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ज़ाकिर नाइक क़तर पहुंचा, भारत में क्या मांग होने लगी?

क़तर वर्ल्ड कप में इतना बवाल क्यों?

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क़तर वर्ल्ड कप में इतना बवाल क्यों?
क़तर वर्ल्ड कप में इतना बवाल क्यों?
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साजिद खान
22 नवंबर 2022 (Updated: 22 नवंबर 2022, 08:53 PM IST) कॉमेंट्स
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दुनिया के सबसे बड़े खेल आयोजनों में से एक फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप राजनैतिक विवादों का अड्डा बन चुका है. 20 नवंबर को क़तर में शुरू हुए वर्ल्ड कप का आज तीसरा दिन है. पहले तीन दिनों में पांच बड़े विवाद हो चुके हैं,

- नंबर एक. क़तर ने भारत के भगोड़े ज़ाकिर नाइक को मेहमान बनाकर बुलाया. भारत में पूरे दिन ट्विटर पर हैशटैग बायकॉट क़तर 2022 ट्रेंड होता रहा.

- नंबर दो. ईरानी टीम ने मैच से पहले नेशनल एंथम गाने से मना कर दिया. उन्होंने ईरान में चल रहे हिजाब-विरोधी प्रोटेस्ट को समर्थन दिया.

- नंबर तीन. इंग्लैंड की टीम ने ईरान के ख़िलाफ़ मैच से पहले घुटने टेक कर ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ को सपोर्ट किया. आरोप लगे कि इंग्लैंड खेलों का राजनैतिकरण कर रही है.

- नंबर चार. वर्ल्ड कप शुरू होने से 48 घंटे पहले अल्कोहल पर बैन लगा. इसको लेकर कई जगहों पर प्रोटेस्ट की ख़बर है. कहा ये जा रहा है कि ये स्पोर्ट्स इवेंट से ज़्यादा धार्मिक जमावड़ा बनता जा रहा है.

आज जानेंगे 

- क़तर वर्ल्ड कप में इतना बवाल क्यों?

- और, फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप में राजनैतिक प्रोटेस्ट का इतिहास क्या रहा है?

19 नवंबर को अल अरबिया न्यूज़ में एक रिपोर्ट पब्लिश हुई. इसमें दावा किया गया कि क़तर ने इस्लामी प्रचारक जाकिर नाइक को अपने यहां आमंत्रित किया है. रिपोर्ट के अनुसार, ज़ाकिर नाइक क़तर की राजधानी दोहा पहुंच चुका है. वो टूर्नामेंट के दौरान कई धार्मिक आयोजनों में भाषण देगा. अभी ये साफ़ नहीं है कि इन आयोजनों का फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप से कोई संबंध है भी या नहीं. क़तर की तरफ़ से इसपर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.

ज़ाकिर नाइक के क़तर पहुंचने के बीच भारत में इसका ज़बरदस्त विरोध शुरू हो गया. सोशल मीडिया पर क़तर में चल रहे वर्ल्ड कप को बायकॉट करने की मांग शुरू हुई. लोगों ने लिखा कि जिस तरह नुपूर शर्मा के मामले में क़तर ने भारत के राजदूत को समन भेजा था, उसी तरह भारत को भी क़तर के राजदूत को बुलाना चाहिए. और, उनसे जवाब मांगना चाहिए.

ज़ाकिर नाइक पर इतना बवाल क्यों?

- ज़ाकिर नाइक पेशे से एक डॉक्टर है. बाद में वो इस्लामिक प्रचारक बन गया. वो असली इस्लाम की शिक्षा बांचने का दावा करता है.

- ज़ाकिर नाइक, अहमद दीदात से प्रभावित था. अहमद सूरत में पैदा हुए थे. बाद में उनका परिवार साउथ अफ़्रीका में बस गया. दीदात पर आतंकियों से संबंध रखने के आरोप लगते थे. उनके ओसामा बिन लादेन के परिवार से भी अच्छे रिश्ते थे. रिपोर्ट्स ये भी हैं कि अहमद दीदात का एक संगठन लादेन के पैसों से चलता था. उन्होंने अपने एक दोस्त के साथ डरबन में इस्लामिक प्रोपैगेशन सेंटर इंटरनैशनल (IPCI) की नींव रखी थी. इसकी इमारत को एक समय तक बिन लादेन सेंटर के नाम से जाना जाता था.

