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केंद्र का ये फैसला चंडीगढ़ के कर्मचारियों की बल्ले-बल्ले करेगा तो विरोधी बवाल क्यों कर रहे?

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 27 मार्च को चंडीगढ़ में बड़ा ऐलान किया था.

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Amit Shah Bhagwant Mann
29 मार्च 2022 (Updated: 29 मार्च 2022, 16:51 IST)
Updated: 29 मार्च 2022 16:51 IST
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दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) और केंद्र के बीच का टकराव तो जगजाहिर है, लेकिन अब पंजाब में भी इसकी शुरुआत हो गई है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की एक घोषणा के चलते राज्य में AAP और मोदी सरकार एक दूसरे के आमने-सामने आ गए हैं. दरअसल अमित शाह ने कहा है कि केंद्रीय सेवा नियम अब केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ पर भी लागू होंगे. उन्होंने दावा किया है कि इससे कर्मचारियों को काफी लाभ मिलेगा. हालांकि इस कदम का न सिर्फ AAP, बल्कि अकाली दल और कांग्रेस ने भी विरोध किया है. अमित शाह की इस घोषणा को केंद्र की पंजाब सरकार में हस्तक्षेप करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. आलम ये है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान ने संसद से सड़क तक इसके खिलाफ प्रदर्शन करने की चेतावनी दी है. क्या है मामला? केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बीते रविवार, 27 मार्च को चंडीगढ़ में ऐलान किया कि केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ के सेवा नियमों में बदलाव किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि अब केंद्र के सेवा नियम चंडीगढ़ के कर्मचारियों पर लागू होंगे. शाह ने दलील दी कि इससे 'बड़े स्तर' पर कर्मचारियों को लाभ मिलेगा. उन्होंने ये भी बताया कि एक अप्रैल से बदले हुए सेवा नियम लागू हो जाएंगे. इन नियमों के लागू होने के बाद से चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों की रिटायरमेंट उम्र 58 साल से बढ़कर 60 साल हो जाएगी. शाह ने कहा कि इसके साथ ही महिला कर्मचारियों को दो साल के लिए मातृ अवकाश मिलेगा, जो कि पहले एक साल था. हालांकि केंद्र सरकार ने ये कदम अचानक से नहीं उठाया है. पिछले 20-25 सालों से मांग हो रही थी कि चंडीगढ़ कर्मचारियों के लिए केंद्रीय सेवा नियमों को लागू किया जाना चाहिए. विरोध क्यों हो रहा है? पंजाब में पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है. विधानसभा चुनाव से पहले चंडीगढ़ नगर निगम के चुनाव में भी पार्टी को नुकसान झेलना पड़ा था. दिसंबर 2021 में हुए इस चुनाव में बीजेपी को 35 में से सिर्फ 12 सीटें ही मिली थीं. जबकि AAP को 14 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और आठ सीटें जीत कर कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही थी. विपक्षी दलों का कहना है कि केंद्रशासित प्रदेश में जनाधार खोने के चलते मोदी सरकार इन नियमों को लागू करके प्रशासन में अपनी पकड़ बनाना चाह रही है. इसके अलावा केंद्र सरकार पर ये भी आरोप लग रहा है कि साल 2024 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी कर्मचारियों को खुश करना चाह रही है. पहले भी लग चुके हैं आरोप ये पहला मौका नहीं है जब केंद्र सरकार पर पंजाब के कामकाज में हस्तक्षेप करने और नियंत्रण की कोशिश के आरोप लगे हैं. इससे पहले भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (बीबीएमबी) के शीर्ष अधिकारी की नियुक्ति के संबंध में नियम बदलने को लेकर विवाद खड़ा हो गया गया था. इसे लेकर पंजाब और हरियाणा के तमाम राजनीतिक दलों ने केंद्र की आलोचना की थी. पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत बीबीएमबी एक कानूनी संस्था है, जो सतलुज और ब्यास नदियों के जल संसाधनों का प्रबंधन करता है. इसमें एक चेयरमैन और दो सदस्य होते हैं, जो कि विद्युत और सिंचाई विभाग के होते हैं. राजनीतिक दलों ने दावा किया है कि बीबीएमबी नियम, 1974 के मुताबिक