G20 के देश : नेल्सन मंडेला के साउथ अफ्रीका की असली कहानी!
साउथ अफ़्रीका की ज़मीनी सीमा 06 देशों से लगती है - नामीबिया, बोत्सवाना, ज़िम्बॉब्वे, स्वातिनी, मोज़ाम्बिक और लेसोथो.

ये लल्लनटॉप है. और, आप हमारी ख़ास कवरेज G20 360 डिग्री देख रहे हैं. लीडर्स समिट (G20 Leaders Summit) चल रही है. ऐसे में हम आपका परिचय G20 परिवार के सदस्यों (G20 Countries) से करा देते हैं. आज कहानी महात्मा गांधी की कर्मभूमि और नेल्सन मंडेला के देश साउथ अफ़्रीका (South Africa) की. कहानी की शुरुआत ठीहे से.
नक़्शेबाज़ीसाउथ अफ़्रीका, अफ़्रीका महाद्वीप के दक्षिणी छोर पर बसा है. अधिकांश इलाका पठारी है. यानी ऊंचा और समतल. दक्षिण और पश्चिम में पहाड़ी इलाका है और पूरब में दांतेदार चोटियों वाला ड्रेकेंसबर्ग माउंटेन. साउथ अफ़्रीका की ज़मीनी सीमा 06 देशों से लगती है - नामीबिया, बोत्सवाना, ज़िम्बॉब्वे, स्वातिनी, मोज़ाम्बिक और लेसोथो. लेसोथो, साउथ अफ़्रीका की सीमा के अंदर बसा है. आबादी करीब 6 करोड़ है. साउथ कोरिया की तीन-तीन राजधानी है. प्रिटोरिया प्रशासनिक राजधानी प्रिटोरिया है. केपटाउन विधायी राजधानी है. यहां संसद है. और, ब्लॉमफ़ॉन्टेन न्यायिक राजधानी है.

एक और शहर का नाम आपने ख़ूब सुना होगा. जोहानिसबर्ग. यहां पर वांडरर्स स्टेडियम है. इसी मैदान पर 2003 के क्रिकेट वर्ल्ड कप का फ़ाइनल मैच हुआ था. भारत को ऑस्ट्रेलिया के हाथों हार का सामना करना पड़ा. 2023 की ब्रिक्स समिट भी इसी शहर में आयोजित हुई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिस्सा लेने गए थे.
इसके अलावा, 11 आधिकारिक भाषाएं भी हैं. इसकी बड़ी वजह दशकों तक चला नस्ली दमन है.
हिस्ट्री का क़िस्सासाउथ अफ्रीका के दक्षिणी इलाके में जोहानिसबर्ग के पास एक गुफा है. इसे स्टेर्कफोंटेन कहते हैं. पुरातत्वविदों को यहां कुछ पुराने मानव जीवाश्म मिले. कुछ तो 20 लाख साल बरस से भी पुराने हैं. इसलिए इस इलाके को नाम दिया गया - 'मानव जाति का पालना'.
आज से लगभग 24 हजार साल पहले, सैन या बुशमैन नाम की शिकारी जातियां साउथ अफ्रीका पहुंची थी. इनके वंशज अभी भी कालाहारी रेगिस्तान के आस-पास रहते हैं.
फिर 15वीं सदी आई. यूरोप से समुद्री अभियानों का दौर शुरू हुआ. नई ज़मीन की तलाश में. ऐसे ही एक समुद्री अभियान की कमान पुर्तगाली जहाजी बतालेमेओ डियाज़ के हाथों में थी. वो भारत पहुंचने के लिए रास्ता खोजने निकले. लेकिन भयानक तूफ़ान के चलते एक टापू पर रुकना पड़ा. ये अफ़्रीका का दक्षिणी छोर था. जिस जगह पर डियाज़ और उसके साथी रुके थे, वो आज केपटाउन के नाम से जाना जाता है. कालांतर में ये जगह बेस कैंप बन गई. भारत आने के रास्ते में वास्कोडिगामा केपटाउन में भी ठहरा था. 1497 में.
लंबे समय तक इस इलाके में शांति बरकरार रही. डच और अंग्रेज़ों के बीच सत्ता की अदला-बदली चल रही थी. वो सीमित इलाकों पर शासन चला रहे थे. ये ठहराव 1867 में भंग हो गया. किम्बर्ली प्रांत में हीरे की पहली खदान मिली. अंग्रेज़ों की नज़र टेढ़ी हो गई. कुछ बरस बाद यहां सोना भी मिलने लगा.
