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किसके दम पर फुदक रहा पाकिस्तान? एक्सपर्ट ने चीन का नाम लेकर वो बताया जो अब तक नहीं सुना

पाकिस्तान और चीन का नाता पुराना है. भारत और पाकिस्तान के बीच झड़प के दौरान बार-बार इसका जिक्र होता है कि चीन सालों से पाकिस्तान की मदद करता है.लेकिन इस मदद का इतिहास कितना पुराना है? किस स्तर पर है? आज इसके बारे में जानेंगे.

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Pakistan China
पाकिस्तान-चीन की दोस्ती बहुत पुरानी है (India Today)
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राघवेंद्र शुक्ला
9 मई 2025 (Updated: 10 मई 2025, 09:32 PM IST) कॉमेंट्स
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भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष जारी है. इंडियन आर्मी और एयरफोर्स पाकिस्तानी हमले का मुंहतोड़ जवाब दे रही हैं. इस बीच ड्रोन, मिसाइल और फाइटर जेट्स को लेकर बार-बार ये जिक्र आ रहा है कि पाकिस्तान चीन के दम पर रिटेलिएट की कोशिश कर रहा है. पहले ऐसा समझा जाता था कि पाकिस्तान अमेरिका पर ज्यादा आश्रित है लेकिन अब ये जगह चीन ने ले ली है. सवाल है कि पाकिस्तानी सेना रसद, सामान और ट्रेनिंग के मामले में चीन पर कितना निर्भर है? चीन और पाकिस्तान के बीच साझेदारी किस स्तर की है? कितनी पुरानी है और इसका बैकग्राउंड क्या है?

हिंदुस्तान में चीन के बड़े विशेषज्ञों में से एक और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में सेंटर फॉर ईस्ट एशियन स्टडीज के प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली इस बारे में विस्तार से जानकारी दी है. लल्लनटॉप से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि 1962 के भारत-चीन के युद्ध के तीन-चार महीने बाद ही पाकिस्तान ने चीन के साथ एक टेरिटोरियल डिस्प्यूट सुलझाया था. इसमें पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले कश्मीर के कई इलाके चीन को दे दिए थे. जैसे, गिलगिट-बाल्टिस्तान में शिमशाल, शक्सगाम.

यह कुल मिलाकर कुछ 2000 वर्गमील का इलाका है जो पाकिस्तान के कब्जे में था, जिसे उन्होंने चीन को दे दिया. इसके बाद इस इलाके में कशगढ़ से इस्लामाबाद तक चीन ने एक सड़क बनाई. इसको ऑल वेदर रोड कहते हैं. इस सड़क के जरिए ही चीन और पाकिस्तान के बीच 'ऑल वेदर फ्रेंडशिप' भी तैयार हुई थी.

श्रीकांत कोंडापल्ली ने आगे बताया, “इसके बाद से हमने देखा कि 1960 से लेकर 1980 तक पाकिस्तानी आर्मी के एक तिहाई इक्विपमेंट चीन से आए. जो ‘अल खलीद मेन बैटल टैंक' पाकिस्तान के पास हैं, वो भी चीन की मदद से पाकिस्तान में तक्षशिला फैक्ट्री में बन रहे हैं." कोंडापल्ली ने बताया कि पाकिस्तान ने चीन से फ्रीगेट्स भी खरीदे. 

फ्रिगेट्स मिलिट्री शिप होती हैं, जो एंटी-सबमरीन वॉरफेयर को स्पेशलाइज करती हैं. उस पर एक डिस्ट्रॉयर (विनाशक) गन होती है, जो पानी में तैरते हुए कम से कम 13 या 15 किलोमीटर दूर तक फायर कर सकती है.

