CM को बम से उड़ाकर मारा, सुप्रीम कोर्ट से दया मांग रहा था, उसने फैसला दे दिया
बेअंत सिंह की हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआना का सुप्रीम कोर्ट में क्या हाल हुआ?

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की याचिका खारिज कर दी है (Supreme Court on Beant Singh Murder Case). उसने मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने के लिए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी. बुधवार, 3 मई को सुप्रीम कोर्ट ने बलवंत सिंह की सजा में रियायत देने से इनकार कर दिया. यानी उसकी मौत की सजा बरकरार है.
राजीव गांधी की तरह हुई थी हत्या31 अगस्त, 1995 को पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या हुई थी. हत्या का तरीका राजीव गांधी हत्याकांड से काफी मिलता था. बेअंत सिंह की हत्या का मास्टरमाइंड था खालिस्तान टाइगर फोर्स का कमांडर जगतार सिंह तारा. उसकी गिरफ़्तारी एक दूसरे केस के चलते 2005 में जाकर हो पाई.
घटना के दिन बेअंत सिंह पंजाब-हरियाणा सचिवालय के बाहर अपनी कार में मौजूद थे. तभी एक खालिस्तानी सुसाइड बॉम्बर वहां पहुंचा और अपनेआप को उड़ा लिया. इस घटना में मुख्यमंत्री समेत 18 लोगों की मौत हो गई. मानव बम बनकर धमाका करने वाले शख्स का नाम दिलावर सिंह था. वो पंजाब पुलिस का एक कर्मचारी था.
उस वक्त घटनास्थल के पास बलवंत सिंह राजोआना भी मौजूद था. उसे धमाके के तुरंत बाद गिरफ्तार किया गया था. बलवंत पर आरोप था कि उसे बैकअप के रूप में रखा गया था, कि अगर कहीं दिलावर से कोई चूक हुई या असली योजना में कोई दिक्कत आई तो भी बेअंत सिंह न बच पाएं.
दिलावर सिंह की तरह बलवंत सिंह भी पंजाब पुलिस का सिपाही था. हत्या में संलिप्तता के लिए राजोआना को जुलाई 2007 में मौत की सजा सुनाई गई थी. वो पिछले 26 साल से जेल में है. 2012 से राजोआना की दया याचिका सरकार के पास लंबित है.
बेअंत सिंह के बारे में भी जान लेंबेअंत सिंह कांग्रेस नेता था. 25 फ़रवरी, 1992 को वो पंजाब के मुख्यमंत्री बने थे. राजनीति में आने से पहले वो सेना में रहे. 23 वर्ष की उम्र में सेना में भर्ती हुए. वहां दो साल तक सेवाएं दीं. उसके बाद सामाजिक कार्य और राजनीति में आ गए. वो पांच बार पंजाब विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए. 1986 से 1995 तक पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे.
बेअंत सिंह को पंजाब में उग्वारद खत्म करने की कोशिशों के चलते याद किया जाता है. 1980 के दशक से शुरू हिंसक संघर्ष ने पंजाब के हालात बदतर कर दिए थे. ऐसे में बेअंत सिंह उग्रवाद का हिस्सा बने युवाओं को समझाने और उस हिंसक संघर्ष को कंट्रोल करने में काफी हद तक सफल रहे थे. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके सीएम बनने के बाद से अब तक पंजाब को एक बार भी राष्ट्रपति शासन की जरूरत नहीं पड़ी है, जबकि 1992 से पहले पंजाब में कई बार राष्ट्रपति शासन लगा था. उनकी हत्या खालिस्तानी मूवमेंट से जुड़ी आखिरी हाई प्रोफाइल हत्या मानी जाती है.
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