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लड़की की शादी में मेहमानों को पानी तक नहीं पिला पाया ये परिवार!

वजह गरीबी नहीं उसकी जाति है. सुन रहे हैं न मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ.

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पीड़िता की मां.
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27 मई 2018 (Updated: 27 मई 2018, 10:26 IST)
Updated: 27 मई 2018 10:26 IST
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उत्तर प्रदेश का एटा जिला. यहां पर एक लड़की की शादी थी. परिवारवालों ने शादी के लिए खूब तैयारियां की थीं. मेहमानों की आवभगत का पूरा इंतजाम था. खाने के लिए व्यंजन बने थे, पीने के लिए  मिनरल वाटर था और वो सबकुछ जो एक शादी को और भी खूबसूरत बना देता है. सब कुछ ठीक चल रहा था. अचानक शाम को घरवालों को उनको पता चला कि जिसे मिनरल वाटर की सप्लाई करनी थी, वो उनलोगों को पानी नहीं देगा. वजह पूछने पर वाटर सप्लायर ने जो बताया, उसे हमारे समाज के मानसिक दिवालियापन के अलावा और कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. पानी के सप्लायर ने कहा-
‘अगर हमने नीची जात वालों को पानी दे दिया तो ऊंची जात वाले हमसे पानी लेना बंद कर देंगे.’
अब तो शायद समझ में आ गया होगा कि ये मानसिक दिवालियापन किस कदर हमारे समाज में घर कर चुका है. हमारे इस समाज में एक दलित घोड़ी नहीं चढ़ सकता, उसे गोली मार दी जाएगी. एक दलित अपनी बेटी की शादी में मिनरल वाटर नहीं मंगा सकता, क्योंकि सवर्ण और दलित दोनों को ही पानी सप्लाई करने वाला सप्लायर एक ही है. अगर सप्लायर ने दलित के घर पानी दिया, तो कथित ऊंची जाति वालों की नाक कट जाएगी और वो उस सप्लायर से पानी नहीं लेंगे. खैर उस लड़की की शादी तो हो गई, लेकिन जख्म तो अपनी जगह पर कायम है. उसने कहा है,
'हमें पानी देने से सिर्फ इसलिए मना कर दिया क्योंकि हम दलित हैं. हम चाहते हैं कि जिन्होंने ये काम किया है उन्हें सख़्त से सख़्त सजा दी जाए. नहीं तो ये यही काम फिर किसी के साथ करेंगे.'
लड़की के परिवार ने कहा है कि हमने शिकायत दर्ज़ करा दी है. अगर फिर भी कुछ नहीं होता तो हम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास अपनी शिकायत लेकर जाएंगे. सरकार इस पर क्या फैसला लेगी पता नहीं, लेकिन इतना ज़रूर है कि अगर समाज ने और सरकार ने इस नाइंसाफी को दूर नहीं किया, तो जख्म है वो नासूर बन जाएगा और फिर इसका इलाज़ बेहद मुश्किल होगा. केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ ने फिटनेस चैलेंज की शुरुआत की है. अच्छी मंशा से ही की है. लेकिन जब इस समाज में ऐसी घटनाएं हो रही हैं, तो फिजिकल फिटनेस चैलेंज के साथ ही एक मेंटल फिटनेस चैलेंज की भी ज़रूरत बरकरार है. क्योंकि अगर देश मानसिक तौर पर स्वस्थ होता तो किसी दलित को घोड़ी चढ़ने या फिर पानी पीने से नहीं रोकता. लेकिन ऐसा हो रहा है. और लोग अब छुआछूत नहीं होता, ‘जाति अब मैटर नहीं करती, तो आरक्षण क्यों’, जैसी बातें बोलते-बोलते इन खबरों से मुंह फेरते नज़र आते हैं.
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