इसके बाद ब्रिटेन ने अपनी सेना उतार दी. वे नए इलाकों पर कब्ज़ा जमाने लगे. संसाधनों को लूटने लगे. 1910 में यूनियन ऑफ़ साउथ अफ़्रीका की स्थापना हुई. इसमें डचभाषी बोयर रिपब्लिक और अंग्रेज़ों के कब्ज़े वाले इलाके एक हो गए. दक्षिण अफ़्रीका, ब्रिटिश साम्राज्य का डोमिनियन स्टेट बन गया. ब्रिटेन की गद्दी पर बैठा शासक ही देश का मुखिया होता था. 1934 में दक्षिण अफ़्रीका को आज़ादी मिल गई. आज़ादी ब्रिटिश शासन से मिली थी, लेकिन मानसिकता से नहीं. वो सोच, जिसपर टंका था कि गोरी चमड़ी वाले लोग शासक होंगे. और, बाकी लोग सेवक.
1948 में नेशनल पार्टी ऑफ़ साउथ अफ़्रीका को देश की कमान मिली. ये पार्टी ‘वाइट सुप्रीमेसी’ की अगुआ थी. अश्वेतों के ख़िलाफ़ नफ़रत उनके जीन में थी. सरकार बनते ही ‘रंगभेद’ की नीति लागू की. अश्वेतों के साथ भेदभाव बढ़ गया. अश्वेत चुनाव में वोट नहीं डाल सकते थे. स्कूल-कॉलेज, सरकारी दफ़्तर, कॉलोनी, समझिए कि आम दिनचर्या की हर ज़रूरी इकाई को रंग के आधार पर बांट दिया गया था. गोरे लोगों के मोहल्ले में घुसने के लिए भी पास लेना पड़ता था. अधिकतर अच्छी नौकरी गोरी चमड़ी वालों के लिए रिज़र्व्ड थी. अश्वेतों के हिस्से में सफाई और शारीरिक श्रम वाले काम थे. उनसे ज़मीन खरीदने का हक़ भी छीन लिया गया था.
ये घटिया नीति तो काग़ज़ों पर थी. हक़ीक़त उससे कहीं ज़्यादा बदतर थी. सरकार अश्वेतों को इंसान मानती ही नहीं थी. उनके ऊपर होने वाले अत्याचारों की सुनवाई नहीं थी. लोगों के भीतर ये गुस्सा जमा होता गया. 1970 के दशक में हिंसक विरोध-प्रदर्शन होने लगे. अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस (ANC) इसको लीड कर रही थी. पार्टी के नेता नेल्सन मंडेला जेल में थे. लेकिन उनकी पार्टी सड़कों पर थी. धीरे-धीरे इन प्रदर्शनों का दायरा बढ़ने लगा.
1978 में पीटर विलियम बोथा देश के प्रधानमंत्री बने. अश्वेतों के धुर-विरोधी थे. उन्होंने अपने पर्सनल डॉक्टर वॉटर बसान को यूरोप भेजा. वो ऐसा हथियार चाहते थे, जिससे गुपचुप तरीके से अश्वेतों को खत्म कर दिया जाए. ये ‘प्रोजेक्ट कोस्ट’ था. बसान ‘ब्लैक वेपन’ के ईजाद में जुट गए. ये हथियार सिर्फ़ अश्वेत लोगों पर इस्तेमाल किया जाना था. प्रोजेक्ट कोस्ट के तहत सुसाइड पिल्स, ज़हरीली गैसों और अश्वेत महिलाओं को बांझ बनाने वाली दवाएं बनाई गईं. सेना ने इनका इस्तेमाल भी किया. रंगभेद-युग खत्म होते-होते सेना से लड़ाई में हज़ारों लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी. 1994 में सरकार बदल गई. तब जाकर प्रोजेक्ट कोस्ट का भेद खुला. डॉक्टर बसान पर जांच बैठी. मीडिया में उन्हें ‘डॉक्टर डेथ’ कहा गया. मगर कभी सज़ा नहीं मिल सकी.
खैर, 1980 के दशक में साउथ अफ़्रीका सरकार पर दबाव पड़ा. रंगभेद खत्म करने की मांग उठी. 1990 में मंडेला को रिहा किया गया. रंगभेदी नीतियों को बदला गया. 1994 में राष्ट्रपति चुनाव हुआ. पहली बार हर नस्ल के योग्य वोटर्स को मौका दिया गया. मंडेला चुनाव जीत गए. 1999 तक पद पर रहे. ‘अन्याय-युग’ से मुक्ति का भरोसा दिलाने के लिए ज़रूरी था कि हर नागरिक को शासन में शामिल किया जाए. इसका माध्यम बनाया गया भाषाओं को. 35 में से 11 प्रमुख भाषाओं को आधिकारिक दर्ज़ा मिला. इन्हीं भाषाओं के आधार पर साउथ अफ्रीका के 10 नाम और हैं.