विद्युत विभाग का सदस्य पंजाब से होना चाहिए और सिंचाई विभाग का सदस्य हरियाणा से होना चाहिए. हालांकि इन शर्तों को अब संशोधित नियमों में से हटा दिया गया है. इसके अलावा केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ के पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) के पोस्ट को DANIPS (दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप, लक्षद्वीप, दमन और दीव तथा दादर और नागर हवेली) कैडर में शामिल करने के लिए एक नोटिफिकेशन जारी किया था. हालांकि विरोध प्रदर्शन के बाद उसे अपना ये फैसला वापस लेना पड़ा था. आरोप-प्रत्यारोप इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक वरिष्ठ नेता और पूर्व चंडीगढ़ सांसद सत्यपाल जैन ने दावा किया है कि कर्मचारियों के वेतन को लेकर पंजाब सरकार को कई सुझाव पेश किए गए थे, लेकिन उसने उन्हें स्वीकार नहीं किया. अब केंद्र सरकार ने अगर इन प्रस्तावों को स्वीकार किया है तो उसमें क्या दिक्कत है. सत्यपाल जैन के मुताबिक ये चंडीगढ़ के कर्मचारियों के लिए और अधिक लाभकारी ही होगा. उन्होंने कहा,
'जब वे हमारे (केंद्र) कर्मचारी हैं तो इससे पंजाब पर क्या प्रभाव पड़ेगा? हम लोग लंबे समय से प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के साथ इस मामले को उठा रहे थे. ये निर्णय किसी राज्य के खिलाफ नहीं है.'
हालांकि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने अमित शाह की घोषणा की कड़ी आलोचना की है. मान ने एक ट्वीट में कहा,
'केंद्र सरकार चरणबद्ध तरीके से अन्य राज्यों के अधिकारियों और कर्मचारियों की चंडीगढ़ प्रशासन में नियुक्ति कर रही है. ये पंजाब पुनर्गठन कानून, 1966 की भावना और प्रावधानों के बिल्कुल विपरीत है. पंजाब चंडीगढ़ पर अपने हक के दावे के लिए मजबूती से लड़ेगा.'
वहीं वित्त मंत्री चीमा ने कहा है कि आम आदमी पार्टी इस कदम का पुरजोर विरोध करेगी और सड़क से संसद तक लड़ाई लड़ेगी. उन्होंने कहा कि केंद्र की बीजेपी सरकार पंजाब विरोधी फैसले ले रही है. उन्होंने बीबीएमबी मामले का भी हवाला दिया और कहा कि केंद्र सरकार अब चंडीगढ़ पर भी पंजाब के अधिकार को छीन रही है. चीमा ने कहा कि जब से पंजाब में AAP ने सरकार बनाई है, बीजेपी उनकी सरकार हितैषी नीतियों से डर रही है. राज्य के वित्त मंत्री ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ को लेकर एकतरफा फैसला लिया और एक एक महत्वपूर्ण स्टेकहोल्डर के रूप में राज्य सरकार से कोई विचार विमर्श नहीं किया. दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी आरोप लगाया है कि अमित शाह ने उस समय ये सब नहीं किया था जब कांग्रेस सत्ता में थी, लेकिन AAP की सरकार बनते ही वे ये सब करने लगे हैं. अन्य दलों की बात करें तो शिरोमणी अकाली दल सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने भी इसका विरोध किया है. उन्होंने कहा है,
'केंद्र सरकार चंडीगढ़ पर पंजाब के अधिकारों को छीनना चाहती है.'
इसके अलावा सुखपाल सिंह खैरा और अमरिंदर सिंह राजा वारिंग सहित कई कांग्रेस नेताओं ने भी इस फैसले की निंदा की है. उधर बीजेपी के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार ने अब तक अमित शाह के इस ऐलान पर चुप्पी साध रखी है. क्या कहता है पंजाब पुनर्गठन अधिनियम? पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के मुताबिक चंडीगढ़ पर केंद्र सरकार का शासन होगा, लेकिन अविभाजित पंजाब के कानून ही इस केंद्रशासित प्रदेश में लागू होंगे. शुरुआत में चंडीगढ़ का शीर्ष अधिकारी एक चीफ कमिश्नर होता था, जो कि केंद्रीय गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करता था. बाद में एजीएयूटी (अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम और केंद्रशासित प्रदेशों) कैडर के अधिकारियों की यहां नियुक्ति होने लगी थी. साल 1984 में पंजाब गवर्नर को शहर का प्रशासक बनाया गया था. उस समय राज्य आतंकवाद से जूझ रहा था. अब, 'प्रशासक का सलाहकार' का पद एजीएमयूटी कैडर के आईएएस अधिकारियों को दे दिया गया है.

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