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जब तमाम प्रतिबंधों के बावजूद अमेरिका ने ईरान को बेचे मिसाइल, वजह- सद्दाम हुसैन!

40 साल पहले एक समय ऐसा भी था जब America और Israel ने मिलकर चुपचाप Iran को हथियार दिए थे. यह वो दौर था जब ईरान Saddam Hussein के Iraq इराक से खून-खराबे वाली जंग लड़ रहा था.

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अमेरिका ने ईरान को Hawk मिसाइलें सप्लाई की थीं. (US Army)
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मौ. जिशान
23 जून 2025 (Published: 09:47 PM IST) कॉमेंट्स
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इजरायल ने 23 जून को ईरान की फोर्डो न्यूक्लियर साइट के रास्तों पर एयर स्ट्राइक की. इससे एक दिन पहले 22 जून को अमेरिका ने B-2 बॉम्बर प्लेन से इस परमाणु ठिकाने पर हवाई हमला किया था. ईरान का यह अंडरग्राउंड प्लांट 80-90 मीटर जमीन के नीचे है, जहां यूरेनियम को हथियार-ग्रेड के लेवल तक समृद्ध किया जा सकता है. इतनी गहराई तक हमला केवल अमेरिका ही कर सकता था, क्योंकि इजरायल के पास ऐसी क्षमता नहीं थी.

लेकिन आज से ठीक 40 साल पहले एक समय ऐसा भी था जब अमेरिका और इजरायल ने मिलकर चुपचाप ईरान को ही हथियार दिए थे. यह वो दौर था जब ईरान सद्दाम हुसैन के नेतृत्व वाले इराक से जंग लड़ रहा था. 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद बनी नई ईरानी सरकार को अमेरिकी हथियारों की जरूरत थी, जो रजा शाह पहलवी के जमाने में खरीदे गए थे.

शाह के हटते ही अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए, फंड फ्रीज कर दिए और कोई भी सैन्य मदद रोक दी. लेकिन जंग के मैदान में जूझ रहा ईरान हथियारों की तलाश में था. इसी बीच इजरायल और अमेरिका ने सीक्रेट डील की, जिसे 'ईरान-कॉन्ट्रा स्कैंडल' के नाम से जाना गया.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, इस डील में इजरायल ने 1981 से 1982 के बीच ईरान को स्पेयर पार्ट्स, मिसाइल, फाइटर जेट्स के टायर और ब्रेक जैसे सामान भेजे. इजरायल ने भुगतान के लिए कथित तौर पर स्विस बैंकों में सीक्रेट अकाउंट खोले.

इजरायल का मानना ​​था कि संकट के समय ईरान को हथियारों की आपूर्ति उसे ईरानी सेना के करीब ले जाएगी, जिसके नेता एक उदारवादी गुट से थे. इजरायल को उम्मीद थी कि ये लोग खोमैनी के शासन को उखाड़ फेंकेंगे या उनकी मौत के बाद सत्ता पर कब्जा कर लेंगे. इजरायल, ईरानी सेना को पश्चिम विरोधी ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड से अलग देखता था.

अमेरिका भी इस नेटवर्क में शामिल हो गया. ईरान से डील का पहला मकसद था अमेरिका के उन बंधकों की रिहाई कराना, जिन्हें हिज्बुल्लाह ने 1985 में TWA फ्लाइट हाईजैक के दौरान पकड़ा था. दूसरा मकसद था नकारागुआ में कॉन्ट्रा विद्रोहियों की मदद के लिए ईरान से मिले पैसे का इस्तेमाल करना.

1985 में जब हिज्बुल्लाह ने अमेरिकी फ्लाइट हाईजैक की और एक अमेरिकी नौसैनिक की हत्या कर दी, तो वाइट हाउस पर दबाव बढ़ा. तभी यह गुप्त हथियार डील और तेज हुई.

अमेरिका के सरकारी ब्रॉडकास्टर PBS ने ईरान को 1500 से ज्यादा हथियार भेजने का खुलासा किया था. ईरान को 2008 TOW एंटी-टैंक मिसाइल और HAWK एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम के स्पेयर पार्ट्स दिए गए. इनसे ईरान ने इराक के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत की, खासकर टैंक और हवाई हमलों को रोकने में इन हथियारों ने अहम भूमिका निभाई.

सद्दाम हुसैन को डर था कि शिया बहुल ईरान उनकी सत्ता के लिए खतरा बन सकता है. इसलिए उन्होंने 1980 में ईरान पर हमला कर दिया. लेकिन इस लड़ाई में अमेरिका का हथियार ईरान के ही काम आ गया. यह एक ऐसी सच्चाई है जो इतिहास के पन्नों में दबी रह गई.

जब इस सीक्रेट डील से पर्दा उठा तो उस समय के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने पहले इसे सही ठहराया, लेकिन फिर पलट गए. जांच में सामने आया कि करीब 10.5 मिलियन डॉलर की रकम नकारागुआ के विद्रोहियों को भेजी गई थी, जो अमेरिकी कानून के खिलाफ था.

ईरान-कॉन्ट्रा कांड ना सिर्फ रीगन प्रशासन के लिए शर्मनाक था, बल्कि इसने यह भी दिखाया कि जब राजनीति और रणनीति का खेल चलता है, तो दुश्मन को भी दोस्त बनाया जा सकता है. बस जरूरत होती है गुप्त समझौतों और मजबूत इरादों की.

वीडियो: ईरान पर हुए हमले के विरोध में अमेरिकी नागरिकों ने किया एंटी-वॉर प्रोटेस्ट

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