साउथ अफ़्रीका ने काफ़ी तरक्की की है. ये दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देशों में गिना जाने लगा. लेकिन इस विकास के साथ-साथ भ्रष्टाचार भी बढ़ा. इसके चलते साउथ अफ़्रीका फिलहाल बिजली संकट, बेरोज़गारी और ग़रीबी से जूझ रहा है.
पैसे वाली बात
करेंसी का नाम है, साउथ अफ्रीकन रैंड.
इंटरनैशनल मॉनिटरी फ़ंड (IMF) के मुताबिक, जीडीपी 399 बिलियन डॉलर है. भारतीय रुपये में लगभग 33 लाख करोड़.
प्रति व्यक्ति आय लगभग 5 लाख रुपये है. भारत से दो गुना ज़्यादा.
मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉमर्स की वेबसाइट पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक,
2022-23 में दोनों देशों के बीच 06 लाख 80 हज़ार करोड़ रुपये का बिजनेस हुआ.
भारत ने 03 लाख 45 हज़ार करोड़ का सामान साउथ अफ़्रीका भेजा.
क्या निर्यात किया?
गाड़ियां, ट्रांसपोर्ट इक़्विपमेंट, दवाईयां आदि.
साउथ अफ़्रीका से हमने लगभग 03 लाख 25 हज़ार करोड़ का सामान आयात किया.
क्या-क्या?
सोना, कोयला, लौह अयस्क आदि.
भारत साउथ अफ़्रीका में चलने वाली रंगभेद-नीति का हमेशा से विरोधी रहा. उसने विरोध जताने के लिए हर तरह के संबध खत्म कर लिए थे. भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर साउथ अफ़्रीका का मसला उठाया. 1960 के दशक में अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस ने नई दिल्ली में अपना दफ़्तर खोला. साउथ अफ़्रीका की तत्कालीन सरकार ANC को आतंकी संगठन मानती थी.
1990 के दशक की शुरुआत में साउथ अफ़्रीका में बदलाव हुए. नेल्सन मंडेला जेल से छूटे. भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया. 1990 में मंडेला भारत भी आए.
1993 में दोनों देशों के बीच व्यापारिक और राजनयिक संबंध शुरू हुआ. 1997 में रणनीतिक साझेदारी के समझौते पर दस्तखत किए गए. G20 के अलावा दोनों देश ब्रिक्स और कॉमनवेल्थ में साथ हैं. 2008 में भारत ने साउथ अफ़्रीका और ब्राज़ील के साथ साझा सैन्य अभ्यास की शुरुआत की थी.
भारत और साउथ अफ़्रीका दुनिया के सबसे तेज़ी से विकसित हो रहे देशों में हैं. दोनों देश यूएन सिक्योरिटी काउंसिल की स्थायी सदस्यता की दावेदारी भी पेश करते हैं.
मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 03 बार साउथ अफ़्रीका के दौरे पर जा चुके हैं. उनका पिछला दौरा अगस्त 2023 में हुआ था. ब्रिक्स समिट के लिए जोहानिसबर्ग गए थे. उसी दौरान चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग हुई थी.
पॉलिटिकल सिस्टमप्रेसिडेंशियल सिस्टम है. लोकतांत्रिक व्यवस्था है.
राष्ट्रपति ही सरकार और राष्ट्र के प्रमुख होते हैं.
कार्यपालिका में राष्ट्रपति और कैबिनेट है.
विधायी शक्तियां संसद के पास हैं. संसद के दो सदन है- ऊपरी सदन को नेशनल काउंसिल ऑफ प्रोविंस (NCOP) कहते हैं. निचला सदन नेशनल असेंबली कहलाता है. नेशनल असेंबली में बहुमत दल का नेता राष्ट्रपति बनता है. राष्ट्रपति चुने जाने के लिए निचले सदन का मेंबर होना अनिवार्य है. लेकिन राष्ट्रपति बनते ही सदस्यता छोड़नी पड़ती है.
राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 साल का होता है. एक व्यक्ति अधिकतम दो कार्यकालो ही ले सकता है. नेशनल असेंबली अविश्वास प्रस्ताव लगाकर राष्ट्रपति को पद से हटा सकती है.
न्यायपालिका स्वतंत्र है. सुप्रीम कोर्ट सबसे बड़ी न्यायिक संस्था है.
साउथ अफ़्रीका के मौजूदा राष्ट्रपति हैं - सिरिल रामाफ़ोसा.
वो फ़रवरी 2018 से पद पर हैं.
जोहानिसबर्ग में पैदा हुए. रंगभेद की वजह से परिवार को शहर के बाहर शिफ़्ट होना पड़ा.