- ज़ाकिर नाइक ने इस्लामिक रिसर्च फ़ाउंडेशन (IRF) की स्थापना की थी. 2016 से ये संगठन भारत में प्रतिबंधित है. 2021 में बैन को पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया.

- उसका अपना टीवी नेटवर्क है. पीस टीवी के नाम से. इसको भारत, कनाडा, बांग्लादेश, श्रीलंका और यूके ने बैन किया हुआ है. बैन के बावजूद उसके वीडियोज़ सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स के ज़रिए लोगों तक पहुंचते रहते हैं.

- 2016 में ढाका की मशहूर होली आर्टिसन बेकरी में बम धमाका हुआ था. इसमें 20 लोग मारे गए थे. 2019 में ईस्टर के दिन श्रीलंका में सीरियल बॉम्ब ब्लास्ट हुए. इसमें 250 से अधिक लोगों की जान चली गई थी. दोनों आतंकी हमलों में शामिल लोग ज़ाकिर नाइक के भाषणों से प्रभावित थे.

- 2016 में नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ने ज़ाकिर के ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की. उस समय वो मलेशिया में था. वो जांच में हिस्सा लेने भारत नहीं लौटा.
NIA ने उसके ख़िलाफ़ इंटरपोल का रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने की कोशिश भी की. इंटरपोल ने सबूतों की कमी के चलते मांग को ठुकरा दिया.

- भारत ने ज़ाकिर नाइक को हेट स्पीच, ज़बरन धर्म-परिवर्तन और आतंकी घटनाओं में संलिप्तता के आरोप में भगोड़ा घोषित कर रखा है.

- मई 2020 में भारत ने मलेशिया सरकार को आधिकारिक आवेदन भेजा. इसमें ज़ाकिर नाइक के प्रत्यर्पण की अपील की गई थी. लेकिन मलेशिया सरकार ने उसको भारत भेजने से मना कर दिया.

ज़ाकिर नाइक के क़तर पहुंचने पर भारत ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है. अगर कोई बयान आता है तो हम उसकी अपडेट आप तक ज़रूर पहुंचाएंगे.

अब अगली घटना की तरफ़ बढ़ते हैं.

21 नवंबर को ग्रुप बी में ईरान और इंग्लैंड का मुक़ाबला हुआ. इस मैच को इंग्लैंड ने 6-2 के अंतर से अपने नाम किया. लेकिन ये मैच नतीजे से ज़्यादा दो प्रोटेस्ट के लिए सुर्खियों में रहा.
मैच शुरू होने से पहले दोनों टीमों का नेशनल एंथम बजाया गया. खिलाड़ियों द्वारा नेशनल एंथम गाने की परंपरा रही है. इंग्लैंड ने तो परंपरा का पालन किया, मगर ईरानी खिलाड़ियों ने चुप्पी साध ली. उन्होंने नेशनल एंथम नहीं गाया. इस दौरान स्टेडियम में मौजूद ईरानी दर्शकों ने भी उनका समर्थन किया. कुछ ने एंथम की हूटिंग भी की. वे 1979 से पहले वाला राष्ट्रगान गाते नज़र आए. कुछ दर्शक अपने साथ इस्लामिक क्रांति से पहले वाला ईरानी झंडा भी लेकर आए थे.

ये सारी हरकत ईरान में चल रहे हिजाब-विरोधी प्रोटेस्ट को सपोर्ट करने के लिए की गई थी. ईरान में सितंबर 2022 में महसा अमीनी नाम की एक लड़की की पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी. इसके बाद से जनता सड़कों पर उतरी हुई है. अलग-अलग धड़े के लोग अपने-अपने तरीके से प्रोटेस्ट को समर्थन दे रहे हैं. ईरान की सरकार उन्हें कुचलने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है. ईरान की फ़ुटबॉल टीम के मेनेजर ने वर्ल्ड कप से पहले कहा था कि खिलाड़ियों को प्रोटेस्ट की इजाज़त नहीं होगी. खिलाड़ियों ने चुप्पी को अपना हथियार बना लिया.

