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OBC Reservation: जस्टिस रोहिणी आयोग का कार्यकाल बिन मांगे क्यों बढ़ गया?

जस्टिस रोहिणी आयोग को ये पता लगाने के लिए बनाया गया था कि OBC जातियों और समुदायों के बीच आरक्षण का लाभ पहुंचने में किस हद तक असमानता है. इसकी रिपोर्ट जमा करने की पहली समयसीमा 2 जनवरी, 2018 थी.

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Justice (Retd) G Rohini
जस्टिस (रिटायर्ड) जी रोहिणी (फोटो-आजतक)
7 जुलाई 2022 (Updated: 7 जुलाई 2022, 21:21 IST)
Updated: 7 जुलाई 2022 21:21 IST
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केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार, 6 जुलाई को जस्टिस रोहिणी आयोग (Justice Rohini Commission) को अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए 31 जनवरी, 2023 तक का समय दे दिया. ये 13वीं बार है जब आयोग का कार्यकाल आगे बढ़ाया गया है. हालांकि आयोग ने इसकी मांग नहीं की थी. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग एक महीने पहले ही न्याय और अधिकारिता सचिव सुब्रमण्यम ने बताया था कि आयोग ने और विस्तार नहीं मांगा है. उन्होंने कहा था कि जुलाई के एंड तक आयोग अपनी रिपोर्ट सौंपेगा, तब उसका मौजूदा कार्यकाल खत्म हो जाएगा.

हालांकि अब सरकार ने आयोग का कार्यकाल बढ़ा दिया है. अखबार के मुताबिक सूत्रों ने बताया कि केंद्र सरकार का ये कदम बीजेपी के एक डर को दिखाता है. उन्होंने कहा कि पार्टी को डर है कि आयोग की रिपोर्ट से उसे राजनीतिक नुकसान हो सकता है. ओबीसी वोटबैंक का समर्थन बरकरार रखने की उसकी कोशिशें बेकार हो सकती हैं. इसके अलावा आयोग की समयसीमा ऐसे वक्त में बढ़ाई गई है जब देश में जातिगत जनगणना कराने की मांग फिर जोर पकड़ रही है. विपक्ष के साथ बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए के घटक दल भी जातिगत जनगणना की मांग करते रहे हैं.

जस्टिस रोहिणी आयोग का गठन 2 अक्टूबर, 2017 को संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत किया गया था. इस आयोग को ओबीसी के उप-वर्गीकरण (Sub Categorisation) और उनके लिए आरक्षित लाभों के समान रूप से बांटने का काम सौंपा गया था. सबसे पहले इसकी रिपोर्ट जमा करने की समय सीमा 12 हफ्ते थी. यानी 2 जनवरी, 2018 तक. लेकिन तब से इसे कई बार सेवा विस्तार दिया गया है.

13वीं बार क्यों मिला कार्यकाल विस्तार?

रिपोर्ट के मुताबिक 13वीं बार विस्तार को इसलिए जरूरी माना जा रहा है क्योंकि इस वक्त जाति जनगणना की मांग तेजी से बढ़ रही है. विपक्षी दलों की तरफ से भी और NDA में भाजपा के सहयोगियों से भी.

ओबीसी समुदाय से भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने अखबार से कहा-

सरकार ने 2017 में अचानक ही आयोग की घोषणा की. ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी ने खुद देखा कि आरक्षण का लाभ चुनिंदा मामलों में लोगों को मिल रहा है. अब बीजेपी को ठोस ओबीसी समर्थन हासिल है. ऐसे में उन्हें उप-वर्गीकृत करना अच्छा नहीं होगा. मुझे नहीं लगता कि ये रिपोर्ट कभी तैयार हो पाएगी.

वहीं आयोग के एक सदस्य ने जानकारी देते हुए बताया-

हम रिपोर्ट और सिफारिशों के साथ तैयार हैं, लेकिन हम इसे जमा करने से पहले राज्यों से फीडबैक चाहते हैं. हम राज्यों का दौरा करना चाहते हैं और जमीनी स्थिति देखना चाहते हैं. महामारी की वजह से प्रक्रिया में देरी हुई और पिछले छह महीनों में हमने किसी भी राज्य का दौरा नहीं किया है. राज्यों के साथ परामर्श एक बड़ी कवायद है और इसमें समय लगेगा.

वहीं सूत्रों के मुताबिक संभावित राजनीतिक प्रतिक्रिया के मद्देनजर आयोग और सरकार दोनों को उप-वर्गीकरण की प्रक्रिया से सतर्क रहना पड़ा है. 

देखें वीडियो- ओबीसी कमीशन क्या है, इसे संवैधानिक दर्जा मिलने से क्या होगा?

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