता चल गया है कि मामला सुसाइड का नहीं बल्कि हत्या का है. लेकिन उनके पास ऐसा कोई सबूत नहीं है कि किसी को दोषी मानकर जांच आगे बढ़ाई जा सके. कोर्ट ने फिर से रिपोर्ट को खारिज कर दिया. इस तरह, सीबीआई ने तीसरे राउंड की जांच शुरू की. 10 साल तक यह जांच चली. इसके बाद 2008 में फादर थॉमस कोट्टोर, फादर जोस पुथुरुक्कयिल और सिस्टर सेफी को सिस्टर अभया की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया. साल 2009 में इन सभी को केरल हाई कोर्ट से बेल मिल गई. 2018 में फादर जोस पुथुरुक्कयिल को सुबूतों के अभाव में मामले से बरी कर दिया गया. इस साल हाई कोर्ट की जस्टिस वीजी अरुण की बेंच ने इस मामले में हो रही देरी की ओर ध्यान दिया. उन्होंने निर्देश दिया कि जल्दी मामले का निपटारा किया जाए. इसके बाद ही सीबीआई कोर्ट में केस की रोजाना सुनवाई शुरू हुई. अब जाकर घटना के 28 साल बाद कोर्ट किसी नतीजे पर पहुंचा है.

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