इसी मैच में इंग्लैंड की टीम ने घुटने टेक कर ब्लैक लाइव्स मैटर को सपोर्ट किया. इससे पहले इंग्लैंड के खिलाड़ी वन लव आर्म्स बैंड पहनकर मैदान में उतरने की बात कर रहे थे. ये बैंड सामूहिकता को प्रदर्शित करता है. इसे समलैंगिक संबंधों के समर्थन के तौर पर भी देखा जाता है. क़तर में समलैंगिक संबंधों की इजाज़त नहीं है. इसके लिए सात साल की क़ैद से लेकर मौत की सज़ा तक का प्रावधान है. फ़ीफ़ा ने ये वजह तो नहीं बताई, लेकिन उन्होंने मैच से पहले ही वन लव आर्म्स बैंड पर बैन लगाने का ऐलान किया. फ़ीफ़ा ने कहा कि ये बैंड पहनने वालों को तुरंत येलो कार्ड दिखा दिया जाएगा. इसके बाद इंग्लैंड और वेल्स की टीमों ने वन लव वाली पट्टी पहनने का फ़ैसला छोड़ दिया.

ये तो हुई खिलाड़ियों की बात. वर्ल्ड कप देखने आए दर्शक भी मेज़बान क़तर से कम नाराज़ नहीं हैं. वर्ल्ड कप की शुरुआत से 48 घंटे पहले फ़ीफ़ा ने स्टेडियम में अल्कोहल की बिक्री पर रोक लगाने का ऐलान किया. पहले बताया गया था कि ऐसी कोई रोक नहीं रहेगी. फिर टूर्नामेंट से ठीक पहले फ़ीफ़ा ने यू-टर्न ले लिया. मीडिया रपटों के अनुसार, ये फ़ैसला क़तर की रॉयल फ़ैमिली के दबाव में लिया गया. क़तर में सावर्जनिक जगहों पर अल्कोहल की बिक्री और इस्तेमाल पर पाबंदी है. यहीं पर एक दोहरापन नज़र आता है. फ़ीफ़ा ने कहा है कि स्टेडियम के अंदर कॉर्पोरेट बॉक्स में अल्कोहल सर्व किया जाता रहेगा. लेकिन ये आम दर्शकों के लिए नहीं होगा. इसके अलावा, स्टेडियम से इतर तय जगहों पर भी अल्कोहल की सप्लाई बनी रहेगी.

ये तो हुई मौजूदा वर्ल्ड कप की बात. अब हम फ़ीफ़ा के इतिहास के चार बड़े राजनैतिक विवादों पर नज़र डाल लेते हैं.

- पहला, उरुग्वे का बहिष्कार.

साल 1930 में पहले फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप का आयोजन हुआ. इसकी मेज़बानी मिली उरुग्वे को. उस समय टूर्नामेंट में टीमों के क्वालिफिकेशन के लिए कोई नियम तय नहीं था. इसलिए ये हुआ कि फीफा के सारे सदस्य इसमें हिस्सा लेंगे. सबने खेलने के लिए हामी भी भर दी. लेकिन यूरोप के कुछ देश पीछे हट गए. उनका कहना था कि उरुग्वे बहुत दूर हैं. उतनी दूर सफ़र करना बहुत मुश्किल है. इसलिए, उन्होंने वर्ल्ड कप का बहिष्कार कर दिया. जब ये बात मेज़बान उरुग्वे के सामने रखी गई तो उसने एक प्रस्ताव रखा. कहा कि हम सभी टीमों के आने-जाने का खर्चा उठाएंगे. उस वक्त उरुग्वे आर्थिक तंगी से जूझ रहा था और पूरी दुनिया में ग्रेट डिप्रेशन के काले बादल छाए हुए थे. फिर भी उरुग्वे ने बड़ा दिल दिखाया था. इतना सब करने के बावजूद बहिष्कार करने वाले देशों का दिल नहीं पिघला. वे नहीं आए. टूर्नामेंट उरुग्वे ने जीता.

फिर 1934 का साल आया. इस बार मेज़बानी इटली को मिली. उरुग्वे पिछला चैंपियन था. उसके आने से टूर्नामेंट की अहमियत बढ़ती. लेकिन उरुग्वे ने बदला लिया. उसने कहा कि पिछली बार कुछ यूरोपियन देशों ने हमारे देश में खेल नहीं खेला, इसलिए अब हम भी इटली जाकर खेल नहीं खेलेंगे.

नंबर दो. मुसोलिनी की ब्लैक-शर्ट टीम.

