70 साल के एक्टिविस्ट गौतम नवलखा को जेल में नहीं दिया चश्मा, कोर्ट ने अफसरों की क्लास लगा दी
यलगार परिषद मामले में तालोजा जेल में बंद हैं नवलखा
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एक्टिविस्ट गौतम नवलखा भीमा-कोरोगांव मामले में तालोजा जेल में बंद हैं. उनका चश्मा चोरी हो गया है. बाहर से भिजवाया तो रिसीव नहीं किया.
चश्मे की बात पर जेल के अधिकारी क्या कह रहे?
हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक, तालोजा जेल के एक अधिकारी ने दावा किया कि उन्होंने नवलखा को नया चश्मा देने का ऑफर किया था. अधिकारी ने कहा,
जब नवलखा ने हमें चश्मा चोरी होने के बारे में बताया तो हमने उन्हें अपने सामान की देखरेख करने को कहा. हमने उनके चश्मे को लेकर जानकारी भी मांगी, ताकि नए चश्मे की व्यवस्था की जा सके. हमने उनसे कहा कि वो अपने परिवार को बताएं कि पार्सल निजी तौर पर डिलीवर करें. हमें उसके बाद उनसे कोई जवाब नहीं मिला. इसके बाद हमें एक कोरियर मिला, जो हमने सुरक्षा कारणों से नहीं लिया.हाई कोर्ट ने कहा, जेल अथॉरिटी की वर्कशॉप कराओ
एलगार परिषद के दो आरोपियों रमेश और सागर गोरखे की बेल याचिका पर सुनवाई के दौरान गौतम नवलखा के चश्मे का भी मामला उठा. इस दौरान नवलखा के परिवार ने जेल में उनके लिए जब नया चश्मा भेजा तो उसे जेल अथॉरिटी ने स्वीकार नहीं किया. ये सब फैसले मानवीय आधार पर होने चाहिए. जेल अथॉरिटीज को कैदियों पर मानवता दिखानी चाहिए. इसके लिए उनकी वर्कशॉप कराने की जरूरत है.
स्टेन स्वामी को नहीं मिला था सिपर इससे पहले, भीमा कोरेगांव केस में गिरफ्तार झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता स्टैन स्वामी ने पर्किंसन बीमारी का हवाला देते हुए कहा था कि उनके हाथ कांपते हैं. वो ठीक से पानी तक नहीं पी पाते. ऐसे में उन्हें स्ट्रा और सिपर मुहैया कराया जाना चाहिए. इस पर NIA ने जवाब देने के लिए 20 दिन का समय मांगा था. 20 दिन बाद जवाब में NIA ने कहा था कि उनके पास स्वामी के लिए स्ट्रॉ और सिपर नहीं हैं. देश की प्रीमियर जांच एजेंसी के इस जवाब के बाद लोगों ने जेल के पते पर सिपर ऑर्डर करने शुरू कर दिए थे. NIA ने 8 अक्टूबर को स्टेन स्वामी को उनके रांची स्थित घर से गिरफ्तार किया था.

झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता स्टैन स्वामी को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में अरेस्ट किया गया है. (फोटो- Social Media)
क्या है भीमा-कोरेगांव का मामला महाराष्ट्र में पुणे के भीमा कोरेगांव में 1 जनवरी, 2018 को दलित समुदाय के लोगों का एक कार्यक्रम हुआ था. इस दौरान हिंसा हुई. भीड़ ने तमाम वाहन जला दिए थे. दुकानों-मकानों में तोड़फोड़ की गई थी. हिंसा में एक शख्स की मौत हुई, कई लोग जख्मी हो गए. इल्ज़ाम लगा कि महाराष्ट्र की अगड़ी जातियों के लोगों ने जलसे पर हमला किया. इसके बाद पुणे और आसपास के इलाकों में दलित गुटों के प्रदर्शन, हुए जिस दौरान हिंसा हुई.
पुलिस ने मामले की जांच शुरू की. पुलिस की थ्योरी थी कि 1 जनवरी, 2018 से शुरू हुई हिंसा पूरी प्लानिंग के साथ की गई थी. इसके तहत भीमा कोरेगांव में 31 दिसंबर, 2017 को यलगार परिषद की एक बैठक हुई. इसी बैठक में दिए भाषणों के चलते हिंसा हुई. परिषद से संबंध के आरोप में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया.

भीमा कोरेगांव मामले में आठ लोगों के खिलाफ मुंबई की अदालत में एनआईए ने चार्जशीट दायर की थी. (फाइल फोटो- भीमा कोरेगांव. 1 जनवरी, 2018, PTI)
पुणे पुलिस ने दो साल इस मामले की जांच की. इसके बाद इसी साल जनवरी में केस एनआईए को सौंप दिया गया. मामले में आनंद तेतुंबड़े, गौतम नवलखा, हैनी बाबू, सागर गोरखे, रमेश, ज्योतिजगताप, स्टैन स्वामी और मिलिंद तेलतुंबे को आरोपी बनाया गया है. एनआईए का दावा है कि आरोपियों के लैपटॉप और कम्प्यूटर से लेटर और अन्य डॉक्यूमेंट मिले, जिससे पता चलता है कि उनका संबंध बैन किए गए ग्रुप से है. इनके माओवादियों से भी लिंक हैं. आरोपी इससे इनकार करते रहे हैं.