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राहुल गांधी ने अपनी ही सरकार का कौन सा अध्यादेश फाड़ा था, जिसे गुलाम नबी ने बचकाना बताया?

सोनिया गांधी के लिखे पत्र में गुलाम नबी आजाद ने कहा कि राहुल की इस नासमझ हरकत ने कांग्रेस पार्टी की चुनावी हार में बहुत बड़ी भूमिका निभाई.

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Rahul Gandhi and Ghulam Nabi Azad
राहुल गांधी और गुलाम नबी आजाद. (फोटो: पीटीआई)
26 अगस्त 2022 (Updated: 26 अगस्त 2022, 18:11 IST)
Updated: 26 अगस्त 2022 18:11 IST
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वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने कांग्रेस पार्टी (Congress Party) से अपने इस्तीफे में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की घोर आलोचना की है. उन्होंने आरोप लगाया कि साल 2013 में बतौर उपध्याक्ष राहुल गांधी की पार्टी में एंट्री के बाद से ही विचार-विमर्श के पुराने ढांचे को पूरी तरह से ढहा दिया गया था.

आजाद ने कहा कि 'राहुल गांधी अनुभवहीन चाटुकार मंडली' से घिरे हुए हैं और ऐसे लोग ही पार्टी के बड़े फैसले ले रहे हैं. इसे लेकर गुलाब नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने साल 2013 की एक घटना का जिक्र किया, जब UPA सरकार के दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कैबिनेट द्वारा पारित एक अध्यादेश को बकवास बताया था और उसे फाड़ दिया था. गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने कहा कि ये दर्शाता है कि 'राहुल कितने अपरिपक्व नेता' हैं.

क्या था अध्यादेश!

साल 2013 के सितंबर महीने में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया था. इसका मकसद उसी साल जुलाई महीने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश को निष्क्रिय करना था, जिसमें न्यायालय ने कहा था कि दोषी पाए जाने पर सांसदों और विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी जाएगी.

उस समय देश भर में तत्कालीन सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर आंदोलन चल रहे थे. इस अध्यादेश के आने के चलते उस समय की विपक्षी पार्टियों- बीजेपी, लेफ्ट पार्टी इत्यादि ने और जमकर कांग्रेस पर हमला शुरु कर दिया गया था. सरकार पर आरोप लग रहे थे कि वो भ्रष्टाचारियों को बढ़ावा देना चाह रही है, इसलिए ये अध्यादेश लाया गया है.

मालूम हो कि इसी समय RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव पर भी चारा घोटाले को लेकर 'अयोग्यता' की तलवार लटक रही थी और राज्य सभा सांसद राशिद मसूद भ्रष्टाचार मामले में दोषी ठहराए जा चुके थे.

Congress ने की थी प्रेस कॉन्फ्रेंस

इन सब के बीच कांग्रेस ने 27 सितंबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी, जहां पार्टी के नेता अध्यादेश की 'अच्छाईयों' को जनता के सामने पेश करने वाले थे. हालांकि, यहां अचानक से राहुल गांधी की नाटकीय अंदाज में एंट्री हुई. उन्होंने अपनी पार्टी की अगुवाई वाली यूपीए सरकार पर सवाल उठाए और कहा कि 'ये अध्यादेश पूरी तरह बकवास है, इसे फाड़ कर फेंक दिया जाना चाहिए'.

तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी पूरी कैबिनेट के लिए यह एक बड़ी 'शर्मिंदगी' वाली घटना थी.

राहुल गांधी की क्या दलील थी?

इस मामले को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कहा था

'मैं आपको बताता हूं कि अंदर क्या चल रहा है. हमें राजनीतिक कारणों के चलते इसे (अध्यादेश) लाने की जरूरत है. हर कोई यही करता है. कांग्रेस पार्टी ये करती है, बीजेपी ये करती है, जनता दल यही करती है, समाजवादी यही करती है और हर कोई यही करता है. लेकिन ये सब अब बंद होना चाहिए.'

उन्होंने आगे कहा था, 

'मेरा मानना है कि सभी राजनीतिक दलों को ऐसे समझौते बंद करने चाहिए. क्योंकि अगर हम इस देश में भ्रष्टाचार से लड़ना चाहते हैं, तो हम सभी को ऐसे छोटे समझौते बंद करने पड़ेंगे. कांग्रेस पार्टी जो कर रही है उसमें मेरी दिलचस्पी है, हमारी सरकार जो कर रही है, उसमें मेरी दिलचस्पी है और मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि इस अध्यादेश के संबंध में हमारी सरकार ने जो किया है वो गलत है.'

जब ये प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई थी, उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिका के दौरे पर थे और इसे प्रधानमंत्री के दर्जे को चुनौती के रूप में देखा गया था. हालांकि, इस घटना के बाद राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखकर अपना पक्ष रखा था और कहा था कि 'उस माहौल की गहमागहमी के बीच उन्होंने ऐसी टिप्पणी' कर दी थी. इसके साथ ही राहुल ने ये भी कहा था कि उन्होंने जो कहा है उसमें उनका विश्वास है.

बाद में अक्टूबर महीने में तत्कालीन यूपीए सरकार ने ये अध्यादेश वापस ले लिया था.

गुलाम नबी आजाद ने क्या कहा?

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे अपने इस्तीफा पत्र में गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि ये अध्यादेश कांग्रेस कोर ग्रुप के साथ विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया था. इसे प्रधानमंत्री की अगुवाई वाली केंद्रीय कैबिनेट ने स्वीकृति दी थी और राष्ट्रपति ने इसे स्वीकार किया था.

उन्होंने कहा, 

'लेकिन इस बचकानी हरकत के चलते प्रधानमंत्री और भारत सरकार के दर्जे को पूरी तरह नीचा कर दिया गया था. साल 2014 के चुनाव में यूपीए सरकार की हार में इस एक हरकत की बहुत बड़ी भूमिका थी.'

गुलाम नबी आजाद ने दावा किया कि दक्षिणपंथी समूहों और कुछ कॉरपोरेट घरानों ने मिलकर इस मौके का फायदा उठाया था.

वीडियो: सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बाने पर सख्त रुख अपनाया, दोषियों की रिहाई पर गुजरात सरकार से ये कहा

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