1938 के वर्ल्ड कप की मेज़बानी फ़्रांस को मिली. इस समय तक दुनिया के नेताओं ने ये बात सीख ली थी कि इस तरह के आयोजनों से अपना राजनैतिक उल्लू सीधा किया जा सकता है. इसको एक उदाहरण से समझिए. 1936 में जर्मनी में ओलंपिक्स के आयोजन करने की पेशकश की गई. हिटलर पहले इसके लिए तैयार नहीं था. जब उसके मंत्रियों ने बताया कि प्रोपेगैंडा फैलाने का इससे अच्छा मौका फिर नहीं मिलेगा. तब वो राज़ी हो गया. बर्लिन में ओलंपिक्स का भव्य आयोजन हुआ. इसमें ओलंपिक्स से ज़्यादा नाज़ी प्रतीकों का इस्तेमाल हुआ. हिटलर ने इसके ज़रिए नाज़ीवाद को जर्मनी में स्थापित कर दिया.

उसी समय इटली में मुसोलिनी का शासन चल रहा था. उसने जर्मनी के उदाहरण से सीख ली. उसके आदेश पर 1938 के वर्ल्ड कप में इटली की टीम ब्लैक शर्ट पहन कर उतरी. ये मुसोलिनी के लठैतों की आधिकारिक ड्रेस थी. टीम से फासीवादी सलामी भी दिलवाई गई. उस समय इटली के कोच थे, विटोरियो पॉज़ो. उन्होंने एक अखबार को फ्रांस गई इटली टीम का हाल बयान करते हुए बताया था,

‘जब हम स्टेडियम में दाखिल हुए और मेरे खिलाड़ियों ने और वहां फासीवादी सलामी दी. उस समय हम पर भद्दी टिप्पणियां की जा रही थीं. ये हंगामा कितने समय तक चला, मैं ठीक से नहीं बता सकता. मैदान पर मौजूद जर्मन रेफरी और नार्वे के खिलाड़ियों ने हमारे चेहरे पर चिंता के भाव महसूस किए. लेकिन हमें एक बार फिर हाथ उठाकर फ़ासीवादी सलामी देनी पड़ी. ये दिखाने के लिए कि हमें किसी का डर नहीं है.’

इटली की टीम की इस हरक़त ने यूरोप के देशों को असहज कर दिया था. लेकिन उस समय वे इसकी तासीर का आकलन करने में नाकाम रहे. नतीजा, दूसरा वर्ल्ड वॉर और बेहिसाब तबाही.

तीसरी घटना 2002 की है. जब फ़ीफ़ा में मेज़बानी को लेकर झगड़ा हुआ.

एशिया में फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप का आयोजन 2002 में हुआ. मेज़बानी दो देशों को मिली. जापान और साउथ कोरिया. लेकिन टूर्नामेंट की शुरुआत से पहले ही विवाद शुरू हो गया. इसकी वजह बने, टिकट एप्लीकेशन फॉर्म्स. कोरियन फ़ैंस का कहना था कि फॉर्म्स पर जापान के आगे कोरिया शब्द का इस्तेमाल किया जाए. वरना वो जापान में खेल नहीं होने देंगे. इस साल का फाइनल मैच जापान के योकोहामा में होना तय हुआ था. कोरियाई फैंस ने इसके ख़िलाफ़ जापान के दूतावास के सामने प्रोटेस्ट भी किया. इस विवाद के बाद दोनों देशों के राजनैतिक संबंध ख़राब हो गए थे.  

अब चौथी घटना की तरफ़ चलते हैं.

2006 में फीफा वर्ल्ड कप जर्मनी में आयोजित हुआ. उस वक्त ईरान के राष्ट्रपति थे महमूद अहमदीनेजाद. टूर्नामेंट की शुरुआत के वक्त उनका एक बयान विवादों में घिर गया. उन्होंने कहा था कि समूचे इज़रायल को मिडिल-ईस्ट से हटाकर यूरोप में शिफ्ट कर दिया जाना चाहिए. वो ये भी बोले कि यहूदियों का नरसंहार झूठी घटना भी हो सकती है. इन बयानों के चलते दुनियाभर में ईरान की किरकिरी हुई. मांग उठी की ईरान को फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप से निकाल दिया जाना चाहिए. कई जगह प्रोटेस्ट भी हुए. लेकिन उस समय की जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने ईरान पर प्रतिबंध लगाने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि ईरान की टीम का उनके राष्ट्रपति से लेना-देना नहीं है.

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