कानून की पढ़ाई की. रंगभेद के ख़िलाफ़ रैलियों में हिस्सा लेने की वजह से कई बार जेल गए. पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत की. कुछ समय तक काउंसिल ऑफ़ यूनियन ऑफ़ साउथ अफ्रीका (CUSA) के कानूनी सलाहकार रहे. ट्रेड यूनियन से जुड़े. कामगारों से जुड़े मुद्दों पर हड़ताल कीं. ANC पर लगा बैन 1990 में हटा लिया गया. रामाफ़ोसा पार्टी सेक्रेटरी-जनरल बने. मंडेला पार्टी के अध्यक्ष थे.
1994 में नेल्सन मंडेला राष्ट्रपति बने. रामाफोसा, सरकार में उनके डिप्टी बनने वाले थे. लेकिन ये पद थाबो मबेकी को मिला. रामाफ़ोसा ने संवैधानिक सभा के चेयरमैन के तौर पर भी काम किया. इसी ने देश का नया संविधान बनाया.
2012 में रामाफोसा ANC के डिप्टी प्रेसिडेंट बने. उस वक़्त जैकब जुमा, पार्टी प्रमुख के अलावा देश के भी राष्ट्रपति थे. 2017 आते-आते जुमा भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरने लगे थे. पार्टी के अंदर भी विरोध बढ़ रहा था. दिसंबर 2017 में रामाफोसा पार्टी के अध्यक्ष बने. फरवरी 2018 में जुमा ने राष्ट्रपति पद से भी इस्तीफा दे दिया. कार्यकाल पूरा होने में एक बरस का टाइम बचा था. तब पार्टी ने रामाफ़ोसा को मौका दिया.
मई 2019 में राष्ट्रपति चुनाव हुआ. ANC जीत गई. रामाफोसा राष्ट्रपति पद पर बरकरार रहे.
- रामाफोसा सफल व्यवसायी भी हैं. उन्होंने न्यू अफ़्रीकान इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड नाम की एक फर्म शुरू की थी. 2001 में शांडुका ग्रुप की शुरुआत की. ये फर्म माइनिंग, प्रॉपर्टी, फाइनेंस और फ़ास्ट-फ़ूड फ्रेंचाइज़ के सेक्टर में काम करती है.
सिरिल रामाफ़ोसा में हिस्सा लेने नई दिल्ली पहुंच चुके हैं.G20
फ़ैक्ट्स- 1860 के दशक के बाद हज़ारों भारतीय मज़दूरी करने साउथ अफ़्रीका गए. उनके साथ काफी भेदभाव होता था. महात्मा गांधी ने पहला सत्याग्रह उन्हीं के लिए शुरू किया था.
- साउथ अफ़्रीका के ट्रांसवाल में आंदोलन का मुख्यालय था. इसका नाम उनके पसंदीदा लेखक लियो टॉल्सटॉय पर रखा था.
- -दक्षिण अफ़्रीका विश्व में मैकाडामिया नट्स का सबसे बड़ा उत्पादक है।
- दक्षिण अफ्रीका में एक गली में दो नोबेल विजेताओं का घर है. सोवतो की विलाकाज़ी स्ट्रीट में दक्षिण अफ्रीकी नेता आर्कबिशप डेसमंड टूटू और नेल्सन मंडेला का ठिकाना था. दोनों को शांति का नोबेल प्राइज़ मिला था. इस वजह से गली को नोबेल स्ट्रीट भी कहा जाता था.
- पैरालम्पिक खेलों की दुनिया में ब्लेड रनर के नाम से चर्चित ऑस्कर प्रिटोरियस साउथ अफ़्रीका से ही है. 2014 में गर्लफ़्रेंड के क़त्ल के जुर्म में उन्हें 05 बरस जेल की सज़ा सुनाई गई थी.
- साउथ अफ़्रीका सेम-सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने वाला अफ़्रीका महाद्वीप का पहला देश है.
- रंगभेदी शासन खत्म होने के बाद समानता और लोकतंत्र का वादा किया गया था. लेकिन 1994 के बाद से मुल्क में एक ही पार्टी सरकार चला रही है.
- साउथ अफ़्रीका, अफ़्रीका महाद्वीप के गिनती के देशों में से है, जहां एक बार भी सैन्य तख़्तापलट नहीं हुआ है.
- साउथ अफ़्रीका ने वर्ल्ड पॉलिटिक्स के दोनों धड़ों में अपनी पकड़ मज़बूत रखी है. वो अमेरिका से भी रिश्ते रख रहा है और रूस के साथ भी उसने संबंध बनाकर रखे हैं.
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