"सेना को लगा था झटका"- अग्निपथ योजना पर जनरल नरवणे ने अंदर की क्या कहानी सुनाई?
भारतीय सेना के प्रमुख रहे जनरल मनोज मुकुंद नरवणे की नई किताब 'फॉर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी' आई है. इसमें उन्होंने अग्निपथ योजना के शुरू होने की पूरी कहानी बताई है.
भारतीय सेना के प्रमुख रहे जनरल मनोज मुकुंद नरवणे (M M Naravane) ने अग्निपथ योजना (Agneepath Scheme) के बारे में कई बातों का जिक्र किया है. उन्होंने अपने संस्मरण 'फॉर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी' में इस योजना के शुरू होने की कहानी बताई है. जनरल नरवणे ने बताया कि उनके प्रमुख बनने के कुछ हफ्तों बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी एक बैठक हुई थी.
समाचार एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 की शुरुआत में हुई इस बैठक में उन्हें एक ऐसी योजना के बारे में पता चला था. इसमें कम समय के कार्यकाल के लिए सैनिकों को सेना में भर्ती करने की बात कही गई थी. तब इस योजना को 'टूर ऑफ ड्यूटी' कहा गया. लेकिन कुछ महीने बाद ही PMO ने भारत की तीनों सेनाओं (थल सेना, नौसेना और वायु सेना) में ऐसी भर्ती के लिए एक योजना की घोषणा की. इस बार इसे अग्निपथ योजना कहा गया और इसके तहत नियुक्त होने वाले जवानों को अग्निवीर कहा गया.
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एम एम नरवणे ने 31 दिसंबर 2019 से 30 अप्रैल 2022 तक सेना के प्रमुख के तौर पर काम किया. उन्होंने अपने संस्मरण में बताया कि अग्निपथ योजना के लिए कई मॉडलों पर विचार किया गया था. सेना का शुरुआती विचार ये था कि इस योजना के तहत भर्ती किए जाने वाले 75% कर्मचारियों को सेना में ही नौकरी करते रहना चाहिए. वहीं, 25% कर्मचारियों को अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद निकाल दिया जाना चाहिए.
क्यों शुरू हुई अग्निपथ योजना?केंद्र सरकार ने जून 2022 में सेना की तीन सेवाओं के लिए अग्निपथ योजना की शुरुआत की. सरकार का लक्ष्य इसके जरिए तीनों सेनाओं में सेवी की औसत उम्र कम करना था. इस योजना के तहत 17 से 21 साल के युवकों को 4 सालों के लिए सेना में भर्ती करने का प्रावधान है. इनमें से 25 प्रतिशत कर्मचारियों की नौकरी को अगले 15 साल के लिए बढ़ाया जा सकता है.
नरवणे ने कहा कि अग्निपथ योजना की घोषणा थल सेना के लिए हैरान करने वाली थी. लेकिन नौसेना और वायु सेना के लिए तो ये सूचना एक झटके की तरह आई.
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अपने संस्मरण में सेना प्रमुख रहे नरवणे ने ये भी बताया कि शुरुआत में अग्निवीरों के लिए पहले साल की सैलरी 20 हजार रुपये प्रतिमाह तय की गई थी. इसमें उन्हें अलग से कोई और भुगतान देने का प्रावधान नहीं था. लेकिन इसे स्वीकार करना नामुमकिन था. नरवणे ने इस बारे में लिखा,
"ये बिल्कुल स्वीकार करने लायक नहीं था. यहां हम एक प्रशिक्षित सैनिक की बात कर रहे थे. उससे उम्मीद की जाती है कि वो देश के लिए अपनी जान दे दे. साफ है कि सैनिकों की तुलना दिहाड़ी मजदूरों से नहीं की जा सकती. हमारी मजबूत सिफारिशों के बाद, उनकी सैलरी को बढ़ाकर 30 हजार रुपये प्रतिमाह किया गया."
इस योजना के सामने आने के बाद इसे लेकर भारी विरोध भी हुआ था. भारत के कई हिस्सों में इसे वापस लेने की मांग को लेकर हिंसक विरोध प्रदर्शन भी हुए.
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