त्योहारों के मौसम में घर से दूर काम के बीच, अक्सर घर के त्योहार याद आते हैं.आंखों के सामने तैर जाती हैं वो सारी पुरानी यादें, जो गांव-घर के आंगन में बसीहैं. बाबा-दादी के किस्से, मम्मी की कहानियां. नानी का वो घर जो नानी के जाने केबाद नानी का घर नहीं रहता. गांव-घर के ऐसे ढ़ेरों किस्से जो शहर की भाग दौड़ के बीचकहीं पीछे छूट गए. देखिए, सौरभ द्विवेदी और गिरिजा ओक के साथ ‘घर जैसी बातें.’