सबमरीन वाली दोस्ती

कोंडापल्ली ने बताया कि चीन ने पाकिस्तान को एक सबमरीन भी बेची था. ये यूएन क्लास सबमरीन थी. उन्होंने कहा, “पहली बार 1986 में उसने सबमरीन कराची में भिजवाई थी. इसके बाद 10 साल में करीब हर साल एक सबमरीन चीन से पाकिस्तान जाती थी. हालांकि, हमें ये नहीं पता कि ये सबमरीन पेट्रोलिंग पर्पज से जाते हैं, या फिर चीजों की सप्लाई के लिए. लेकिन अगर कोई सबमरीन हिंद महासागर में इस्तेमाल करता है तो इसका मतलब ये है कि व्यापार के खिलाफ भी उनकी कुछ तैयारी है.”

परमाणु बम बनाने में मदद

पाकिस्तान एक परमाणु शक्ति है. इसे बनाने में भी उसकी मदद चीन ने की थी. कोंडापल्ली के अनुसार, “चीन ने पाकिस्तान को एटम बम की तकनीक और उसके पार्ट्स भी सप्लाई किए थे. वह पूरी तरह से चीनी बम था क्योंकि 1980 के दशक में जब लोप नूर में चीन ने परमाणु परीक्षण किया था, तो उस समय पाकिस्तानी वैज्ञानिक वहां मौजूद थे. लोप नूर चीन के परमाणु परीक्षण का प्रमुख इलाका है, जो शिनजियांग प्रांत में स्थित है. लोप नूर में पाकिस्तानी वैज्ञानिकों को चीन ने एक मॉडल दिया था, जिसे उन्होंने पाकिस्तान जाकर दोहराया. 1973 से लेकर 1998 तक पाकिस्तान ने कई सारे न्यूक्लियर पावर प्लांट्स को कंस्ट्रक्ट किया.”

प्रोफेसर आगे कहते हैं, “जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी और न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत को न्यूक्लियर क्लीन चिट देने का प्रस्ताव रखा था, तब चीन ने शर्त रखी थी कि अगर इसके लिए चीन की मदद चाहिए तो पाकिस्तान को भी क्लीन चिट देनी होगी. कुल मिलाकर, बिना चीन की मदद के पाकिस्तान के पास परमाणु बम नहीं हो सकता था. उसने इंडिया को बैलेंस करने के लिए ये काम किया था.”

मिसाइल की टेक्नॉलजी भी दी

आर्मी-नेवी एयरफोर्स के इक्विपमेंट, परमाणु और बैलस्टिक मिसाइल्स एम9-एम11, ये सब भारत का पूरा इलाका कवर नहीं कर सकते तो चीन ने रावलपिंडी के पास फतेहगंज में एक फैक्ट्री बनवाई. यहां चीनी साइंटिस्ट ने पाकिस्तान की मदद की ताकि वो लॉन्गर रेंज के बैलस्टिक मिसाइल्स डेवलप कर सके. इस दौरान चीन ने सिर्फ मिसाइल्स ही नहीं बल्कि मिसाइल की टेक्नोलॉजी भी पाकिस्तान को ट्रांसफर की.

चीन ने चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के तहत Huawei कंपनी के 5G नेटवर्क स्थापित किए हैं. इसके साथ ही चीन ने 'Beidou' सीरीज के सैटेलाइट्स भी लॉन्च किए हैं, जिनमें GPS जैसी सुविधाएं मौजूद हैं. कोंडापल्ली ने बताया, "इन सैटेलाइट्स और 5G नेटवर्क का उपयोग सैटेलाइट इमेजरी और सैटेलाइट कम्युनिकेशन के ज़रिए आतंकवादी गतिविधियों में भी किया जा रहा है, जो हाल ही में पहलगाम में देखा गया है."

Huawei की तकनीक और चीन द्वारा स्थापित सैटेलाइट-कनेक्टेड इंफॉर्मेशन लिंक की मदद से संचार पाकिस्तान तक सीधे पहुंच रहा है, जिससे यह डिजिटल रूप से ट्रेस नहीं हो पा रहा है. इस वजह से आतंकवादियों की संचार व्यवस्था पकड़ से बाहर होती जा रही है.

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